आन्तरिक पूजन
श्री. हेमाडपंत उपासना की एक सर्वथा नवीन पद्घति बताते है । वे कहते है कि सदगुरु के पादप्रक्षालन के निमित्त आनन्द-अश्रु के उष्ण जल का प्रयोग करो । उन्हें सत्यप्रेमरुपी चन्दन का लेप कर, दृढ़विश्वासरुपी वस्त्र पहिनाओ तथा अष्ट सात्विक भावों के स्थान पर कोमल और एकाग्र चित्तरुपी फल उन्हें अर्पित करो । भावरुपी बुक्का उनके श्री मस्तक पर लगा, भक्ति की कछनी बाँध, अपना मस्तक उनके चरणों पर रखो । इस प्रकार श्री साई को समस्त आभूषणों से विभूषित कर, उन्हें अपना सर्वस्व निछावर कर दो । उष्णता दूर करने के लिये भाव की सदा चँवर डुलाओ । इस प्रकार आनन्ददायक पूजन कर उनसे प्रार्थना करो –
हे प्रभु साई । हमारी प्रवृत्ति अन्तर्मुखी बना दो । सत्य और असत्य का विवेक दो तथा सांसारिक पदार्थों से आसक्ति दूर कर हमें आत्मानुभूति प्रदान करो । हम अपनी काया और प्राण आपके श्री चरणों में अर्पित करते है । हे प्रभु साई । मेरे नेत्रों को तुम अपने नेत्र बना लो, ताकि हमें सुख और दुःख का अनुभव ही न हो । हे साई । मेरे शरीर और मन को तुम अपनी इच्छानुकूल चलने दो त
था मेरे चंचल मन को अपने चरणों की शीतल छाया में विश्राम करने दो ।
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय 26)