मन का कार्य विचार करना है। बिना विचार किये वह एक क्षण भी नहीं रह सकता। यदि तुम उसे किसी विषय में लगा दोगे तो वह उसी का चिन्तन करने लगेगा और यदि उसे गुरु को अर्पण कर दोगे तो वह गुरु के सम्बन्ध में ही चिन्तन करता रहेगा। आप लोग बहुत ध्यानपूर्वक साई की महानता और श्रेष्ठता श्रवण कर ही चुके है। ये कथाएँ सांसारिक भय को निर्मूल कर आध्यात्मिक पथ पर आरुढ़ करती हैं। इसलिये इन कथाओं का हमेशा श्रवण और मनन करो तथा आचरण में भी लाओ। सासारिक कार्यों में लगे रहने पर भी अपना चित्त साई और उनकी कथाओं में लगाये रहो। तब तो यह निश्चत है कि वे कृपा अवश्य करेंगे। यह मार्ग अति सरल होने पर भी क्या कारण है कि सब कोई इसका अवलम्बन नहीं करते? कारण केवल यह है कि ईश-कृपा के अभाववश लोगों मे सन्त कथाएँ श्रवण करने की रुचि उत्पन्न नहीं होती।
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय 10)