Thursday, December 30, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"तुम्हें अपने शुभ अशुभ कर्मो का फल अवश्य ही भोगना चाहिए I यदि भोग अपूर्ण रह गया तो  पुनजन्म धारण करना पड़ेगा, इसलिये मृत्यु से यह श्रेयस्कर है कि कुछ काल तक उन्हें सहन कर पूर्व जन्मों के कर्मों का भोग समाप्त कर सदेव के लिये मुक्त हो जाओ" I

Saturday, December 25, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"बाबा लीलावतार थे जो दिनोद्वार, दुष्ट निशाचरों के वध और भक्तो की दुर्वासनाओ को नष्ट करने के लिए प्रकट हुए थे"I

Friday, December 17, 2010

ॐ साईं राम,

"तुच्छ लगे संसार जब,मन साईं में आये,
साईं बाबा प्रेम में,भक्तन मन रंग जाये"

Monday, December 13, 2010

ॐ साईं राम,

"साईं की लीला सुने,कर साईं का ध्यान,
भगति सद्गुरु साईं की,त्याग सकल अभिमान"
"साईं राम मेरा सत्य गुरु"

Saturday, December 11, 2010

Sri Paramahansa Yogananda

किसी भी परिस्थिति में दूसरों को यह मौक़ा न दें कि वह आपको इतना क्रोधित कर सके कि आप कुछ ऐसा कर बैठें कि बाद में पश्चाताप करना पड़े। बहुत से लोग जो क्रोध में अपना नियंत्रण खो बैठते है वे बाद में पछताते हैं कि उन्होंने क्या कर दिया| जो व्यक्ति अपने संवेगों पर नियंत्रण नहीं रख पाते, वे स्वयं के सबसे बड़े शत्रु हैं| जब आपको कोई पागल (क्रोधित) कर देता है इसका अर्थ यह है कि आपके अंदर की कोई ईच्छा अवरोधित हो रही है, अन्यथा कोई भी आपको क्रोधित नहीं कर सकता|

Thursday, December 9, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"मूर्ति, वेदी, अग्नि, प्रकाश, सूर्य, जल और द्विज (ब्रह्मण) आदि सप्त पवित्र उपासना की वस्तुएं होते हुए भी गुरु की  उपासना ही इन सभी में श्रेष्ट है,इसलिए अनन्य भाव से उनका पूजन करें"I

Saturday, December 4, 2010

ॐ सांई राम

ॐ सांई राम

आओ  आओ  साईंनाथ
आओ  आओ  हे  जगन्नाथ
आओ  आओ  साईंनाथ
दर्शन  के  लिए  तरस  रहे  है
नयन  हमारे  ओ  साईं
दर्ष  दिखाओ  दया  के  सागर
आओ  शंकर  हे  परमेश्वर


Please come, Sai, Lord of the Universe, our eyes are eager to see Your divine form. O Lord Shankara, the ocean of compassion, grant us Your vision.


आओ  आओ  साईंनाथ
आओ  आओ  साईं  प्यारे
कीर्तन  करू   मैं साईं  तुम्हारे
आओ  आओ  साईं  प्यारे
तुम  हो  मेरे  नयनो  के  तारे
दर्शन  दो  जीवन  के  सहारे 


Please come, beloved Sai, let me sing your glory.
O Supreme Lord, You are the support of my life and the
shining star of my eyes.

 

आओ  गोपाला  गिरिधारी
आओ  आओ  अंतर्यामी
आओ  आओ  आनंदा  साईं
आओ  गोपाला  गिरिधारी
आओ  आओ  आत्मानिवासी
आओ  आओ  शांति  निवासी


Come, O Gopala! You held up the mountain Govardhana
to save Your devotees. We welcome You the indweller of our
hearts. Lord Sai, You reside in the abode of peace and grant bliss.
आओ  प्यारे  नयन  हमारे  
साईं  हमारे  आओ
तुम  बिन  कोई  नहीं  रखवाले
तुम  बिन  कौन  सहारे  (बाबा)
आओ  साईं  प्यारे
साईं  हमारे  आओ  


Please come our beloved Lord Sai! You are as precious
as our eyes. Without You, there is no one to
protect us. Who but You can support us, O Beloved Sai?




आओ  साईं  नारायण  दर्शन  दीजो
तुम  हो  जगत  विधाता
तुम्ही  हो  ब्रह्मा  तुम्ही  हो  विष्णु
तुम्ही  हो  शंकर  रूप
तुम्ही  हो  राम  तुम्ही  हो  कृष्ण
तुम्ही  हो  विश्व  विधाता


Welcome Sai Narayana, Creator of the Universe.
Grant us your Darshan. You are none other than Lord Rama,
Krishna, Vishnu, Brahma and Shankara.

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श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

 "गुरु के शब्दों मे विशवास कर उन्हें सर्वसंकल्प का आसन अर्पण करें और उनके पूजन का संकल्प करके समस्त इच्छाओं का त्याग करें"I 

Monday, November 29, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"रोग और स्वास्थ्य क्या है ? जब तक व्यक्ति के पाप और पुण्य का अंत न हो, या जब तक वह अपने कर्मो को न भोग ले, तब तक कोई अन्य उपाय काम में नहीं आता I"

Sunday, November 28, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"जीव स्वत्रंत नहीं है,कर्मो की कड़ी उसका पीछा करती है, कर्मो का खेल भी विचित्र है, जो प्राणी के जीवन को धागों से खीचते है I"

Saturday, November 27, 2010

Swami Sivananda

जिनका ह्रदय पवित्र है, वे भाग्यशाली हैं, क्योंकि उन्हें भगवत्प्राप्ति होगी। ईश्वर आपके ह्रदय में विराजमान है लेकिन दुर्भाव का पर्दा ईश्वर को आपकी द्रष्टि से दूर कर देता है| आप इस पर्दे को दूर करने का प्रयास करे| अपने ह्रदय से इस दुर्भाव को दूर कर दें| और तब तुम अभी और यहीं ईश्वर को पूरे प्रकाश और प्रभाव के साथ अनुभव कर पाओगे| वे भाग्यशाली हैं जिन्हें ईश्वरीय द्रष्टि प्राप्त है, वे ईश्वर-किरपा को सम्पूर्ण विश्व में प्रसारित कर देंगे|

Friday, November 26, 2010

Sri Paramahansa Yogananda

"जो व्यक्ति हमेशा दूसरों में दोष देखता है सामान्यत: उसका अपने विषय में कोई उच्च भाव नहीं होता| ऐसे व्यक्ति अपने अंदर स्थित समरसता केंद्र से अनजान होते हैं| कोई आश्चर्य नहीं ऐसे व्यक्ति जहां भी जाते हैं केवल विसंगतियाँ ही देखते हैं| धन-संपत्ति और अन्य पदार्थों में कोई सुख नहीं है जब तक आपके मस्तिष्क में शान्ति और समरसता ना हो| जिसके अपने ह्रदय में शान्ति नहीं उसे अन्य किसी जगह शान्ति नहीं मिल सकती|"

Thursday, November 25, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,


"अपने ध्येय की प्राप्ति के लिए भूतकाल के घटनाक्रम तथा आने वाली परिस्थिती का ख्याल कर कार्य करते रहो; विधि के विधान के अनुरूप आचरण करो I नित्य संतुष्ट रहो I कभी भी चिन्ता और व्याकुलता को अपने मे पनपने न दो I"

साईं वचन

"सारे जगत में है साईं नाम है प्यारा,दिन दुखी की सेवा कर ले,साईं वचन है न्यारा"

Wednesday, November 24, 2010

Sri Paramahansa Yogananda

जब आप अपनी खुशी के बारे में सोचते हैंदूसरों को खुशियां देने के विषय में भी सोचेंइसका अर्थ यह नहीं है कि आप् संसार के लिए सब कुछ छोड देंयह असंभव है|लेकिन तुम्हें दूसरों के लिए सोचना अवश्य चाहिए|

Tuesday, November 23, 2010

साईं से प्रार्थना,

ॐ साईं राम ,
"बाबा से विनती करू,चंचल को मोड़,साईं की सेवा करू,चिंता सारी छोड़"

Monday, November 22, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

जहाँ स्नेहपूर्ण प्रेमभक्ति होती है, जहाँ बाबा के साथ प्रेमपूर्ण लगाव होता है, यथार्थ मे केवल वही प्रेम की तीव्र इच्छा प्रकट होती है I वास्तव मे केवल वहीँ उनकी कथाओं के श्रवण से प्राप्त होने वाले परमानंद को देखा जा सकता है I

