Saturday, February 28, 2015

शनिदेव व्रत कथा


व्रत कथा
एक समय में स्वर्गलोक में सबसे बड़ा कौन के प्रश्न पर नौ ग्रहों में वाद-विवाद हो गया। निर्णय के लिए सभी देवता देवराज इन्द्र के पास पहुंचे और बोले- हे देवराज, आपको निर्णय करना होगा कि हममें से सबसे बड़ा कौन है? देवताओं का प्रश्न सुन इन्द्र उलझन में पड़ गए, फिर उन्होंने सभी को पृथ्वीलोक में राजा विक्रमादित्य के पास चलने का सुझाव दिया।
सभी ग्रह भू-लोक राजा विक्रमादित्य के दरबार में पहुंचे। जब ग्रहों ने अपना प्रश्न राजा विक्रमादित्य से पूछा तो वह भी कुछ देर के लिए परेशान हो उठे क्योंकि सभी ग्रह अपनी-अपनी शक्तियों के कारण महान थे। किसी को भी छोटा या बड़ा कह देने से उनके क्रोध के प्रकोप से भयंकर हानि पहुंच सकती थी। 
अचानक राजा विक्रमादित्य को एक उपाय सूझा और उन्होंने विभिन्न धातुओं जैसे सोना, चांदी, कांसा, तांबा, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक व लोहे के नौ आसन बनवाएं। सबसे आगे सोना और सबसे पीछे लोहे का आसन रखा गया। उन्होंने सभी देवताओं को अपने-अपने आसन पर बैठने को कहा। उन्होंने कहा- जो जिसका आसन हो ग्रहण करें, जिसका आसन पहले होगा वह सबसे बड़ा तथा जिसका बाद में होगा वह सबसे छोटा होगा। 
चूंकि लोहे का आसन सबसे पीछे था इसलिए शनिदेव समझ गए कि राजा ने मुझे सबसे छोटा बना दिया है। इस निर्णय से शनि देव रुष्ट होकर बोले- हे राजन, तुमने मुझे सबसे पीछे बैठाकर मेरा अपमान किया है। तुम मेरी शक्तियों से परिचित नहीं हो। सूर्य एक राशि पर एक महीने, चन्द्रमा दो महीने दो दिन, मंगल डेढ़ महीने, बुध और शुक्र एक महीने, बृहस्पति तेरह महीने रहते हैं, लेकिन मैं किसी भी राशि पर ढ़ाई वर्ष से लेकर साढ़े सात वर्ष तक रहता हूं। बड़े-बड़े देवताओं को मैंने अपने प्रकोप से पीड़ित किया है अब तू भी मेरे प्रकोप से सावधान रहना। 
इस पर राजा विक्रमादित्य बोले- जो कुछ भाग्य में होगा देखा जाएगा। 
इसके बाद अन्य ग्रहों के देवता तो प्रसन्नता के साथ चले गए, परन्तु शनिदेव बड़े क्रोध के साथ वहां से विदा हुए। कुछ समय बाद जब राजा विक्रमादित्य पर साढ़े साती की दशा आई तो शनिदेव ने घोड़े के व्यापारी का रूप धारण किया और बहुत से घोड़ों के साथ विक्रमादित्य की नगर पहुंचे। राजा विक्रमादित्य उन घोड़ों को देखकर एक अच्छे-से घोड़े को अपनी सवारी के लिए चुनकर उस पर चढ़े। राजा जैसे ही उस घोड़े पर सवार हुए वह बिजली की गति से दौड़ पड़ा। तेजी से दौड़ता हुआ घोड़ा राजा को दूर एक जंगल में ले गया और फिर वहां राजा को गिराकर गायब हो गया। राजा अपने नगर लौटने के लिए जंगल में भटकने लगा पर उसे कोई रास्ता नहीं मिला। राजा को भूख प्यास लग आई। बहुत घूमने पर उन्हें एक चरवाहा मिला। राजा ने उससे पानी मांगा। पानी पीकर राजा ने उस चरवाहे को अपनी अंगूठी दे दी और उससे रास्ता पूछकर जंगल से निकलकर पास के नगर में चल दिए। 
नगर पहुंच कर राजा एक सेठ की दुकान पर बैठ गए। राजा के कुछ देर दुकान पर बैठने से सेठ की बहुत बिक्री हुई। सेठ ने राजा को भाग्यवान समझा और उसे अपने घर भोजन पर ले गया। सेठ के घर में सोने का एक हार खूंटी पर लटका हुआ था। राजा को उस कमरे में छोड़कर सेठ कुछ देर के लिए बाहर चला गया। तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। राजा के देखते-देखते खूंटी सोने के उस हार को निगल गई। सेठ ने जब हार गायब देखा तो उसने चोरी का संदेह राजा पर किया और अपने नौकरों से कहा कि इस परदेशी को रस्सियों से बांधकर नगर के राजा के पास ले चलो। राजा ने विक्रमादित्य से हार के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि खूंटी ने हार को निगल लिया। इस पर राजा क्रोधित हुए और उन्होंने चोरी करने के अपराध में विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटने का आदेश दे दिया। सैनिकों ने राजा विक्रमादित्य के हाथ-पांव काट कर उन्हें सड़क पर छोड़ दिया।
कुछ दिन बाद एक तेली उन्हें उठाकर अपने घर ले गया और उसे कोल्हू पर बैठा दिया। राजा आवाज देकर बैलों को हांकता रहता। इस तरह तेली का बैल चलता रहा और राजा को भोजन मिलता रहा। शनि के प्रकोप की साढ़े साती पूरी होने पर वर्षा ऋतु प्रारंभ हुई। एक रात विक्रमादित्य मेघ मल्हार गा रहा था, तभी नगर की राजकुमारी मनभावनी रथ पर सवार उस घर के पास से गुजरी। उसने मल्हार सुना तो उसे अच्छा लगा और दासी को भेजकर गाने वाले को बुला लाने को कहा। दासी लौटकर राजकुमारी को अपंग राजा के बारे में सब कुछ बता दिया। राजकुमारी उसके मेघ मल्हार से बहुत मोहित हुई और सब कुछ जानते हुए भी उसने अपंग राजा से विवाह करने का निश्चय किया।
राजकुमारी ने अपने माता-पिता से जब यह बात कही तो वह हैरान रह गए। उन्होंने उसे बहुत समझाया पर राजकुमारी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी और प्राण त्याग देने का निश्चय कर लिया। आखिरकार राजा-रानी को विवश होकर अपंग विक्रमादित्य से राजकुमारी का विवाह करना पड़ा। विवाह के बाद राजा विक्रमादित्य और राजकुमारी तेली के घर में रहने लगे। उसी रात स्वप्न में शनिदेव ने राजा से कहा- राजा तुमने मेरा प्रकोप देख लिया। मैंने तुम्हें अपने अपमान का दंड दिया है। राजा ने शनिदेव से क्षमा करने को कहा और प्रार्थना की- हे शनिदेव, आपने जितना दुःख मुझे दिया है, अन्य किसी को न देना।
शनिदेव ने कहा- राजन, मैं तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करता हूं। जो कोई स्त्री-पुरुष मेरी पूजा करेगा, कथा सुनेगा, जो नित्य ही मेरा ध्यान करेगा, चींटियों को आटा खिलाएगा वह सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त होता रहेगा तथा उसके सब मनोरथ पूर्ण होंगे। यह कहकर शनिदेव अंतर्ध्यान हो गए। 

