"जो सदैव दुष्कर्मों में ही व्यस्त रहता है,जिन्हें अनुचित्त माना जाता है और इसलिये श्रुतियों ने भी उन्हें दण्डनीय ठहराया है, ऐसे व्यक्ति का चित्त अशान्त रहता है I
He who indulges in low, forbidden acts and stoop down to lowest behaviour, unacceptable to the shrutis and smritis, and who is permanently leading that kind of life can never have equanimity of mind.
ॐ साईं राम