Thursday, November 18, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,


"जिसने अपनी बुद्धि ब्रह्म मे स्थिर कर ली हो, उसे स्वत: ही साक्षात्कार का अनुभव हो जाता है I ऐसे  महात्मा केवल अपनी दृष्टी की शक्ति से ही उन पापों पर विजय प्राप्त कर लेते है, जिन्हें जीत पाना असंभव होता है I"

Tuesday, November 16, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

महान योगियों के केवल दृष्टीपात से नास्तिक तक पापमुक्त हो जाते हैं ; तो फिर आस्तिकों के क्या कहने ? उनके पाप तो सहज ही नष्ट हो जाते हैं I

Monday, November 15, 2010

साईं वचन

"जो मुझमें श्रद्धा ला कर मेरा चिन्तन करता हैं , उसके समस्त कार्य तो मैं करता ही हूँ -- मैं उसे मोक्ष भी प्रदान करता हूँ"

Thursday, November 11, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

साईं के दर्शन मात्र का ऐसा प्रताप है कि वह हमें हमारे पापों से मुक्त कर देते हैं, जिससे हमें इस जीवन मे और आगे इस संसार के उच्चतम सुखों कि भरपूर मात्रा मे प्राप्ति हो जाती है I 

Wednesday, November 10, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

ॐ  साईं  राम, 
"मधुर  कथा  साईं  कहे, शिक्षा  हम  पा जाएँ, 
जैसा  भी  जो  बोयेगा, वही काटता  जाए, 
साईं जी अपनी कृपा दृष्टि रखना जी 

Monday, November 8, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,


"चाहे किसी का कोई भी गुरु हो, व्यक्ति को अपने गुरु मे दृढ़ विशवास होना चाहिए I उसे किसी दुसरे मे ऐसा विशवास नहीं रखना चाहिए I इस शिक्षा को हमे अपने ह्रदय मे दृढ़ता से बसा लेना चाहिए I"

Tuesday, November 2, 2010

साईं वचन

"प्रेम तथा श्रधा से किया गया एक नमस्कार ही मुझे पर्याप्त है |"

Monday, November 1, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

इस सर्वमान्य सिध्दांत के अनुसार संत वचन कभी भी नि:सार नहीं होते I उनका ध्यान पूर्वक मनन करने पर उनसे गहन व महत्वपूर्ण विषय प्रकाशित होते हैं I

Saturday, October 30, 2010

SANDESH

हमेशा अपने चेहरे पर मुसकराहट बनाये रखे भले ही हमें ऐसा प्रयत्न पूर्वक् करना पडे़। हम इसे कैसे भी शुरु करें।आप उस गुण को अपने अन्दर मान ले जो आप में नही है।यदि कोई अच्छी आदत है जिसे आप विकसित करना चाहते हैं,ऐसी क्रिया कीजिये जैसे वह गुण आपके अन्दर है। धीरे-धीरे यह वास्तविकता हो जायेगी ।यहां तक कि यदि आपको मुसकराना पसन्द नही है फिर भी किसी तरह से मुसकरायें और आप स्वत: ही आनन्दित महसूस करेंगे।

Friday, October 29, 2010

sandesh

"बाबा जी आशीष दें और मुझे समझाए,
चिंता त्यागो तुम सभी,वे कल्याण कराएं"

Thursday, October 28, 2010

Swami Sivananda

यदि तुम सोचते हो कि तुम दूसरों से श्रेष्ठ हो, तुम उनके साथ घृणात्मक व्यवहार करना शुरु कर दोगे। श्रेष्ठता और हीनता अज्ञान की उपज है। समान दृष्टि विकसित करो। जब आप एक को ही सब जगह देखते हो तब श्रेष्टता और हीनता कहां है? अपने दृष्टिकोण को और मानसिक अभिवृत्ति को बदलो और शांति पूर्वक रहो।

Wednesday, October 27, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

संतो का नित्य व्यवहार इस प्रकार होता है - वे पहले विचार करते हैं और फिर उच्चारण करते हैं I संतो के उच्चारण को आदर सहित आचार मे लाया जाता है I 

Tuesday, October 26, 2010

Swami Sivananda

असावधानी और विस्मरण् ये दो ऐसे बुरे गुण हैं जो मनुष्य की सफलता के रास्ते मे खड़े रहते हैं। एक लापरवाह व्यक्ति किसी भी कार्य को साफ और सही तरीके से नहीं कर सकता। असावधान व्यक्ति लगकर किसी कार्य को करने का ज्ञान नही रखता।उसमें ध्यान की एकाग्रता नही होती। तुम्हें इन बुराईयों को दूर करने के लिये एक दृढ इच्छा शक्ति को विकसित करना होगा।इन बुराईयों के विपरीत गुणों को विकसित करना होगा।

Friday, October 22, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

संतो के शब्द कभी भी अर्थहीन नहीं होते I वे तो सदेव महत्वपूर्ण ही होते है I उनका सही मोल कौन जाँच सकता हैं 

Thursday, October 21, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

संत तो अपनी निर्गुण निराकार स्थिति को त्याग कर केवल भक्तो के उपकार के लिए, उन्हें जन्म मरण के चक्र से मुक्ति दिलाने के लिए ही अवतार लेते हैं I

Wednesday, October 20, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

उन्हें भूत, भविष्य और वर्तमान का स्पष्ट ज्ञान होता है, मानो वह उनके हाथ के तेल में रखे कमल के समान हो I जब भक्त उनकी आज्ञा का पालन करते हैं तो उन्हें सुख और शांति कि प्राप्ति होती है I  

Tuesday, October 19, 2010

Sri Paramahansa Yogananda

समृद्धि के नियम को मनुष्य द्वारा स्वयं अपने लाभ के लिए ही तोड़ा मरोड़ा नहीं जा सकता जब तक दूसरों के सुख को अपनी समृद्धि में समाहित नहीं कर लेते तुम आदर्श रूप में कभी समृद्ध नहीं हो पाओगे अपने आप को इस बात की लिए प्रेरित करो कि आपके कार्यऔर योजनाओं से दूसरों को लाभ कैसे मिल सकता है

Thursday, October 14, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

संक्षेप मे हम योजनाएँ बनाते हैं ; लेकिन हम यदि अंत के विषय मे कुछ नहीं जानते ; यानि पहले क्या हुआ था और बाद में क्या होने वाला है I लेकिन केवल संत ही जानते है, कि हमारे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है ; क्योकि ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे वे नहीं जानते हों I

Monday, October 11, 2010

Sri Paramahansa Yogananda

प्रत्येक गलत कार्य व्यक्ति के स्वयं के विरोध में जाता है इससे शान्ति और खुशी नहीं मिलती कभी-कभी अच्छा बनना कठिन लगता है जबकि बुरा बनना बहुत आसान; और बुरी आदतों को छोड़कर ऐसा लगता है कि हमसे कुछ छूट गया है ऐसी बातों से बचो यह निश्चित रूप से आपके लिए हानिकारक है उन कार्यों को चुनो जिससे आपको खुशी और स्वतंत्रता मिले सदव्यवहार और सदाचार को विकसित करो जो तुम्हें स्वतंत्रता की ओर ले जाता है

Sunday, October 10, 2010

Swami Sivananda

भटके हुए लोगों के लिए दीपक बनो,बीमारऔर रोगियों के लिए डाक्टर और नर्स बनो,जो निर्भयता और अमरत्व के दूसरे छोर परजाने के इच्छुक हैं
उनके लिए नाव और पुल बनो |

Saturday, October 9, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

संतो मे विशवास करने से अज्ञानियों कि अज्ञानता का अंत होगा और जो ज्ञानी अपने ज्ञान पर गर्व करते है, उनकी शंकाए और अटकले भी दूर हो जाएँगी फलत: उनके ह्रदय मे भी उत्तम विचार और भावनाएँ जाग्रत होगी I

Friday, October 8, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

संत तो करुणा के कारण द्रवित होकर अज्ञानियों को भी अपनी शरण मे लेते हैं: ताकि उस क्षण उनमे विशवास जाग्रत हो जाए I लेकिन अभिमानी और घमंडी बनकर ज्ञान प्राप्त करना निष्फल होता है I 

Sunday, October 3, 2010

Saturday, October 2, 2010

Shirdi ke श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"ईशवर ऐसे अज्ञानी, निष्कपटी प्राणियों पर भी अपनी करुणा, दया और कृपा करते हैं,लेकिन जो ईशवर से विमुख होकर उनसे दूर भागते हैं, वे अपने ही अहंकार मे भस्म हो जाते हैं" I

Thursday, September 30, 2010

Shri Krishna Bhagavad Gita

One who has control over the mind is tranquil in heat and cold, in pleasure and pain, and in honor and dishonor; and is ever steadfast with the Supreme Self.

