Friday, December 13, 2013

ब्रह्म और माया

******ब्रह्म और माया******
ब्रह्म और माया--इनमें मूल्भेद इस प्रकार है---ब्रह्म निर्गुण-निराकार, माया सगुन-साकार, ब्रह्म अनादि एवं निर्विकार है तथा माया विकारयुक्त है! ब्रह्म नामातीत होते हुए भी उसके अनेक नाम-रूप हैं, जैसे निजांड, अच्छुत, अनंत, नादरूप, ज्योतीरूप, चैतन्यरूप, सत्तारूप और साक्षीरूप आदि भी है!
माया को दृश्य, सोपाधि, मिथ्या, परिमेय, विनाशी तथा सगुन बताया है और ब्रह्म को अदृश्य, निरुपाधि, सत्य, अपरिमेय, अविनाशी तथा निर्गुण! माया पांचभौतिक है और ब्रह्म शाश्वत, माया असार है और ब्रह्म सार, माया क्षणिक है और ब्रह्म नैरन्तर्य! माया मूलत: ब्रह्म में पूर्णतया अनर:स्थ निर्गुण थी! ब्रह्म से वह समद्भूत होकर सगुन बनी! प्रथम वह आकाश बनी! आकाश यानी अवकाश, उसमें स्पंदन हुआ, उससे अग्नि उत्पन्न हुआ, अग्नि से जल तथा जल से सृष्टि का उद्भव हुआ! प्रत्येक सृष्ट पदार्थ में परमात्मा स्थित रहता है, इस लिये भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है!-----
"ईश्वरोsहं सर्व भूतेषु हृद्द्देशेsर्जुन तिष्टति"
सृष्टि --ब्रह्माण्ड उत्पन्न होने से पूर्व मूल में माया त्रिगुणात्मिक बनी थी! तमोगुण से पंचभूतों की निर्मित हुई! जो जड़ और कठिन है वह पृथ्वी का रूप है तथा जो मृदु और प्रवाही है वह अपतत्त्व का रूप है तथा जिसमें चैतन्य और चांचल्य है वह वायु-तत्त्व का रूप है! शून्यत्व आकाश तत्त्व का रूप है! ब्रह्माण्ड के ऊपर मूल में माया सूक्ष्म-रूप है! सृष्टि में प्रथम जलचर निर्मित हुए, तत्पश्चात खेचर [पक्षी] और तत्पश्चात भूचर निर्मित हुए!
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जिस प्रकार जीवात्मा परमात्मा का अंश है, उसी प्रकार पिण्ड ब्रह्माण्ड का अतीव सूक्ष्म अंश है! ब्रह्माण्ड में जो कुछ विद्यामान है, वह अत्यंत सूक्ष्म रूप में भी रहता है!

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