Tuesday, October 4, 2011

ॐ साईं राम,



ॐ साईं राम,
"मोह-माया भ्रम में ड़ाल देती है I याद रखो देह का अभिमान आदि का भ्रम 'में' और 'मेरे' का भाव मृगतृष्णा के समान हैं I इसलिए विरक्त और अहंकाररहित हो जाओ I   
Delusion creates more delusion; and thus the illusion about bodily pride takes place. Try to understand that the concept of "I and Mine"  is like a mirage. Therefore, why don't you become detached ?

श्री साई सच्चरित्र



श्री साई सच्चरित्र

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श्री साई सच्चरित्र अध्याय 1

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 2


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Sai Aartian साईं आरतीयाँ