Tuesday, September 28, 2010

Shirdi ke श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

 "संत अपने भक्तो की भक्ति के लिए प्रेमवश उनके कल्याण के लिए अपना दिव्य गुणसमूह पुर्णतः उपयोग किया करते है I जब संत अपने भक्तो की सहायता के लिए दौड़ते हैं, तो पर्वत घाटी जैसी बड़ी से बड़ी रूकावट को पार करना उनके लिए कठिन नहीं होता" I

Sunday, September 26, 2010

Sai Moksh ki Rah

"नव-नाथो की भक्ति जब तुझको कठिन दिखे,
तु साईँ की भक्ति से राह मोक्ष की पाए "।साईँ कृपा हम सब पर बनी रहे।

Saturday, September 25, 2010

Sai Ki Sharan

"चाहे स्वीकार करे या अस्वीकार करे,सो तो होकर ही रहेगा,केवल साईँ की शरण ही हमेँ सुखो और दुःखो से परे ले जा सकती है"।

Wednesday, September 22, 2010

संदेश,

"तुम्हें अपने कर्तव्य को बहुत कुशलता से पूरा करना चाहिए तुम जो भी कार्य करो उसे विधिवत और दक्षता से करो अहंकार को त्याग दो और अपने कर्तव्य को सम्मान, पैसा और प्रशंसा के लिए नही वरन अपनी आतंरिक इंद्रियों को शुद्ध करने के लिए करो ताकि भगवदभक्ति का विकास हो सके |

Tuesday, September 21, 2010

Shirdi ke Sai ji se Vinti

जय जय सतगुरु साईनाथ ! मैं आपके चरणों में नमन करने के लिए अपना माथा टेकता हूँ I आप निर्विकार और अखण्डस्वरूप हैं I उन पर कृपा करो जो (यानि में) आपके शरणागत होते हैं I

Monday, September 20, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

चाहे कितनी ही कठोर और पीड़ायुक्त परीक्षा क्यों न हो, भक्त को कभी भी अपने गुरु-देव को नहीं छोड़ना चाहिए - साईं ने भक्तो को प्रत्यक्ष अनुभव देकर इसकी सत्यता को प्रमाणित किया और उनके गुरु के प्रति उनके विशवास को दृढ़  किया I

Sunday, September 19, 2010

Sri Paramahansa Yogananda

जिस प्रकार दहकते कोयले की लालिमा से अग्नि का भान होता है, उसी प्रकार शरीर की सुन्दर कार्यशैली से आत्मा की उपस्थिति का भान होता है |

Friday, September 17, 2010

Swami Ramsukhdas:

किसी के लिये कुछ करके यदि आपको अभिमान होता है कि आपने दूसरों के लिये कुछ अच्छा किया है तो यह आपकी गलती है। क्योंकि जो भी योग्यता, कला, ज्ञान आपके पास है वह समाज से ही आपको प्राप्त हुआ है। यदि तुम इसका प्रयोग समाज के लिये करते हो तो यह कोई महान कार्य नहीं है। यदि आपको इस बात का अभिमान है तो आपमे अहंकार विकसित हो रहा है और यह आपको मेरेपन की ओर ले जाता है।
(Swami Ramsukhdas)

Thursday, September 16, 2010

Shirdi Sai Sandesh

"साईं संतो में महान हैं I वे ईश्वर के अवतार हैं I जो पूर्ण समर्पण कर उनके सामने नतमस्तक हो जाएगा, वे उस पर अवश्य कृपा करेंगें I"

Wednesday, September 15, 2010

Shirdi Sai Sandesh

"ब्रह्म के दो स्वरूप - निर्गुण और सगुण I निर्गुण निराकार है और सगुण साकार है I क्योंकि वे एक ही ब्रह्म के दो रूप हैं, इसलिए परस्पर भिन्न नहीं हैं I"

Tuesday, September 14, 2010

Sri Paramahansa Yogananda:

जो व्यक्ति अच्छे भाव रखता है और अच्छे विचारों के विषय में सोचता है वह प्रकृति और जनसामान्य में केवल अच्छाई देखेगा, तुम्हें अच्छे कार्यों को ही यादरखने के लिए स्मरण शक्ति दी गई है,उन अच्छीबातों को उस समय तक याद करो जब तक कि तुम सर्वोच्च अच्छाई - ईश्वर को याद न कर लो |
A person who feels good emotions, and thinks good thoughts, and sees only good in nature and people, will remember only good.Memory was given to you to practice the recollection of good things until you can fully remember the highest Good, God.
(Sri Paramahansa Yogananda)

Monday, September 13, 2010

साईं दया की ....

"साईं ऐसी दया की मूर्ति हैं! उनका अपने भक्तों के प्रति वैसा ही स्नेह है, जैसा कि माँ का अपने नन्हे शिशु के प्रति होता है!"

Sunday, September 12, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"देवताओं को भक्तो, साधु और संत अपने जीवन से अधिक प्रिय होते हैं और उन्ही की  इच्छानुसार वे कार्य करते हैं I उनके लिए देवता धरती पर प्रकट होते हैं I" Gods love their devotees and their Saints and Sages more than themselves. Gods heeds their words and take human birth for their sake.

Saturday, September 11, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"मै पूर्णत: अपने भक्तो कि शक्ति के अधीन हूँ और सदा उनके समीप ही रहता हूँ I मै तो सदा भक्तो के प्रेम का भूखा हूँ और मुसीबत के समय जब भी भक्त मुझे पुकारते हैं मै तुरंत उपस्थित हो जाता हूँ I

Friday, September 10, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"यह सांसारिक जीवन अति विलक्षण हैं, जिसके लक्ष्ण धर्म, अधर्म आदि हैं I इनकी चिन्ता केवल वे लोग करते है, जिन्हें आत्मज्ञान का बोध नहीं हुआ होता I "

Thursday, September 9, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

जिसका ह्रदय ब्रह्म मे लीन हो गया है, जो संसार के प्रपंचो से निर्वृत्त हो गया है, जो निर्त्य के सांसारिक प्रपंचो से मुक्त हो गया है, वह ब्रह्म से एकत्व स्थिति का अनुभव करता है और केवल वह ही आनंदमूर्ति है I

Wednesday, September 8, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"भगवान कृष्ण, जो स्वयं परमात्मा हैं, कहते हैं कि "संत मेरा ह्रदय और आत्मा हैं; वे मेरी सजीव प्रतिमा हैं; प्रेम करने वाले और दयालु संत मेरे अलावा कोई अन्य नहीं हैं I" "Krishna who is himself God, says "A Saint is as it were, my soul, my living image and a saint is my beloved and is mysel...

Tuesday, September 7, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

बाबा अत्यंत क्षमाशील, शान्त, सरल और संतुष्ट थे I यधपि वे शरीरधारी प्रतीत होते हैं, पर वे यथार्थ में निर्गुण, निराकार और अनंत हैं I संसार मे रहते हुए भी वे अन्दर से निर्मुक्त और आत्मरत हैं I

Monday, September 6, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

संतो की  इस धरती पर अवतार लेने की  यही स्थिति होती हैं, वे प्रकट होते हैं और प्रस्थान करते हैं I परन्तु जिस प्रकार संत जीवन व्यतीत करते हैं, उससे वे दुसरो को सांत्वना और सुख पहुंचाते हैं और संसार को पावन करते हैं I

Friday, September 3, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

मूर्ति, वेदी, अग्नि, प्रकाश, सूर्य, जल और द्विज (ब्राह्मण) आदि सप्त पवित्र उपासना की वस्तुएं होते हुए भी गुरु की उपासना ही इन सभी में श्रेष्ट है I इसलिए अनन्य भाव से उनका पूजन करें I

Wednesday, September 1, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

यह देह नाशवान है; किसी न किसी दिन इसका अंत निश्चित है I इसलिए भक्तो को इसके लिए दू:खी न होकर उस आदि-अनंत यानि ईशवर का ध्यान करना चाहिए I

"The body is perishable certainly. It is going to come to an end, at some point of time. Therefore, the devotees should not feel distressed but should concentrate on the eternal."

