"कछुवी नदी के इस किनारे पर रहती है और उसके बच्चे दूसरे किनारे पर। न वह उन्हें दूध पिलाती है और न हृदय से ही लगाकर लेती है, वरन् केवल उसकी प्रेम-दृष्टि से ही उनका भरण-पोषण हो जाता है। छोटे बच्चे भी कुछ न करके केवल अपनी माँ का ही स्मरण करते रहते है। उन छोटे-छोटे बच्चों पर कछुवी की केवल दृष्टि ही उन्हें अमृततुल्य आहार और आनन्द प्रदान करती है। ऐसा ही गुरु और शिष्य का भी सम्बन्ध है।"
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय 18/19)