प्रातःकाल राजा विक्रमादित्य की नींद खुली तो अपने हाथ-पांव देखकर राजा को बहुत खुशी हुई। उन्होंने मन ही मन शनिदेव को प्रणाम किया। राजकुमारी भी राजा के हाथ-पांव सलामत देखकर आश्चर्य में डूब गई। तब राजा विक्रमादित्य ने अपना परिचय देते हुए शनिदेव के प्रकोप की सारी कहानी सुनाई।
इधर सेठ को जब इस बात का पता चला तो दौड़ता हुआ आया और राजा विक्रमादित्य के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा। राजा विक्रमादित्य ने उसे क्षमा कर दिया क्योंकि वह जानते थे कि यह सब तो शनिदेव के प्रकोप के कारण हुआ था। सेठ राजा विक्रमादित्य को पुन: को अपने घर ले गया और उसे भोजन कराया। भोजन करते समय वहां एक आश्चर्य घटना घटी। सबके देखते-देखते उस खूंटी ने हार उगल दिया। सेठ ने अपनी बेटी का विवाह भी राजा के साथ कर दिया और बहुत से स्वर्ण आभूषण, धन आदि देकर राजा को विदा किया।
राजा विक्रमादित्य राजकुमारी मनभावनी और सेठ की बेटी के साथ अपने नगर वापस पहुंचे तो नगरवासियों ने हर्ष के साथ उनका स्वागत किया। अगले दिन राजा विक्रमादित्य ने पूरे राज्य में घोषणा कराई कि शनिदेव सब ग्रहों में सर्वश्रेष्ठ हैं। प्रत्येक स्त्री-पुरुष शनिवार को उनका व्रत करें और व्रतकथा अवश्य सुनें। राजा विक्रमादित्य की घोषणा से शनिदेव बहुत प्रसन्न हुए। शनिवार का व्रत करने और व्रत कथा सुनने से शनिदेव की अनुकंपा बनी रहती है और जातक के सभी दुख दूर होते हैं।
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Wednesday, February 25, 2015