Tuesday, August 31, 2010

संदेश

मस्तिष्क इन्द्रियों की अपेक्षा महान है। शुद्ध बुद्धिमत्ता मस्तिष्क से महान है। आत्मा बुद्धि से महान है, और आत्मा से बढकर कुछ भी नहीं है।
Mind is greater than the senses. Pure intellect is greater than the mind. Soul is greater than the intellect. There is nothing greater than the soul.
(Swami Sivananda)

Monday, August 30, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

एक बार तुम अनन्य भाव से उनके चरणों में समर्पण कर दोगे तो गुरु ही नहीं, अपितु ईशवर भी द्रवित हो जाएंगे I गुरु पूजा कि ऐसी महिमा है, जिसका अनुभव गुरु भक्तों को स्वयं करना चाहिए I

"The devotees of the Guru experience, on resorting to his feet with full faith, that not only Guru but Parabrahma is moved. Such is the marvel of Guru Puja! "

Sunday, August 29, 2010

संदेश

ईश्वर के प्रति समर्पण मनुष्य के सभी शत्रुओं – ईर्ष्या, द्वेष को निगल जाता है। एक बार ईश्वर के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हो जाइये, सभी दुर्गुण ईर्ष्या और क्रोध ईत्यादि पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं।
Devotion to God swallows up all the arch-enemies of man such as lust, passion and the rest. Once, the devotion to God is fully awakened, all evil passions like lust and anger are completely destroyed.
(Sri Ramakrisna)

Saturday, August 28, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

जिनके दर्शन मात्र से नेत्र तर्प्त होते हों, जहा ज्ञान का अविरल प्रबाह होता हो, उनके चरणों मे मस्तक झुकाने से ह्रदय शान्त होता है I

"Whosoever one can feast one's eye on, on whose feet one can rest one's head, on whom one can meditate suitably, love develops there."

Thursday, August 26, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"जीव जीव साईं बसे, बरसे प्यार अपार,
दयामई साईं प्रभु, दत्त रूप अवतार,

Wednesday, August 25, 2010

संदेश

जब तुम दूसरों के लिये जीना सीख्न लेते हो, वे तुम्हारे लिये जीएंगे। जब तुम केवल अपने लिये जीते हो,

कोई भी आपमें रुचि नही लेता है। तुम दूसरों को अपने अच्छे कार्यों द्वारा आकर्षित कर सकते हो।

Monday, August 23, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

यह हमारे गत जन्मो के शुभ कर्मो का ही फल है की हमे साईं महाराज के पावन चरणों की प्राप्ति हुई है I जन्म मरण के चक्कर में ठहराव आ गया है; और संसार का भय पूर्णत: नष्ट हो गया है I

"By my good deeds of many previous lives, I have enjoyed myself to the feet of Sai Maharaj. The cycle of birth and death has come to a stand still and the fear of Life has disappeared."

Sunday, August 22, 2010

संदेश

 ॐ साईं राम,

“देह मनुज सम त्याग के,रखते सूक्षम शरीर,
 दूर करे साईं सदा,भक्तन की भव पीड़”
 बाबा कृपा हम सब पर बनी रहे

Saturday, August 21, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

उत्तम आध्यात्मिक अवस्था की प्राप्ति के लिए संतो की संगति पूर्ण शुद्धिकरण का एकमात्र साधन है I अगर तुम सच्चे ह्रदय से संतो की शरण मे जाकर समर्पण करोगे तो तुम्हे परम शांति की प्राप्ति हो जाएगी I

"To attain the highest state, the company of a Saint is purifying. If one surrender completely, our permanent peace is assured."

Friday, August 20, 2010

संदेश

जो खुशी और सुख दूसरों के दुख और अप्रसन्नता से जन्मते है, उनका अंत दुख और कष्ट मे होना अवश्यम्भावी है यह् खुशी और लाभ अस्थाई है। यह प्रकृति का अपरिवर्तनीय नियम है।
Any happiness or gain which is born of the unhappiness of another is bound to end in suffering and sorrow and is detrimental to the enjoyer of such temporary pleasure or gain. This is the immutable law of Providence.

Thursday, August 19, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

पुर्व जन्मो में कठोर जप तप किये बिना संत दर्शन का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता I संत दर्शन से त्रिताप नष्ट हो जाते है I

Tuesday, August 17, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

सत्संग द्वारा देहिक बुध्दी, अहंकार और जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्ति हो जाती है I सत्संग तुरंत ही संसार के बन्धनो को काटकर ईशवर प्राप्ति मे सहायता करता है I

"Because of Satsang bodily attachment is destroyed. It is Satsang that break the cycle of birth and death. It is Satsang that gains the treasure of supreme energy and separates one from the worldly ties immediately."

Monday, August 16, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

चाहे स्वीकार करे या अस्वीकार करें; जो होना है, सो तो होकर ही रहेगा I केवल संतो की शरण ही हमे सुखों और दुखों से परे ले जा सकती है I

"Whether you face happily or turn your back on your destiny, what will be, will be. But to liberate oneself from both kind of destined experiences, the company of the Saint is the only way."

Saturday, August 14, 2010

संदेश

यदि हमें कोई अधिकार प्राप्त है, तो उसका प्रयोग परहित में करना चाहिए,लोगों को सांसारिक तनाव से छुटकारा दिलाना चाहिए,हम दूसरों को दुःख और परेशानी क्यों दे? अपने मस्तिष्क को शुद्ध रखें,सभी लोगों के कल्याण में लगे रहें,हममें सेवा की भावना होनी चाहिए

Friday, August 13, 2010

संदेश

सत्य से कमाया हुआ धन "सुख ही सुख" देता है,छल कपट से कमाया हुआ धन दुःख ही दुःख देता है | 

Thursday, August 12, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"मंत्र, तीर्थ, ब्राह्मण, वेद, देव और गुरु में जैसा तुम्हारा विश्वास होगा,वैसे ही तुम्हे फल मिलेगा."

Wednesday, August 11, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

अज्ञान मिट जाने पर ज्ञान प्रकट हो जाता है I जो क्षमाशील है (यानि जो सहज ही क्षमा कर दे ) वह ज्ञानी है, लेकिन जब तक देहभिमान नहीं छुटता, तब तक वह माया के अधीन रहता है I

संदेश

बहुत से लोग हमेशा अविश्व्स्त होते हैं। उनमें आत्म विश्वास नहीं होता। उनमें शक्ति, योग्यता और गुण होते हैं, लेकिन उन्हें अपनी योग्यता और गुणों मे और सफलता पाने में विश्वास नही होता। यह एक प्रकार की कमजोरी है जो सभी प्रयासो में असफलता लाती है। विश्वास एक प्रकार की शक्ति है। इससे इच्छा शक्ति विकसित होती है। विश्वास आधी सफलता है। तुमको अपनी शक्ति को पूरी तरह पहचानना चाहिये। वह व्यक्ति जिसमें विश्वास होता है, अपने सभी प्रयासो और कार्यों मे सदैव सफल होता है।

Tuesday, August 10, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

सुख के बाद दुःख आता है और कष्टों के बाद सुख की अनुभूति होती है लेकिन मनुष्य सदा सुखों का ही  स्वागत करता है और कष्टों से दूर भागता हैं I
"Happiness is followed by unhappiness; and unhappiness follows happiness. One welcomes happiness, while one turns away from unhappiness."

Saturday, August 7, 2010

संदेश

एक के बाद एक दुखों का मूल कारण तृष्णा ही है। इसलिए एक विचारवान व्यक्ति को सांसारिक तृष्णाओं के आकर्षण से एकदम दूर रहना चाहिए सच्चा धन केवल वही है जिससे प्रसन्नता मिलती है संतोष ही वह धन है उसे सच्चा सुख कैसे मिल सकता है जिसके मन में शान्ति नहीं है?
Thirst is the primary cause for bringing one misery after another. Therefore, a thoughtful man should at once turn away from the temptation of worldly thirst. True wealth is only that which brings one happiness. Contentment is that wealth. How can there be happiness for one lacking peace of mind?

Friday, August 6, 2010

साईं भगवानुवाच

"यह मस्जिद माई किसी का ऋण नहीं रखती, जो इसकी गोद में बैठता है,यह माँ की तरह उसे दुलारती है,फिकर मत करना मै नहीं रहूँगा,मेरी द्वारका माई तुम्हारे समस्त इच्छाए पूरण करेगी,मेरी गोद मै बैठना है तो द्वारकामाई कीगोद मे बैठ,मेरे साथ रहना है तो मेरे भिक्षा पात्र (जो आज भी द्वारकामाई मे रखा है) से निवाला
उठा कर खा,मुझे साथ बैठाना है तो किसी गरीब को पास बैठा"

संदेश

संसार की सभी वस्तुएं जिन्हें हम अपना कहते हैं वास्तव में भगवान की हैं मूर्खतावश व्यक्ति उन पर अपना अधिकार जताता है और दुखी तथा त्रस्त होता है
Everything in this world that we call our own really belongs to God. One foolishly arrogates their ownership to oneself and thereby feels unhappy or miserable.

