Thursday, July 26, 2012



सदा निंबवृक्षस्य मूलाधिवासात् 
सुधास्त्राविणं तित्तमप्यप्रियं तम् । 
तरुं कल्पवृक्षाधिकं साधयन्तं 
नमानीश्वरं सद्गगुरुं साईनाथम् ।। 
अर्थात् मैं भगवान साईनाथ को नमन करता हूँ, जिनका सानिध्य पाकर नीम वृक्ष कटु तथा अप्रिय होते हुए भी अमृत वर्षा करता था । (इस वृक्ष का रस अमृत कहलाता है) इसमें अनेक व्याधियों से मुक्ति देने के गुण होने के कारण इसे कल्पवृक्ष से भी श्रेष्ठ कहा गया है । 
(श्री साई सच्चरित्र)

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श्री साई सच्चरित्र

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श्री साई सच्चरित्र अध्याय 1

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Sai Aartian साईं आरतीयाँ