Friday, September 7, 2012

शिरडी तीर्थ-क्षेत्र



शिरडी के सौभाग्य का वर्णन कौन कर सकता है। श्री द्घारिकामाई भी धन्य है, जहाँ श्री साई ने आकर निवास किया और वहीं समाधिस्थ हुए।
शिरडी के नर-नारी भी धन्य है, जिन्हें स्वयं साई ने पधारकर अनुगृहीत किया और जिनके प्रेमवश ही वे दूर से चलकर वहाँ आये। शिरडी तो पहले एक छोटा सा ग्राम था, परन्तु श्री साई के सम्पर्क से विशेष महत्त्व पाकर वह एक तीर्थ-क्षेत्र में परिणत हो गया।
शिरडी की नारियां भी परम भाग्यशालिनी है, जिनका उनपर असीम और अडिग विश्वास प्रशंसा के परे है । आठों प्रहर काम काज करते, पीसते, अनाज निकालते, गृहकार्य करते हुये वे उनकी कीर्ति का गुणगान किया करती थी। उनके प्रेम की उपमा ही क्या हो सकती है? वे अत्यन्त मधुर गायन करती थी, जिससे गायकों और श्रोतागण के मन को परम शांति मिलती थी।
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय 39)

श्री साई सच्चरित्र



श्री साई सच्चरित्र

आओ मिलकर पढ़ें और साथ जुड़ें !

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 1

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 2


आओ मिलकर पढ़ें और साथ जुड़ें !

Sai Aartian साईं आरतीयाँ