संकटमोचन हनुमानाष्टक


संकटमोचन हनुमानाष्टक
बाल समय रवि भक्षी लियो तब तीनहुं लोक भयो अँधियारो I
ताहि सो त्रास भयो जग को यह संकट काहू सो जात न टारो II
देवन आनि करी बिनती तब छाड़ दियो रवि कष्ट निवारो I
... को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
बालि की त्रास कपीस बसे गिरि जात महा प्रभु पंथ निहारो I
चौंकि महा मुनि श्राप दियो तब चाहिये कौन बिचार बिचारो II
कै द्विज रूप लिवाय महा प्रभु सो तुम दास के शोक निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
अंगद के संग लेन गये सिया खोज कपीस यह बैन उचारो I
जीवत ना बचिहौ हम सो जो बिना सुधि लाये यहाँ पगु धारौ II
हेरि थके तट सिन्धु सबै तब लाये सिया सुधि प्राण उबारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
रावण त्रास दई सिया को सब राक्षसि सों कहि शोक निवारो I
ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाय महा रजनी चर मारो II
चाहत सिया अशोक सों आगिसु दें प्रभु मुद्रिका शोक निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
बाण लाग्यो उर लक्ष्मण के तब प्राण तज्यो सुत रावण मारो I
ले गृह वैद्य सुषेन समेत तवै गिरि द्रोण सो वीर उपारो II
आनि सजीवन हाथ दई तब लक्ष्मण के तुम प्राण उबारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
रावण युद्ध अजान कियो तब नाग कि फाँस सबै सिर दारो I
श्री रघुनाथ समेत सबै दल मोह भयो यह संकट भारो II
आनि खगेस तबै हनुमान जु बंधन काटि सुत्रास निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
बंधु समेत जबै अहि रावण लै रघुनाथ पातळ सिधारो I
देविहिं पूजि भलि विधि सो बलि देउ सबै मिलि मंत्र विचारो II
जाय सहाय भयो तब ही अहि रावण सैन्य समेत संघारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
काज किये बड़ देवन के तुम वीर महा प्रभु देखि बिचारो I
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुम सों नहिं जात है टारो II
बेगि हरो हनुमान महा प्रभु जो कछु संकट होय हमारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
लाल देह लाली लसे ,अरु धरि लाल लंगूर I
बज्र देह दानव दलन,जय जय जय कपि सूर II

