Tuesday, August 21, 2012

Sandesh



बाबा ने कभी किसी की उपेक्षा या अनादर नहीं किया। वे सब प्राणियों में भगवद दर्शन करते थे। उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि, "मैं अनल हक़ (सोऽहम्) हूँ।" वे सदा यही कहते थे कि "मैं तो यादे हक़ (दासोऽहम्) हूँ।" "अल्ला मालिक" सदा उनके होठों पर था। हम अन्य संतों से परिचित नहीं है और न हमें ज्ञात है कि वे किस प्रकार आचरण किया करते है अथवा उनकी दिनचर्या इत्यादि क्या है । ईश-कृपा से केवल हमें इतना ही ज्ञात है कि वे अज्ञान और बद्ध जीवों के निमित्त स्वयं अवतीर्ण होते है । शुभ कर्मों के परिणामस्वरुप ही हम में सन्तों की कथायें और लीलाये श्रवण करने की इच्छा उत्पन्न होती है, अन्यथा नहीं। 
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय 23)

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