इष्ट श्रीराम
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एक समय एक मामलतदार अपने एक डॉक्टर मित्र के साथ शिरडी पधारे । डॉक्टर का कहना था कि मेरे इष्ट श्रीराम हैं । मैं किसी यवन को मस्तक न नमाऊँगा । अतः वे शिरडी जाने में असहमत थे । मामलतदार ने समझाया कि "तुम्हें नमन करने को कोई बाध्य न करेगा और न ही तुम्हें कोई ऐसा करने को कहेगा । अतः मेरे साथ चलो, आनन्द रहेगा।" वे शिरडी पहुँचे और बाबा के दर्शन को गये । परन्तु डॉक्टर को ही सबसे आगे जाते देख और बाबा की प्रथम चरण वन्दना करते देख सब को बढ़ा विस्
मय हुआ । लोगों ले डाँक्टर से अपना निश्चय बदलने और इस भाँति एक यवन को दंडवत् करने का कारण पूछा । डॉक्टर ने बतलाया कि बाबा के स्थान पर उन्हें अपने प्रिय इष्ट देव श्रीराम के दर्शन हुए और इसलिये उन्होंने नमस्कार किया । जब वे ऐसा कह ही रहे थे, तभी उन्हें साईबाबा का रुप पुनः दीखने लगा । वे आश्चर्यचकित होकर बोले – "क्या यह स्वप्न है? ये यवन कैसे हो सकते हैं ? अरे ! अरे ! यह तो पूर्ण योग-अवतार है ।" दूसरे दिन से उन्होंने उपवास करना प्रारम्भ कर दिया । उन्होंने प्रतिज्ञा की कि जब तक बाबा स्वयं बुलाकर आशीर्वाद नहीं देंगे, तब तक मस्जिद में कदापि न जाऊँगा । इस प्रकार तीन दिन व्यतीत हो गये । चौथे दिन उनका एक इष्ट मित्र खानदेश से शरडी आया । वे दोनों मस्जिद में बाबा के दर्शन करने गये । नमस्कार होने के बाद बाबा ने डाँक्टर से पूछा, "आपको बुलाने का कष्ट किसने किया ? आप यहाँ कैसे पधारे ?" यह प्रश्न सुनकर डाँक्टर द्रवित हो गये और उसी रात्रि को बाबा ने उनपर कृपा की । डाँक्टर को निद्रा में ही परमानन्द का अनुभव हुआ । वे अपने शहर लौट आये तो भी उन्हें 15 दिनों तक वैसा ही अनुभव होता रहा । इस प्रकार उनकी साईभक्ति कई गुना बढ़ गई ।
उपर्यु्क्त कथा की शिक्षा यही है कि हमें अपने गुरु में दृढ़ विश्वास होना चाहिये ।
(श्री साई सच्चरित्र)