Tuesday, February 17, 2015

भगवान शिव के 108 नाम ----


भगवान शिव के 108 नाम ----
१- ॐ भोलेनाथ नमः
२-ॐ कैलाश पति नमः
३-ॐ भूतनाथ नमः
४-ॐ नंदराज नमः
५-ॐ नन्दी की सवारी नमः
६-ॐ ज्योतिलिंग नमः
७-ॐ महाकाल नमः
८-ॐ रुद्रनाथ नमः
९-ॐ भीमशंकर नमः
१०-ॐ नटराज नमः
११-ॐ प्रलेयन्कार नमः
१२-ॐ चंद्रमोली नमः
१३-ॐ डमरूधारी नमः
१४-ॐ चंद्रधारी नमः
१५-ॐ मलिकार्जुन नमः
१६-ॐ भीमेश्वर नमः
१७-ॐ विषधारी नमः
१८-ॐ बम भोले नमः
१९-ॐ ओंकार स्वामी नमः
२०-ॐ ओंकारेश्वर नमः
२१-ॐ शंकर त्रिशूलधारी नमः
२२-ॐ विश्वनाथ नमः
२३-ॐ अनादिदेव नमः
२४-ॐ उमापति नमः
२५-ॐ गोरापति नमः
२६-ॐ गणपिता नमः
२७-ॐ भोले बाबा नमः
२८-ॐ शिवजी नमः
२९-ॐ शम्भु नमः
३०-ॐ नीलकंठ नमः
३१-ॐ महाकालेश्वर नमः
३२-ॐ त्रिपुरारी नमः
३३-ॐ त्रिलोकनाथ नमः
३४-ॐ त्रिनेत्रधारी नमः
३५-ॐ बर्फानी बाबा नमः
३६-ॐ जगतपिता नमः
३७-ॐ मृत्युन्जन नमः
३८-ॐ नागधारी नमः
३९- ॐ रामेश्वर नमः
४०-ॐ लंकेश्वर नमः
४१-ॐ अमरनाथ नमः
४२-ॐ केदारनाथ नमः
४३-ॐ मंगलेश्वर नमः
४४-ॐ अर्धनारीश्वर नमः
४५-ॐ नागार्जुन नमः
४६-ॐ जटाधारी नमः
४७-ॐ नीलेश्वर नमः
४८-ॐ गलसर्पमाला नमः
४९- ॐ दीनानाथ नमः
५०-ॐ सोमनाथ नमः
५१-ॐ जोगी नमः
५२-ॐ भंडारी बाबा नमः
५३-ॐ बमलेहरी नमः
५४-ॐ गोरीशंकर नमः
५५-ॐ शिवाकांत नमः
५६-ॐ महेश्वराए नमः
५७-ॐ महेश नमः
५८-ॐ ओलोकानाथ नमः
५४-ॐ आदिनाथ नमः
६०-ॐ देवदेवेश्वर नमः
६१-ॐ प्राणनाथ नमः
६२-ॐ शिवम् नमः
६३-ॐ महादानी नमः
६४-ॐ शिवदानी नमः
६५-ॐ संकटहारी नमः
६६-ॐ महेश्वर नमः
६७-ॐ रुंडमालाधारी नमः
६८-ॐ जगपालनकर्ता नमः
६९-ॐ पशुपति नमः
७०-ॐ संगमेश्वर नमः
७१-ॐ दक्षेश्वर नमः
७२-ॐ घ्रेनश्वर नमः
७३-ॐ मणिमहेश नमः
७४-ॐ अनादी नमः
७५-ॐ अमर नमः
७६-ॐ आशुतोष महाराज नमः
७७-ॐ विलवकेश्वर नमः
७८-ॐ अचलेश्वर नमः
७९-ॐ अभयंकर नमः
८०-ॐ पातालेश्वर नमः
८१-ॐ धूधेश्वर नमः
८२-ॐ सर्पधारी नमः
८३-ॐ त्रिलोकिनरेश नमः
८४-ॐ हठ योगी नमः
८५-ॐ विश्लेश्वर नमः
८६- ॐ नागाधिराज नमः
८७- ॐ सर्वेश्वर नमः
८८-ॐ उमाकांत नमः
८९-ॐ बाबा चंद्रेश्वर नमः
९०-ॐ त्रिकालदर्शी नमः
९१-ॐ त्रिलोकी स्वामी नमः
९२-ॐ महादेव नमः
९३-ॐ गढ़शंकर नमः
९४-ॐ मुक्तेश्वर नमः
९५-ॐ नटेषर नमः
९६-ॐ गिरजापति नमः
९७- ॐ भद्रेश्वर नमः
९८-ॐ त्रिपुनाशक नमः
९९-ॐ निर्जेश्वर नमः
१०० -ॐ किरातेश्वर नमः
१०१-ॐ जागेश्वर नमः
१०२-ॐ अबधूतपति नमः
१०३ -ॐ भीलपति नमः
१०४-ॐ जितनाथ नमः
१०५-ॐ वृषेश्वर नमः
१०६-ॐ भूतेश्वर नमः
१०७-ॐ बैजूनाथ नमः
१०८-ॐ नागेश्वर नमः
यह भगवान के १०८ नाम हैं