Thursday, August 5, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

अगर सौभाग्यवश तुम्हे सत्संग प्राप्त हो जाए तो बिना किसी परिश्रम के तुम्हें आध्यात्मिक निर्देश प्राप्त होने लगेंगे और बुरी संगति के प्रति आकर्षण स्वत: समाप्त हो जाएगा I फलत: मन पूर्णत: सत्संग में मग्न हो जाएगा I
"If one is fortunate having in Satsang, then one understands the preaching easily. At that very moment desire for bad company will melt away. The mind will be free to enjoy the Satsang."

संदेश

स्वयम को सही मानने का स्वभाव और सही ठहराना साथ- साथ चलते है। यह बहुत खतरनाक आदत है। जब तक मनुष्य का स्वयम को सही मानने और ठहराने का स्वभाव रहेगा, वह ध्यान और आध्यात्मिकता की ओर नही बढ सकता।
Self-justification goes hand-in-hand with self-assertive nature. This is a very dangerous habit. A man can never grow in meditation and spirituality so long as he has self-assertive nature with the habit of self-justification.

Wednesday, August 4, 2010

SHIRDI SAI

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"सत्संग तुम्हे शारीरिक लगाव से मुक्त कर देगा I उसकी शक्ति इतनी प्रभावशाली है की एक बार तुम स्वयं को पूर्ण लगन से उसमें समर्पित होकर तो देखो, तुम उसी क्षण सांसारिक बन्धनों से मुक्त हो जाओगे" I
"Satsang destroys the bodily attachments. Such is the power of its strength. Once these is firm faith in it, there is truly liberation from the mundane world."

संदेश

"वस्तुओं के उपयोग में उदार और परोपकारी बनो गरीब, बीमार और अभावग्रस्त लोगों की सेवा करो उनके ह्रदय में भगवान रहता है उनकी सेवा करके तुम ईश्वर की सेवा करोगे अत: उनके प्रति घ्रिना, दुर्भाव और ईर्ष्या की भावना मत रखो"
Be liberal and benevolent in the use of things. Serve the poor, the sick and the distressed who suffer from shortage. Their heart is the abode of God. By serving them you will serve God. Therefore do not have the feeling of hatred, malice and jealousy for them.

Tuesday, August 3, 2010

संदेश

अपने कष्ट के लिए दूसरों को जिम्मेवार ठहराना सबसे बड़ी भ्रान्ति है दूसरे के अवगुणों और अपने गुणों पर ध्यान मत दो जो अपने लिए कुछ नहीं चाहता, उस व्यक्ति को सब पसंद करते हैं
To regard another as the cause of one’s suffering is a delusion. Forget your virtues and other’s vices.One who desires nothing for himself is desired by all.

साईं संदेश

"दर्शन मेरा पाए वह, प्रेमी मेरा होए,
बिन मेरे संसार को, शुन्य मानता होए" 

Monday, August 2, 2010

Shri Krishna Bhagavad Gita

You have the power to act only--
you do not have the power to influence the result--
...therefore you must act without the anticipation of the result--
without succumbing to inaction.

संदेश

गलत कार्य का परित्याग सही कार्य की शुरुआत है
बुराई से अच्छाई की ओर प्रस्थान बुराई का नाश है
बुरे कार्य को न दुहराना ही सबसे बड़ी अच्छाई है
Renunciation of wrong action spontaneously leads to right action. Returning good for evil destroys the evil. Not to repeat a bad deed is the best atonement.

Sunday, August 1, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

धन्य धन्य है संतो की संगति I उनकी महिमा का वर्णन कौन कर सकता है I सदभक्तो को इससे विवेक और परम शांति की प्राप्ति होती है I

Saturday, July 31, 2010

संदेश

जब हमारा मुकाबला कठिनाई, खतरों और असफलताओं से हो तब हम अपनी पूरी शक्ति से प्रार्थना करें और अपने कर्मों, विचारों तथा स्वयं में विशवास बनाए रखें
(Swami Paramananda)

Friday, July 30, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

जो स्वयं को कफनी से ढंकता हो, जिस पर सौ पेबंद  लगे हों, जिसकी गद्दी और बिस्तर बोरे का बना हो; और जिसका ह्रदय सभी प्रकार की भावनाओं से मुक्त हो, उसके लिये चाँदी के सिंहासन की क्या कीमत ?, इस प्रकार का कोई भी सिंहासन तो उनके लिये रुकावट ही होगा I फिर भी अगर भक्तगण पीछे से चुपचाप सरका कर उसे निचे लगा देते थे, तो बाबा उनकी प्रेम और भक्ति देखते हुए, उनकी इच्छा की आदरपूर्ति के लिए मना नहीं करते थे I
"Whose clothing is a patched up kafni; whose seat is sack cloth; whose mind is free of desires. what is a silver throne for him ?, Seeing the devotion of the devotees, he ignored the fact that they. after their difficulties were resolved turned their back on him. "

Thursday, July 29, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

बुरा संग सदैव हानिकारक होता है; वह दुखों और कष्टों का घर होता है, जो बिना बताये तुम्हे कुमार्ग पर लाकर खड़ा कर देता है Iवह सभी सुखों का हरण कर लेता हैं I एसी बुरीसंगति के कारण होने वाली बर्बादी और पाप से साईनाथ या सदगुरु के अलवा और कौन रक्षा कर सकता हैं ?
"Bad company is absolutely harmful. It is the adobe of severe miseries. Unknowingly it would take you to the by-lanes, by-passing the highway of happiness. Without the one and only Sainath or without a Sadguru who else can purify the ill-effects of the bad company."

Wednesday, July 28, 2010

(श्री मद भागवत गीता सार)



* क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।

* जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।

* तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।

* खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।

* परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।

* न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो?

* तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।

* जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनंन्द अनुभव करेगा।

Tuesday, July 27, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"अपनी चातुर्य के सभी तर्क छोड़ कर सदैव "साईं" स्मरण करो, तब तुम देखोगे कि तुम किस प्रकार निर्विघन भव सागर से पार उतर जाओगे ! इस विषय मे कोई संशय मत करना I"
"Abandoning all the million clever and cunning ways, recall always "Sai Sai". You will be able to cross the worldly ocean. Have no doubts"

Monday, July 26, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

सदगुरु के सानिन्ध्य में रहकर स्वयं को संसार के जंजालो से मुक्त कर लो I इसी मे तुम्हारा कल्याण है I इस विषय मे किसी प्रकार की शंका चित्त में न करो I

"Hold on to the good company of the Guru and the virtuous. Disentangle from the worldly ties. Definitely your fulfillment. Have no doubts."

संदेश

जैसे हम सागर की जितनी गहराई  मे जाएँगे,हम उसकी गहराई  मे छुपे वो  सारे रहस्यों को जानने मे सक्षम होते जाएगें जो उसकी गहराई  मे छुपे हैं, ठीक वैसे  नाम जाप करते हुए अपने अंदर बिराजमान सागर की जितनी गहराई  मे उतरते  जाएगें इस संसार को समझने मे हम उतने ही सक्षम  होते जाएगें, मानस जून हम जीवो की असली मंजिल पाने की सीढ़ी  का आखिरी चरण  है,अगर नाम जाप की कमाई करते रहे तो मंजिल तक पहुँच जाएगें और फिसल गए तो फिर से इस जनम-मरण के चक्कर  मे फंस जाएगें. जीव  को कोशिश करनी चाहिए की वो  नाम जाप करते हुए अपने सतगुरु का ही रूप बन जाए |

Sunday, July 25, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

संत के सानिन्ध्य का महत्त्व अति महान है उससे अहंकार पूर्णत: नष्ट हो जाता है I कोई अन्य साधन सत्संग के समान प्रभावपूर्ण नहीं है I
"Such is the greatness of the Satsang that it completely destroy bodily pride or ego. Therefore there is no other means than Satsang."

Friday, July 23, 2010

‎"डर मत मै तेरे पीछे खड़ा हूँ" : साईं

Thursday, July 22, 2010

॥जय श्री कृष्ण

लेना चाहते हो तो आशीर्वाद लो। देना चाहते हो तो अभय दान दो।
खाना चाहते हो तो क्रोध और गम को खाओ।
मारना चाहते हो तो बुरे विचारों को मारो।
जानना चाहते हो तो परमेश्वर को जानो।
जीतना चाहते हो तो तृष्णाओं को जीतो।
पीना चाहते हो तो ईश्वर चिन्तन का शर्बत पीओ।
पहनना चाहते हो तो नेकी का जामा पहनो।
करना चाहते हो तो दीन-दुखियोंकी सहायता करो।
छोड़ना चाहते हो तो झूठ बोलना छोड़ दो।
बोलना चाहते हो तो मीठे वचन बोलो।
तौलना चाहते हो तो अपनी वाणी को तौलो।
देखना चाहते हो तो अपने अवगुणों को देखो।
सुनना चाहते हो तो दुःखियोंकी पुकार सुनो।
पढ़ना चाहते हो तो महापुरुषोंकी जीवनी पढ़ो।
दर्शन करना चाहते हो तो देव दर्शन करो।
चलना चाहते हो तो सन्मार्ग पर चलो।
पहचानना चाहते हो तो अपने आप को पहचानो।

Wednesday, July 21, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"सांसारिक जीवन की सभी भौतिक वस्तुओं अर्पण कर स्वयं को साईं के चरणों मे समर्पित कर दो I तब वे तुम पर कृपा करेंगे I उनकी कृपा प्राप्ति का यह सबसे सरल उपाय हैं I" "The easy way out for the householder is to surrender his mind to the feet of Sai. Then he will bless you."

