Saturday, September 22, 2012

Sai Vachan


ॐ साईं श्री साईं ॐ श्री साईं 
"साईं जी"
दास मांगे नाम का दान 
बक्शो नाम ए कृपानिधान
दीजो दाता यही वरदान
करता रहूँ मैं "साईं" गुणगान 
श्री साईं कृपा सदैव हम सब पर बनी रहे 
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श्रीसाईनाथ-स्तवनमंजरी 
भाग-3
आता चैतन्यप्रत । मी-तू म्हणणे ना उचित ।।
का की जेथे न संभवते द्वैत । तेचि चैतन्य निश्चये ।।
आणि व्याप्ति चैतन्याची । अवघ्या जगाठायी साची ।।
मग मी-तू या भावनेची । संगत कैशी लागते ।।
Therefore, to distinguish that pure consciousness
In terms of "you and me" is not proper!
Because, where there is no possibility of duality
That is definitely the pure consciousness.
And since the pure consciousness.
Truly encompasses the whole world, 
Then, the "you-me" duality concept,
How can it possibly exist?
(दासगणुकृत श्रीसाईनाथ-स्तवनमंजरी)

श्री साई सच्चरित्र



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