Tuesday, September 4, 2012

श्री साई की इच्छा



श्री साई की इच्छा के बिना कोई भक्त उनके पास पहुँच ही न सकता था। यदि उनके शुभ कर्म उदित नहीं हुए है तो उन्हें बाबा की स्मृति भी कभी नहीं आई और न ही उनकी लीलायें उनके कानों तक पहुँच सकी। तब फिर बाबा के दर्शनों का विचार भी उन्हें कैसे आ सकता था? अनेक व्यक्तियों की श्री साईबाबा के दर्शन की इच्छा होते हुए भी उन्हें बाबा के महासमाधि लेने तक कोई योग प्राप्त न हो सका। अतः ऐसे व्यक्ति जो दर्शनलाभ से वंचित रहे है, यदि वे श्रद्घापूर्वक साईलीलाओं का श्रवण करेंगे तो उनकी साई-दर्शन की इच्छा बहुत कुछ सीमा तक तृप्त हो जायेगी। भाग्यवश यदि किसी को किसी प्रकार बाबा के दर्शन हो भी गये तो वह वहाँ अधिक ठहर न सका। इच्छा होते हुए भी केवल बाबा की आज्ञा तक ही वहाँ रुकना संभव था और आज्ञा होते ही स्थान छोड़ देना आवश्यक हो जाता था। अतः यह सब उनकी शुभ इच्छा पर ही अवलंबित था।
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय 12)

श्री साई सच्चरित्र



श्री साई सच्चरित्र

आओ मिलकर पढ़ें और साथ जुड़ें !

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 1

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 2


आओ मिलकर पढ़ें और साथ जुड़ें !

Sai Aartian साईं आरतीयाँ