Tuesday, July 20, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

संतो की कथाएं सभी को सदाचार का मार्ग दिखाती हैं; वे सांसारिक जीवन के भय और कष्टों को नष्ट करके, ज्ञान की ज्योति प्रज्ज्वलित करती हैं, जिससे सरलतापूर्वक मुक्ति प्राप्त हो जाती है I
"Stories of the Saints put everyone on the path of righteousness. They remove the worldly fears and miseries and appear themselves for the welfare of the others, in attaining the goal of life."

Monday, July 19, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"मन का कार्य विचार करना है I बिना विचार किये वह एक क्षण भी नहीं रह सकता I यदि उसे शारीरिक अथवा इन्द्रियों के आनंद से सम्बंधित सुखों मे लगा दोगे तो वह उन्ही का चिंतन करने लगेगा I यदि उसे गुरु को अर्पण कर दोगे तो वह गुरु के सम्बन्ध में ही चिंतन करता रहेगा I"

"The work of the mind is to think. There is not a single moment when one does not think. If the subject is the senses, the mind will think of the senses, but if it is the guru, it will think of the Guru."

Saturday, July 17, 2010

संदेश,

को समझना संसार के सभी रहस्यों को समझने के सामान है |

Friday, July 16, 2010

Sai Say's

"I shall draw out My devotees from the jaws of death."

Thursday, July 15, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

साईं महाराज ही परमानंद और परम शांति के आधार हैं I मैं शुद्ध और अहंकारहित चित्त से और भक्ति भाव के साथ उन्हें प्रणाम करता हूँ I

"Sai Maharaj is the treasure of peace. He is the adobe of pure and heavenly bliss. I prostrate myself to him, who is without ego and who is unsullied (undefiled)."

Wednesday, July 14, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

सदैव  स्मरण रखो की भक्तो की भलाई के निमित्त ही संत अवतार लेते हैं; उनकी भावनाएं, उनके सांसारिक कार्यकलाप केवल भक्तो के भले के लिए होते हैं I 

For the sake of devotees he took form. His emotions and passions were also for them. Such is the popular behaviour of the saints. All of you should realise this as the truth.

Monday, July 12, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

साईं पूर्ण रूप से विरक्त थे, शुद्ध चेतन्य स्वरूप थे, वे परमानंद थे I काम, क्रोध की प्रबल भावनाएं उनके चरणों की शरण लेती थी I वे इच्छारहित और पूर्णत: संतुष्ट थे I

"Baba was not attached. He was the Supreme Being, turned towards his self, whose desire and anger were put to rest, who was free from desires and attachments, and who had completely achieved his mission."

Sunday, July 11, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"कीर्ति, श्री, वैराग्य, ज्ञान, ऐश्वर्य और उदारता - ये छ: विशेष गुण बाबा में विद्यमान थे

"Sai is the embodiment of the six virtues. He shine with success, wealth, non attachment, intelligence, prosperity and generosity."

Saturday, July 10, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

ईशवर निराकार हैं I वे शिरडी मे साईं रूप मे प्रकट हुए I उन्हें जानने के लिये सर्वप्रथम अहंकार समस्त इच्छाएँ, क्रोध, घ्रणा और कामुक विचारों का नष्ट होना आवश्यक हैं I उन्हें तो केवल प्रेम और भक्ति के द्वारा ही जाना जा सकता है I
"So be it, Because of the devotion of the devotees, the nirakar (that... which is without form) has manifested in Shirdi in the form of Sai. He who has abandoned bodily ego and who has no passions understand him through devotion."

Friday, July 9, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"भिन्न भिन्न प्रकार की सांसारिक शिक्षाएं (भोतिक, विज्ञानं, कला) प्रदान करने वाले गुरु अनेक प्रकार के होते हैं I लेकिन सदगुरु केवल वही होता है,जो आत्मज्ञान की प्राप्ति करवा दे I यथार्थ में जो हमे अत्मिस्थित बनाकर इस भवसागर से पार उतार दे, वह सर्वशक्तिमान ही सदगुरु है I वास्तव मे उनकी महिमा अप...रम्पार हैं !
"There are many teachers available for physical science. But he who brings his student to realise his own nature is the Sadguru. He is the real, the great one who can take you across the worldly ocean. His greatness is imperceptible."

Thursday, July 8, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

वे किसी से किसी प्रकार की इच्छा नहीं रखते थे; बल्कि सभी साथ एक जैसा व्यवहार करते थे; यहाँ तक की क्रत्धन (अहसान को न मानने वाले) पर भी वे अपनी कृपा की वर्षा बरसाते थे I

He is without expectations and regards everything equally, showers nectar of blessing even on those who have done harm to him. His mind remains unperturbed in good times or bad times. He entertains no doubt.

Wednesday, July 7, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

साईं समस्त प्राणियों मे ब्रह्म या स्वयं ईशवर का दर्शन किया करते थे; मित्र और शत्रु को एक नज़र से देख, उनमे भेदभाव नहीं करते थे I

"He who look at everything and at all creatures as Brahman itself, who looks upon friends and foes with equality and who does not discriminate the least,"

Rare Photos: Making Of Shirdi Sai Baba's Idol for Calgary`Canada

please click on this bellow link , i am very sure that you liked it .with lots of wishes.
http://saibabadwarkamai.com/forum/index.php?topic=4269.0

Tuesday, July 6, 2010

संदेश

दुःख में चीखना चिल्लाना प्रभु के विधान में असंतोष व्यक्त करना है ! भक्त्ति मार्ग में स्थित भक्त्त तो प्रत्येक स्थिति में प्रभु इच्छा मान कर संतुष्ट रहता है !

प्रभु से कभी कुछ मांगो मत !

Monday, July 5, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

जिसकी भावना हो की "में ब्रह्म हूँ " जो अखंड आनंद की मूर्ति हो, जो निविर्कल्प चित्त स्थिति को प्राप्त कर चुका हो, ऐसे व्यक्ति मे संन्यास और आत्मत्याग की भावना शरण ले लेती है I

His whole nature is one with Brahman. He is the embodiment of permanent bliss; his mind is without any doubts. He is the incarnation of resignation (denial of pleasures).

Sunday, July 4, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

जो सांसारिक जीवन के दुखों - सुखों को मिथ्या मानता है और जिसने आत्मतलीन होकर इनके स्वप्न-भ्रम को दूर हटा लिया हो, वह मुक्ति प्राप्त कर लेता है I

Saturday, July 3, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

बाबा कहते है, "जिस प्रकार जागने पर स्वपन के राज्य का वेभव अद्रश्य हो जाता है, उसी प्रकार सांसारिक जीवन की मिथ्या विशेषता भी अद्रश्य हो जाएगी" I

"Just as the grandeur of the kingdom of dreams turns into nothingness as soon as the person awakens; similarly, this world is just an illusion. This is his conviction."

Friday, July 2, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

'अगर कोई तुम्हारी निंदा करे या तुम्हे नुकसान पहुँचाये, तो तुम प्रतिकार न करो; बल्कि मोका आने पर उसकी भलाई करो I' यही बाबा के उपदेश का सार है I " If anyone harm you in anyway, you should not retaliate, if possible try to oblige others". This is the sum total of his teaching.

Thursday, July 1, 2010

संदेश

“Give food to the hungry, water to the thirsty, and clothes to the naked. Then God will be pleased.”

