Monday, February 4, 2013

shidi sai baba teachings

बहुधा हरिदास कीर्तन करते समय एक लम्बा अंगरखा और पूरी पोशाक पहनते है । वे सिर पर फेंटा या साफा बाँधते है और एक लम्बा कोट तथा भीतर कमीज, कन्धे पर गमछा और सदैव की भाँति एक लम्बी धोती पहनते है । एक बार गाँव में कीर्तन के लिये जाते हुए दासगणू भी उपयुक्त रीति से सज-धज कर बाबा को प्रणाम करने पहुँचे । बाबा उन्हें देखते ही कहने लगे, "अच्छा ! दूल्हा राजा ! इस प्रकार बनठन कर कहाँ जा रहे हो?" उत्तर मिला कि "कीर्तन के लिये ।" बाबा ने पूछा कि कोट, गमछा और फेंटे इन सब की आवश्यकता ही क्या है ? इनकों अभी मेरे सामने ही उतारो । इस शरीर पर इन्हें धारण करने की कोई आवश्यकता नहीं है । दासगणू ने तुरन्त ही वस्त्र उतार कर बाबा के श्री चरणों पर रख दिये । फिर कीर्तन करते समय दासगणू ने इन वस्त्रों को कभी नहीं पहना । वे सदैव कमर से ऊपर अंग खुले रखकर हाथ में करताल और गले में हार पहन कर ही कीर्तन किया करते थे । यह पद्धति यद्यपि हरिदासों द्घारा अपनाई गई पद्धति के अनुरुप नहीं है, परन्तु फिर भी शुद्ध तथा पवित्र हैं । कीर्तन पद्धति के जन्मदाता नारद मुनि कटि से ऊपर सिर तक कोई वस्त्र धारण नहीं करते थे । वे एक हाथ में वीणा लेकर हरि-कीर्तन करते हुए त्रिलोक में घूमते थे ।
(श्री साई सच्चरित्र)

श्री साई सच्चरित्र



श्री साई सच्चरित्र

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श्री साई सच्चरित्र अध्याय 1

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Sai Aartian साईं आरतीयाँ