ॐ साईं राम,
"मोह-माया भ्रम में ड़ाल देती है I याद रखो देह का अभिमान आदि का भ्रम 'में' और 'मेरे' का भाव मृगतृष्णा के समान हैं I इसलिए विरक्त और अहंकाररहित हो जाओ I
Delusion creates more delusion; and thus the illusion about bodily pride takes place. Try to understand that the concept of "I and Mine" is like a mirage. Therefore, why don't you become detached ?