"चाहे परम ज्ञान सपन्न क्यों न हो जाए, जब तक वह कर्मों के फल की इच्छा से विरिक्त नहीं होगा, तब तक आत्म-साक्षात्कार के लिए किए गये उसके के सभी प्रयतन व्यर्थ जाते है, वह आत्मज्ञान सम्पन्न नहीं हो पाता"
May be he has understood the nature of Brahman but if he is not detached from the fruits of his action, then his knowledge of the Brahman is futile and he is not self realised.
ॐ साईं राम
Shirdi Sai
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Wednesday, August 31, 2011
ॐ साईं राम
श्री साई सच्चरित्र
श्री साई सच्चरित्र
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श्री साई सच्चरित्र अध्याय 1
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