Wednesday, June 30, 2010

मंजिल एक राह अनेक-

और जितने राही हो उतनी ही राहें निर्मित हो जाये तो कौन रोकने वाला है
यक़ीनन राहें विभिन्न होंगी तो तरीके भी विभिन्न होंगे
मुख्यता: खेल तो रुझान का है कि कौन कहाँ मंजिल माने
वस्तुत: जिसका जो अनुशरण करेंगे वह उनके द्वारा निर्मित राह पर ही बढेंगे
हर राह पर,,,,बीच बीच में,,,, मदारी भी मिलेंगे जो वही मंजिल मान कर बैठ गए
हो सकता है कि उनके खेल में हम आगे जाना या वापस आना ही भूल जाये
कौन मदारी अपने ग्राहकों से आगे जाने को कहेगा
यक़ीनन हमें ही इस बार कुछ तैयारियों के साथ चलना होगा
हमें अपने स्वभाव में भेद विज्ञान कि कला जाग्रत करनी होगी
हमें परमाणुयों से निर्मित हर पदार्थ (पुद्गल) के विज्ञान को जानना होगा
मिथ्यात्व को बढाने वाले कारणों को जानकार उनसे दूर रहना होगा

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

इद्रियों के अधीन कभी भी नहीं होना चाहिए I लेकिन हमेशा उन्हें भी दबाया नहीं जा सकता I प्रसंगानुसार विधिपूर्वक हमें उनका गति अबरोध करना चाहिए I

Tuesday, June 29, 2010

Sai Says:

“I will not allow my devotees to come to harm.”

Monday, June 28, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

सदगुरु तो केवल भक्तो का भक्ति भाव और विशवास देखकर ही उन्हें ज्ञान दे देते हैं I उसे समझना इतना सरल हो जाता है, मानो वह आपकी हथेली में ही रखा हो और वे मोक्ष की प्राप्ति भी करा देते हैं I जिसके लक्षण परमानन्द की अनुभूति होना हैं I

"When he sees the faith and devotion of the devotees, he gives the wealth of happiness due to moksha in the palm of the hands most easily."

Sai Says:

“God has agents everywhere and their powers are vast.”

Sunday, June 27, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

जिस प्रकार नदी या समुंदर पार करते समय नाविक पर विशवास रखना पड़ता है, उसी प्रकार का विशवास हमे भवसागर से पार होने के लिये सदगुरु पर करना चाहिये I "When one wishes to cross the ocean, one must have faith in the navigator; similarly to cross the samsaric ocean one must have faith in the Guru."

Message of The Day

No One will Manufacture A LOCK without A Key ! Similarly God Won't Giv Problems Without A Solution.So Defeat Ur Problems With Confidence...

Saturday, June 26, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

"जब सदगुरु नाव के नाविक हो, तब सच्चे और निष्कपट भक्त तीन प्रकार के कष्टों- आधिभोतिक, आध्यात्मिक और आधिदेविक पर विजय प्राप्त कर लेते हैं I "

Sai Says:

“If you avoid rivalry and dispute, God will protect you.”

Friday, June 25, 2010

Peace of mind

"Once a man went off in search of peace, finding his city life too loud and busy. Hoping to find it amidst nature's pristine solitude, he sat down in a relatively quiet spot in the forest and began his contemplation. But he couldn't continue because the sound of a frog croaking irritated his mind. So he got up and moved off to another place. But then all he could hear was the chirping of the crickets. He moved to another spot, but then the sound of the chirping birds started to annoy him. So again, he picked himself up and moved to another area where he built himself a little cottage, and sat inside with all the doors and windows closed, so as not to be disturbed by any noise. "But then, all of a sudden, all he could hear was the "tick, tick, tick" of his wristwatch. So, he removed his watch and kept it aside. Again he tried to find some peace and quiet, but now, the sound of his heartbeat suddenly felt very loud and distracted him. In this way, the man was never able to find any quiet place.
"Children, Real peace and silence is not to be found in the external world. It is a state of mind. It is not the external conditions that we need to overcome. Rather, it is our own minds that we need to control and overcome. If we are at peace internally, any external disturbance will never distract us. Living in the midst of everything, we should learn to gain peace of mind!"

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

"जहाँ अनन्य भाव से गुरु की सेवा होगी, वहां सांसारिक जीवन के दुःख और कष्टों का बिनाश हो जाएगा I फिर न्याय अथवा मीमांसा या दर्शनशास्त्र आदि और अन्य बोद्धिक प्रयतन की भी कोई आवश्यकता नहीं होती"

Thursday, June 24, 2010

Sai Says:

“The giver gives, but really he is sowing the seed for later: the gift of a rich harvest.”

Wednesday, June 23, 2010

संदेश

भेष-भूषा अक्सर भ्रमित करने के लिए भी धारण कि जा सकती है दरअसल हमारे द्वारा ही ये व्यवस्था निर्धारित कि गई है कि किसका भेष कैसा हो
ये सारी व्यवस्थाये मात्र उपरी बदलाव को प्रदर्शित करती है वास्तव में भीतर के बदलाव का भेष-भूषा से कोई सम्बन्ध नहीं है क्रष्ण अटखेलियाँ करते, युद्ध करते हुए भी संत हो सकते हैं संत,,, साधू के लिबास में भी कंस हो सकते है कैसे निरख सकोगे भीतर के संत को,,,दोहा चोपाई तो कोई भी रट लेता है वास्तव में तो व्यक्तित्व किसी लिबास या भेष का मोहताज नहीं है भेष बदलकर व्यक्ति दूसरों को ही नहीं खुद को भी भ्रमित करता है दरअसल इस भ्रम में भी अस्थाई आनंद छुपा है कैसी अनोखी व्यवस्थाएं है संसार कि वास्तव में ये व्यवस्थाएं संसारी होने का परिचय मात्र है
((((( वास्तविकता इन सबसे परे है ))))) ----

Tuesday, June 22, 2010

Om Sai.....

“The Moral Law is inexorable, so follow it, observe it, and you will reach your goal: God is the perfection of the Moral Law.”

Monday, June 21, 2010

Sai Says

“I shall be ever active and vigorous even after leaving this earthly body.”

Sunday, June 20, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

"याद रखो की जो सब प्राणियों में मेरे दर्शन करता है, वह मुझे अत्यंत प्रिय हैंI इसलिए द्वेत या भेदभाव की भावना छोड़ दो I मेरी सेवा करने का यही तरीका हैं I"
(CI 130 Adhaya 09 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria)

Sai Says

“My devotees see everything as their Guru.”

Saturday, June 19, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

चाहे वह भाकरी हो या भाजी या वह पेड़ा हो, अगर वह भक्ति पूर्वक अर्पण किया गया हो तो उसकी बात ही निराली है I ऐसे अडिग विश्वास  को देखकर तो साईं का ह्रदय प्रेम से उमंड पड़ेगा I
(CI 67 Adhaya 09 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria)

Sai Says

“I am formless and everywhere.”

Friday, June 18, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

आप बाबा के लिए चाहे कुछ भी भेजें और चाहे किसी के हाथ भेजें, बशर्ते की वह श्रद्धा और प्रेम भाव के साथ भेजा गया हो, बाबा निश्चित रूप से भेंट देने वाले के भूल जाने पर भी उसे याद दिलवाकर उससे वह छोटी सी भेंट भी प्राप्त कर लेते थे I
(CI 66 Adhaya 09 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria)

Thursday, June 17, 2010

श्री साईं जी से प्रार्थना


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ॐ साईं राम
 सदा सदा साईं पिता ,मन में करो निवास,
सच्चे ह्रदय से करू, तुम से यह अरदास,
कारण करता आप हो,सब कुछ तुमरी दात,
साईं भरोसे मैं रहू , तुम्ही हो पितु मातु,
विषयों में मैं लीन हूँ , पापो का नहीं अंत,
फिर भी तेरा तेरा हूँ, रख लियो भगवंत,
रख लियो हे राखन-हारा,साईं गरीब निवाज,
तुझ बिन तेरे बालक के कौन सवारे काज,
दया करो दया करो, दया करो मेरे साईं,
तुझ बिन मेरा कौन है,बाबा इस जग माही,
मैं तो कुछ भी हु नहीं,सब कुछ तुम हो नाथ,
बच्चों के सर्वस प्रभु,तुम सदा हो मेरे साथ
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Wednesday, June 16, 2010

