Thursday, August 16, 2012

Sandesh



श्री साईबाबा' प्रेम तथा भक्तिपूर्वक अर्पित की हुई तुच्छ वस्तु को सहर्श स्वीकार कर लेते थे, परन्तु यदि वह अहंकारसहित भेंट की गई तो वह अस्वीकृत कर दी जाती थी । पूर्ण सच्चिदानन्द होने के कारण वे बाहृ आचार-विचारों को विशेष महत्त्व न देते थे और विनम्रता और आदरसहित भेंट की गई वस्तु का स्वागत करते थे । 
यथार्थ में देखा जाय तो सद्गगुरु साईबाबा से अधिक दयालु और हितैषी दूसरा इस संसार में कौन हो सकता है । उनकी तुलना समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाली चिन्ता
मणि या कामधेनु से भी नहीं हो सकती । जिस अमूल्य निधि की उपलब्धि हमें सदगुरु से होती है, वह कल्पना से भी परे है। 
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय 16/17)

श्री साई सच्चरित्र



श्री साई सच्चरित्र

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