श्री साई समर्थ धन्य है, जिनका नाम बड़ा सुन्दर है ! वे सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों ही विषयों में अपने भक्तों को उपदेश देते है और भक्तों को अपना जीवनध्येय प्राप्त करने में सहायता प्रदान कर उन्हें सुखी बनाते है। श्री साई अपना वरद हस्त भक्तों के सिर पर रखकर उन्हें अपनी शक्ति प्रदान करते है। वे भेदभाव की भावना को नष्ट कर उन्हें अप्राप्य वस्तु की प्राप्ति कराते है। भक्त लोग साई के चरणों पर भक्तिपूर्वक गिरते है और श्री साईबाबा भी भेदभावरहित होकर प्रेमपूर्वक भक्तों को हृदय से लगाते है। वे भक्तगण में ऐसे सम्मिलित हो जाते है, जैसे वर्षाऋतु में जल नदियों से मिलता तथा उन्हें अपनी शक्ति और मान देता है।
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय 40)