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श्री साईं-कथा आराधना(भाग-10 )
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए
अंतर्यामी साईं ने उसका अहं जान लिया
एक झटके में उसका सारा धन समेट लिया
निर्धन फिर बन गया कांशी भाई
अपनी ही चतुराई उसके काम न आई
कांशीराम अहं पे अपने लज्जित हो गया
बाबा के चरणों में वो आकर गिर गया
श्री साईं को उस पे फिर दया आ गई
लीला रच के लौटा दी उसकी सारी कमाई
इस जग में कौन दाता है, कौन भिखारी,
कांशीराम का ये बातें फिर समझ हैं आईं
साईं बाबा में है सारी दुनिया समाई
बाबा की लीलाएं किसी की समझ न आई
श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए
श्री साईं भक्तों क इच्छा का मान थे रखते
किसी एक में दूजे की मर्ज़ी सहन न करते
कभी भक्तों से विनोदपूर्ण हास्य भी करते
कभी उनके क्रोध से भक्त थे डरते
सभी भक्त मिल साईं से प्रार्थना करते
चरणों में उनके सब अपना अर्पण करते
हे प्रभु साईं, प्रवृति को हमारी अंतर्मुखी बना दो
सत्य और असत्य का हम में विवेक जगा दो
बाबा की दृष्टि से सब रोग नष्ट हो जाते
मरणासन्न रोगी भी जीवनदान पा जाते
व्रत और उपवास कुछ भी जब काम ना आता
तो साईं-साईं ही प्रभु से भेंट कराता
श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए.....
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गंगास्नान
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एक बार मकर संक्रान्ति के अवसर पर मेघा ने विचार किया कि बाबा को चन्दन का लेप करुँ तथा गंगाजल से उन्हें स्नान कराऊँ । बाबा ने पहले तो इसके लिए अपनी स्वीकृति न दी, परन्तु उसकी लगातार प्रार्थना के उपरांत उन्होंने किसी प्रकार स्वीकार कर लिया । गोवावरी नदी का पवित्र जल लाने के लिए मेघा को आठ कोस का चक्कर लगाना पड़ा । वह जल लेकर लौट आया और दोपहर तक पूर्ण व्यवस्था कर ली । तब उसने बाबा को तैयार होने की सूचना दी । बाबा ने पुनः मेघा से अनुरोध किया कि मुझे इस झंझट स
े दूर ही रहने दो । मैं तो एक फकीर हूँ, मुझे गंगाजल से क्या प्रयोजन । परन्तु मेघा कुछ सुनता ही न था । मेघा की तो यह दृढ़ा धारणा थी कि शिवजी गंगाजल से अधिक प्रसन्न होते है । इसीलिये ऐसे शुभ पर्व पर अपने शिवजी को स्नान कराना हमारा परम कर्तव्य है । अब तो बाबा को सहमत होना ही पड़ा और नीचे उतर कर वे एक पीढ़े पर बैठ गये तथा अपना मस्तक आगे करते हुए कहा कि अरे मेघा । कम से कम इतनी कृपा तो करना कि मेरे केवल सिर पर ही पानी डालना । सिर शरीर का प्रधान अंग है और उस पर पानी डालना ही पूरे श
रीर पर डालने के सदृश है । मेघा ने अच्छा अच्छा कहते हुए बर्तन उठाकर सिर पर पानी डालना प्रारम्भ कर दिया । ऐसा करने से उसे इतनी प्रसन्नता हुई कि उसने उच्च स्वर में हर हर गंगे की ध्वनि करते हुए समूचे बर्तन का पानी बाबा के सम्पूर्ण शरीर पर उँडेल दिया और फिर पानी का बर्तन एक ओर रखकर वह बाबा की ओर निहारन लगा । उसने देखा कि बाबा का तो केवल सिर ही भींगा हौ और शेष भाग ज्यों का त्यों बिल्कुल सूखा ही है । यह देख उसे बड़ा आश्चर्य हुआ ।
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय 28)