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Tuesday, February 10, 2015

श्री हनुमान स्तुति



 श्री हनुमान स्तुति
मंगलमूरति मारुतनंदन
।। राम श्रीराम श्रीराम सीताराम।।
.. मंगलमूरति मारुतनंदन अगमँहु सुगम बनाई ।
मुनि मन रंजन जन दुःख भंजन केहि बिधि करौं बड़ाई ।।
असहाय सहायक तुम सब लायक गुनगन यश जग छाई ।
अतिबड़भागी तुम अनुरागी रामचरन सुख दाई ।।
जनहित आगर विद्यासागर रामकृपा अधिकाई ।
बालि त्रास त्रसित सुग्रीव को राम से दिहेउ मिलाई ।।
भक्त विभीषन धीरज दीन्हेउ राम कृपा समुझाई ।
सिया सुख दीन्हेउ आशिष लीन्हेउ प्रभु सन्देश सुनाई ।।
बल बुधि धाम सिया सुधि लायउ रावन लंक जराई ।
वैद्य सुषेन सदन संग लायउ मूरि कहेउ जनु आई ।।
कालनेमि बधि लाइ सजीवन लक्षिमन प्रान बचाई ।
पैठि पताल अहिरावन मारेउ लायउ प्रभु दो भाई ।।
विजय संदेश सिया को दीन्हेउ सुनि अति मन हर्षाईं ।
बूड़त भरत विरह जल राखेउ आवत प्रभु बतलाई ।।
हाँक सुनत सब खल दल काँपैं छीजैं सुनि प्रभुताई ।
मैं मूढ़ मलीन कहँउ किम तव गुन शारद कहे न सिराई ।।
दीनदयाल भयउ तुलसी को तुमही नाथ सहाई ।
मम चित करउ कहँउ कर जोरे छमि अवगुन कुटिलाई ।।
स्वामिन स्वामि सिया रघुनाथ तव आरतपाल पितु-माई ।
रीति सदा जेहिं दीन को आदर कीरति जगत सुहाई ।।
दीनसहायक प्रिय रघुनायक मम हित बात चलाई ।
करुनासागर जन हित आगर अब न रखो बिसराई ।।
अघ अवगुन नहि देखि विरद निज करउ कृपा रघुराई ।
साधनहीन नहीं हित स्वामी भ्रमत है अकुलाई ।।
दीनबन्धु दीन संतोष की और विलम्ब किये न भलाई ।
असरन सरन एक गति तुमही राखो बाँह उठाई ।।
.............................................................
_/\_ मारुति नंदन नमो नमः _/\_ कष्ट भंजन नमो नमः _/\_
_/\_ असुर निकंदन नमो नमः _/\_ श्रीरामदूतम नमो नमः _/\
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Friday, February 6, 2015

श्री रामनाम संकीर्तनं


श्री रामनाम संकीर्तनं 
प्रार्थना 
नान्या स्प्रहा रघुपते हृदय अस्मदीये सत्यम वदामि च भवानखिलान्तारमा | 
भक्तिम प्रयछ रघुपुंगव निर्भरां में कामादिदोष रहितं कुरु मानसं च || 
श्री सीता – लक्ष्मण – भारत – शत्रुधन – हनुमत – समेत – श्री रामचंद्र – परब्रह्मणे नम:

