Thursday, August 30, 2012

"भिन्न भिन्न कार्यों की भक्तों को प्रेरणा"


"भिन्न भिन्न कार्यों की भक्तों को प्रेरणा"
'श्री हेमाडपंत कहते है' भगवान अपने किसी भक्त को मन्दिर, मठ, किसी को नदी के तीर पर घाट बनवाने, किसी को तीर्थपर्यटन करने और किसी को भगवत् कीर्तन करने एवं भिन्न भिन्न कार्य करने की प्रेरणा देते है। परंतु उन्होंने मुझे 'साई-सच्चरित्र' - लेखन की प्रेरणा की। किसी भी विद्या का पूर्ण ज्ञान न होने के कारण मैं इस कार्य के लिये सर्वथा अयोग्य था। अतः मुझे इस दुष्कर कार
्य का दुस्साहस क्यों करना चाहिये? श्री साई महाराज की यथार्थ जीवनी का वर्णन करने की सामर्थय किसे है? उनकी कृपा मात्र से ही कार्य सम्पूर्ण होना सम्भव है। इसीलिये जब मैंने लेखन प्रारम्भ किया तो बाबा ने मेरा अहं नष्ट कर दिया और उन्हेंने स्वयं अपना चरित्र रचा। अतः इस चरित्र का श्रेय उन्हीं को है, मुझे नही। जन्मतः ब्राह्मण होते हुए भी मैं दिव्य चक्षु-विहीन था, अतः 'साई सच्चरित्र' लिखने में सर्वथा अयोग्य था।
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय-3)

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