एक ओर राहाता (दक्षिण में) तथा दूसरी ओर नीमगाँव (उत्तर में) है। इन दोनों ग्रामों के मध्य में शिरडी स्थित है। बाबा अपने जीवनकाल में कभी भी इन सीमाओं के पार नहीं गये। उन्होंने कभी रेलगाड़ी नहीं देखी और न कभी उसमें प्रवास ही किया, परन्तु फिर भी उन्हें सब गाड़ियों के आवागमन का समय ठीक-ठीक ज्ञात रहता था। जो भक्तगण बाबा से लौटने की अनुमति माँगते और जो आदेशानुकूल चलते, वे कुशलतापूर्वक घर पहुँच जाते थे। परन्तु इसके विपरीत जो अवज्ञा करते, उन्हें दुर्भाग्य व दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता था।
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय 8)