***************
श्री साईं-कथा आराधना
****************
श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए
कुछ लोग अब भी जलते रहते थे रात-दिन
अपशब्द भी कहते थे, सताते थे रात दिन
उसने ना कभी उन पर क्रोध था किया
समझा-बुझा के लोगों को बस माफ़ था किया
फिर एक दिन शिर्डी को वो छोड़ ही गया
पलभर में पूरी नगरी को अनाथ कर गया
भगवान मान लोगों ने कभी था उसे पूजा
जिनके लिए भगवान था ना कोई भी दूजा
वो रात-दिन भक्ति में रहते थे बाबा की
दिन-रात राह तकते थे वो अपने बाबा की
माँ बायजा रोटी ले जंगल में खोजतीं
रूठ माँ से कहाँ चला गया ये ही सोचतीं
श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए
लौटा वो फिर किसी बारात की शान में
म्हालसापति ने साईं कहा उसके मान में
लोगों ने दी हंसकर आपस में बधाई
और साईं को दी फिर ना जाने की दुहाई
खंडोबा जी के मंदिर में मेला-सा जुड़ गया
फकीर लौट आया है किस्सा ये छिड गया
म्हालसापति ने आओ साईंश्री कह के पुकारा
उस साईं को फिर सबने अपने दिल में उतारा
तब साईं ने मस्ज़िद को अपना घर बना लिया
हिन्दू-मुस्लिम सबको गले लगा लिया
मस्ज़िद में बैठ के सबकी पीड़ाएं वो हरता
और द्वारकामाई सदा उसको वो कहता
श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए..........