संदेश

एक राजा जिस साधु-संत से मिलता, उनसे तीन प्रश्न पूछता। पहला- कौन
व्यक्ति श्रेष्ठ है? दूसरा- कौन सा समय श्रेष्ठ है? और तीसरा- कौन सा
कार्य श्रेष्ठ है? सब लोग उन प्रश्नों के अलग-अलग उत्तर देते, किंतु राजा को
उनके जवाब से संतुष्टि नहीं होती थी। एक दिन वह शिकार करने जंगल में गया।
इस दौरान वह थक गया, उसे भूख-प्यास सताने लगी। भटकते हुए वह एक आश्रम में पहुंचा। उस समय आश्रम में रहने वाले संत आश्रम के फूल-पौधों को पानी दे रहे थे।
राजा को देख उन्होंने अपना काम फौरन रोक दिया। वह राजा को आदर के साथ
अंदर ले आए। फिर उन्होंने राजा को खाने के लिए मीठे फल दिए। तभी एक
व्यक्ति अपने साथ एक घायल युवक को लेकर आश्रम में आया। उसके घावों से खून
बह रहा था। संत तुरंत उसकी सेवा में जुट गए। संत की सेवा से युवक को बहुत
आराम मिला। राजा ने जाने से पहले उस संत से भी वही प्रश्न पूछे। संत ने
कहा, 'आप के तीनों प्रश्नों का उत्तर तो मैंने अपने व्यवहार से अभी-अभी
दे दिया है।'
राजा कुछ समझ नहीं पाया। उसने निवेदन किया, 'महाराज, मैं कुछ समझा नहीं।
स्पष्ट रूप से बताने की कृपा करें।' संत ने राजा को समझाते हुए कहा,
'राजन्, जिस समय आप आश्रम में आए मैं पौधों को पानी दे रहा था। वह मेरा
धर्म है। लेकिन आश्रम में अतिथि के रूप में आने पर आपका आदर सत्कार करना
मेरा प्रधान कर्त्तव्य था। आप अतिथि के रूप में मेरे लिए श्रेष्ठ व्यक्ति
थे। पर इसी बीच आश्रम में घायल व्यक्ति आ गया।
उस समय उस संकटग्रस्त व्यक्ति की पीड़ा का निवारण करना भी मेरा कर्त्तव्य
था, मैंने उसकी सेवा की और उसे राहत पहुंचाई। संकटग्रस्त व्यक्ति की
सहायता करना श्रेष्ठ कार्य है। इसी तरह हमारे पास आने वालों के आदर
सत्कार करने का, उनकी सेवा-सहायता करने का समय ही श्रेष्ठ है।' राजा
संतुष्ट हो गया।

संदेश

जीवन में ऐसे कर्म किये जायें कि एक यज्ञ बन जाय। दिन में ऐसे कर्म करो कि रात को आराम से नींद आये। आठ मास में ऐसे कर्म करो कि वर्षा के चार मास निश्चिन्तता से जी सकें। जीवन में ऐसे कर्म करो कि जीवन की शाम होने से पहले जीवनदाता से मुलाकात हो जाय।

Tuesday, June 15, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

साईं समस्त प्राणियों को समान दृष्टी से देखते थे I उन्हें "मैं" और "मेरा" से कोई मोह नहीं था I वे सभी प्राणियों से प्रेम करते और उनमे भागवत दर्शन का अनुभव करते थे I
(CI 89 Adhaya 08 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria)

संदेश

जैसे सोना जब खान के अन्दर था तब भी सोना था, अब उसमें से आभूषण बने तो भी वह सोना ही है और जब आभूषण नष्ट हो जायेंगे तब भी वह सोना ही रहेगा, वैसे ही केवल आनंदस्वरूप परब्रह्म ही सत्य है।चाहे शरीर रहे अथवा न रहे, जगत रहे अथवा न रहे, परंतु आत्मतत्त्व तो सदा एक-का-एक, ज्यों का त्यों है।

Monday, June 14, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

गुरु के अलावा और कोई नहीं जानता की इस मानव शरीर को वास्तव मे मोक्ष की प्राप्ति किस प्रकार करवाई जाती है I वह केवल तभी होता है, जब गुरु उन्हें अपने हाथो मे लेते है तो जड़ और अज्ञानी प्राणियों का भी उद्धार हो जाता है I
(CI 80 Adhaya 08 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria)

कुसंग से बचो, सत्संग करो

दो नाविक थे। वे नाव द्वारा नदी की सैर करके सायंकाल तट पर पहुँचे और एक-दूसरे से कुशलता का समाचार एवं अनुभव पूछने लगे। पहले नाविक ने कहाः "भाई ! मैं तो ऐसा चतुर हूँ कि जब नाव भँवर के पास जाती है, तब चतुराई से उसे तत्काल बाहर निकाल लेता हूँ।" तब दूसरा नाविक बोलाः "मैं ऐसा कुशल नाविक हूँ कि नाव को भँवर के पास जाने ही नहीं देता।" अब दोनों में से श्रेष्ठ नाविक कौन है ? स्पष्टतः दूसरा नाविक ही श्रेष्ठ है क्योंकि वह भँवर के पास जाता ही नहीं। पहला नाविक तो किसी न किसी दिन भँवर का शिकार हो ही जायगा। इसी प्रकार सत्य के मार्ग अर्थात् ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग पर चलने वाले पथिकों के लिए विषय विकार एवं कुसंगरूपी भँवरों के पास न जाना ही श्रेयस्कर है। अगर आग के नजदीक बैठोगे जाकर, उठोगे एक दिन कपड़े जलाकर। माना कि दामन बचाते रहे तुम, मगर सेंक हरदम लाते रहे तुम।। कोई जुआ नहीं खेलता, किंतु देखता है तो देखते-देखते वह जुआ खेलना भी सीख जायगा और एक समय ऐसा आयगा कि वह जुआ खेले बिना रह नहीं पायेगा। इसी प्रकार अन्य विषयों के संदर्भ में भी समझना चाहिए और विषय विकारों एवं कुसंग से दूर ही रहना चाहिए। जो विषय एवं कुसंग से दूर रहते हैं, वे बड़े भाग्यवान हैं। जिस प्रकार धुआँ सफेद मकान को काला कर देता है, उसी प्रकार विषय-विकार एवं कुसंग नेक व्यक्ति का भी पतन कर देते है।
'सत्संग तारे, कुसंग डुबोवे।'
जैसे हरी लता पर बैठने वाला कीड़ा लता की भाँति हरे रंग का हो जाता है, उसी प्रकार विषय-विकार एवं कुसंग से मन मलिन हो जाता है। इसलिए विषय-विकारों और कुसंग से बचने के लिए संतों का संग अधिकाधिक करना चाहिए। कबीर जी ने कहाः
संगत कीजै साधु की, होवे दिन-दिन हेत। साकुट काली कामली, धोते होय न सेत।।
कबीर संगत साध की, दिन-दिन दूना हेत। साकत कारे कानेबरे, धोए होय न सेत।।
अर्थात् संत-महापुरूषों की ही संगति करनी चाहिए क्योंकि वे अंत में निहाल कर देते हैं। दुष्टों की संगति नहीं करनी चाहिए क्योंकि उनके संपर्क में जाते ही मनुष्य का पतन हो जाता है।
संतों की संगति से सदैव हित होता है, जबकि दुष्ट लोगों की संगति गुणवान मनुष्यों का भी पतन हो जाता है।

संदेश

जिस प्रकार वस्त्र शरीर से भिन्न हैं, वैसे ही आत्मा शरीर से भिन्न हैं, आकाश की तरह सबमें व्यापक हैं। शरीर को जो इन्द्रियाँ मिली हुई हैं, उनके द्वारा शुभ कर्म करने चाहिए। सदैव शुभ देखना, सुनना एवं बोलना चाहिए।

Sunday, June 13, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

जब तक शरीर का पतन नहीं होता, तब तक आत्मज्ञान को प्राप्त करने का यतन करो I इस नर जन्म का एक क्षण भी व्यर्थ मत गवाओं I
(CI 78 Adhaya 08 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria)

Saturday, June 12, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

मानव जीवन के चार ध्येयो यानि अर्थ, धर्म, कर्म और मोक्ष की प्राप्ति का मानव शरीर के अलावा अन्य कोई साधन नहीं है I जो नर अध्यन कर इन्हें प्राप्त करने के उपाय जानने का प्रयतन करता है, वह नारायण पद प्राप्त कर लेता है I
(CI 77 Adhaya 08 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria)

*जय श्री राधे कृष्ण *

बोल सको तो मीठा बोलो,
कटु बोलना मत सीखो ,
जला सको तो दिये जलाओ ,
दिलो को जलाना मत सीखो ,
मिटा सको तो क्रोध मिटाओ ,
प्रेम मिटाना मत सीखो ,
बिछा सको तो फुल बिछाओ ,
सुल बिछाना मत सीखो ,
लगा सको तो बाग लगाओ ,
आग लगाना मत सीखो ,
और जा सको तो सत्संग जाओ ,
कुसंग जाना मत सीखो ,,,,,,,.
*श्री राधे राधे बरसाने वाली राधे ...........बरसाने वाली राधे हमें ...श्याम से मिला दे ..*

श्री साई सच्चरित्र



श्री साई सच्चरित्र

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श्री साई सच्चरित्र अध्याय 1

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 2


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