बालकाण्डम्

१.शुद्ध ब्रह्म परात्पर राम 
२.कालात्मक परमेश्वर राम 
३.शेषतल्प सुख निद्रित राम 
४.ब्रह्माद्यमर प्रार्थित राम 
५.चण्डकिरण कुल मंण्डन राम 
६.श्रीमद दशरथ नंदन राम 
७.कौशल्या सुख वर्धन राम 
८.विश्वामित्र प्रियधन राम 
९.घोरताटका घातक राम 
१०.मारीच आदि निपातक राम 
११.कौशिक मख संरक्षक राम 
१२.श्रीमद अहल्योद्धारक् राम 
१३.गौतम मुनि सम्पूजित राम 
१४.सुर मुनिवरगण संस्तुत राम
१५.नाविक धावित मृदुपद राम 
१६.मिथिला पुरजन मोहक राम 
१७.विदेह मान सरंजक राम 
१८.त्र्यम्बक कार्मुक भन्जक राम 
१९.सीता अर्पित वर मालिक राम 
२०.कृत वैवाहिक कौतुक राम 
२१.भार्गव दर्प विनाशक राम 
२२.श्रीमद अयोध्या पालक राम 
अयोध्या काण्ड 
२३.अगणित गुण गण भूषित राम 
२४.अवनि तनया कामित राम 
२५.राका चन्द्र सामानन राम 
२६.पितृ वाक्याश्रित कानन राम 
२७.प्रिय गुह विनिवेदित पद राम 
२८.तत्क्षालित निज मृदु पद राम 
२९.भरद्वाज मुख नन्दक राम 
३०.चित्रकूट आद्री निकेतन राम 
३१.दशरथ संतत चिंतित राम 
३२.कैकेयी तनया आर्थित राम 
३३.विरचित निज पितृ कर्मक राम 
३४.भरत अर्पित निज पादुक राम
अरण्य काण्ड
३५.दण्डक वन जन पावन राम 
३६.दुष्ट विराध विनाशन राम 
३७.शरभंग सुतीक्षण अर्चित राम 
३८.अगस्त्य अनुग्रह वरधित राम 
३९.गृध्र आधिप संसेवित राम 
४०.पंचवटी तट सुस्थित राम 
४१.शूर्पनखा आर्ती विधायक राम 
४२.खरदूषण मुख सूदक राम 
४३.सीता प्रिय हरिणानुग राम 
४४.मारीच आर्ती कृदाशुग राम 
४५.विनष्ट सीता अन्वेषक राम 
४६.गृध्र आधिप गति दायक राम 
४७.शबरीदत्त फलाशन राम 
४८.कबंध बाहु छेदन राम 
किष्किन्धा काण्ड 
४९.हनुमत सेवित निज पद राम 
५०.नत सुग्रीव अभीष्टद राम 
५१.गर्वित वाली संहारक राम 
५२.वानर दूत प्रेषक राम 
५३.हितकर लक्ष्मण संयुत राम 
सुन्दर काण्ड
५४.कपिवर संतत संस्मृत राम 
५५.तद्गति विध्न ध्वंसक राम 
५६.सीता प्राणा धारक राम 
५७.दुष्ट दशानन दूषित राम 
५८.शिष्ट हनूमद भूषित राम 
५९.सीता वेदित काकावन राम 
६०.कृत चूड़ामणि दर्शन राम 
६१.कपिवर वचन आश्वासित राम 
लंका काण्ड 
६२.रावण निधन प्रस्थित राम 
६३ वानर सैन्य समावृत राम 
६४.शोषित सरिदिशार्थित राम 
६५.विभीषण अभय दायक राम 
६६.पर्वत सेतु निबंधक राम 
६७.कुम्भकर्ण शिर छेदक राम 
६८.राक्षस संघ विमर्दक राम 
६९.अहिमहि रावण चारण राम
७०.संहृत दशमुख रावण राम 
७१.विधि भवमुख सुर संस्तुत राम
७२.खस्थित दशरथ वीक्षित राम
७३.सीता दर्शन मोदित राम 
७४.अभिषिक्त विभीषणनत राम 
७५.पुष्पक यानारोहण राम 
७६.भरद्वाज अभिनिवेषण राम 
७७.भरत प्राण प्रियकर राम 
७८.साकेत पुरी भूषण राम 
७९.सकल स्वीय समानत राम 
८०.रत्नल स्वीय समानत राम 
८१.पट्टाभिषेक अलंकृत राम 
८२.पार्थिव कुल सम्मानित राम 
८३.विभीषण अर्पित रंगक राम 
८४.कीशकुल अनुग्रह कर राम 
८५.सकल जीव संरक्षक राम 
८६.समस्त लोक आधारक राम 
८७.आगत मुनिगण संस्तुत राम 
८८.विश्रुत दश कंठोद्भव राम 
८९.सीता आलिंगन निर्वृत राम 
९०.निति सुरक्षित जनपद राम 
९१.विपिन त्याजित जनकज राम 
९२.कारित लवणासुर वध राम 
९३.स्वर्गत शम्बुक संतुत राम 
९४.स्वतनय कुशल वंदित राम 
९५.अश्वमेघ क्रतु दीक्षित राम 
९६.काला वेदित सुरपद राम 
९७.आयोध्यक जन मुक्तिद राम 
९८.विधिमुख विबुधानन्दक राम 
९९.तेजोमय निज रूपक राम 
१००.संसृति बंध विमोचक राम 
१०१.धर्म स्थापन तत्पर राम 
१०२.भक्ति परायण मुक्तिद राम 
१०३.सर्व चराचर पालक राम 
१०४.सर्व भवामय वारक राम 
१०५.वैकुंठालय संस्थित राम 
१०६.नित्या नन्द पद्स्थित राम 
१०७.राम राम जय राजा राम 
१०८. राम राम जय सीता राम 

इति अष्टोतर शत नाम रामायणं समाप्तं | 


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श्री साई सच्चरित्र



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Sai Aartian साईं आरतीयाँ