Sunday, October 7, 2012

श्री साईं-कथा



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श्री साईं-कथा आराधना(भाग-17 )
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

कहने को तो साईं का साकार रूप लुप्त हो गया
बाबा का हाथ भक्तों के सिर पे से उठ गया
पर आज भी शिर्डी में बाबा विराजमान हैं
समाधी में जैसे श्री साईं के बसे प्राण हैं
साईं ने ग्यारह वचनों में वरदान जो दिए
वो सब के सब आज भी पूरे हैं किए
साईं बाबा आज भी कष्टों को हैं हरते
अन्न-धन देकर सबकी झोलियाँ हैं भरते
शिर्डी में साईं की धूनी आज भी है जलती
भक्तों में सारी आशाएं पूरी है करती
हर वीरवार बाबा का दरबार यहां सजता
पालकी के संग-संग मेला-सा जुड़ता

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

शिर्डी में आज भी दुनिया भर से लोग हैं आते
मुंहमांगी मुरादें यहां से पल में पा जाते
जब भोर के समय होती है काकड़ आरती
कहते हैं उस समय देवता भी शिर्डी में हैं आते
धरती से ले के आकाश तक साईं नाम गूंजता,
छोटा-बड़ा हर प्राणी साईं-भक्ति में झूमता
फिर मंगल-स्नान साईं का जब है होता
हर भक्त उसमें अपना सहयोग है देता,
कोई फूल-हार, कोई चादर है लाता
अपने-अपने ढंग से हर कोई साईं को रिझाता,
समाधी पे तब साईं की, सब सिर को झुकाते
अपने-अपने दिल का हाल अपने साईं को सुनाते

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए.......

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