Friday, September 21, 2012

श्रीसाईनाथ-स्तवनमंजरी



श्रीसाईनाथ-स्तवनमंजरी 
भाग-2
म्हणुन अजन्मा आपणां । मी म्हणत्से दयाघना ।।
अज्ञाननगाच्या कंदना । करण्या व्हावे वज्र तुम्ही ।।
ऐशा खांचा आजवर । बहुत झाल्या भूमीवर ।।
हल्ली अजून होणार । पुढेही कालावस्थेनें ।।
त्या प्रत्येक खाचेप्रत। निराले नावरूप मिळत ।।
जेणेकरुन जगतात । औलख त्यांची पटतसे ।।
Therefore, I call Thee Beginning-less
O merciful one.
To destroy the mountain of ignorance,
Please become the weapon of destruction.
Until now, such beings 
Have existed in large numbers, on this earth.
Many exist even now,
And, in the future, more will come.
Each such being 
Is given a separate name and appearance.
That is how, in this world,
Each one is identified.
(दासगणुकृत श्रीसाईनाथ-स्तवनमंजरी)


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श्री साईं-कथा आराधना (भाग - 6 )
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

साईं की लीला सुनकर लोग दौड़े आते थे ,
और उनके आगे बैठकर फरियाद सुनाते।
भिक्षा में मिले भोजन को साईं बाँट कर खाते ।
कुत्ते बिल्ली को देकर वो तृप्त हो जाते ।
बाबा ने कभी किसी से घृणा ही करी 
रोगी और अपाहिज की खुद सेवा ही करी ।
भागो जी की काया में जहाँ -तहां घाव थे भरे ।
वो कोढ़ से पीड़ित हो सह रहे थे कष्ट बड़े ।
साईं - कृपा से भागो जी कष्ट से मुक्ति पा गए 
और साईं सेवा करके तो धन्य ही हो गए ।
सचमुच करुणा के अवतार थे साईं ।
हर कष्ट , दुख से जिन्होंने मुक्ति दिलाई ।

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए 

साईं की शरण में जो एक बार आ गया ,
साईं -कृपा को वो तो पल भर में ही पा गया ।
ममता की मूरत बनकर साईं आये थे शिर्डी ।
आँचल की छाँव आज भी वही देती है शिर्डी ।
साईं जी ने दे दी थी कोढ़ी को भी काया ,
फिर भागो जी की सेवा ले के मान बढ़ाया ।
श्री साईं ने कभी दौलत से न कभी प्यार था किया ,
भिक्षा पर ही अपना जीवन बिता दिया ।
गर दक्षिणा जो लेते साईं कभी किसी से 
लौटाते उसको अपने हजार हाथों से ।
शिर्डी में एक दिन घोर झंझावत आया ।
बाबा उस पर गरजे और शांत कराया ।

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईं नाथ कहिए.......

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