अहंकार के वशीभूत होकर उच्च कोटि के विद्वान और चतुर पुरुष भी इस भवसागर की दलदल में फँस जाते है। परन्तु हे साई। आप केवल अपनी शक्ति से असहाय और सुहृदय भक्तों को इस दलदल से उबारकर उनकी रक्षा किया करते है। पर्दे की ओट में छिपे रहकर आप ही तो सब न्याय कर रहे है। फिर भी आप ऐसा अभिनय करते है, जैसे उनसे आपका कोई सम्बन्ध ही न हो। कोई भी आप की संपूर्ण जीवन गाथा न जान सका। इसलिये यही श्रेयस्कर है कि हम अनन्य भाव से आपके श्रीचरणों की शरण में आ जायें और अपने पापों से मुक्त होने के लिये एकमात्र आपका ही नामस्मरण करते रहे। आप अपने निष्काम भक्तों की समस्त इच्छाएँ पूर्ण कर उन्हें परमानन्द की प्राप्ति करा दिया करते है। केवल आपके मधुर नाम का उच्चारण ही भक्तों के लिये अत्यन्त सुगम पथ है।
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय 46)