Monday, June 11, 2012

Sandesh



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ॐ साईं श्री साईं ॐ श्री साईं 
बुरे होए पिछले कर्म, पर अब आपो साथ |
पाप जले जिस अग्नि में, अग्नि है श्री नाथ ||
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श्री साईं वचन - कर्म देह प्रारम्भ (वर्तमान भाग्य) पिछले कर्मो का फल अवश्य भोगना पड़ेगा, गुरु इन कष्टों को सहकर सहना सिखाता है, गुरु सृष्टि नहीं दृष्टि बदलता है|
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अनंत कोटि ब्रह्माण्ड नायक राजाधिराज योगिराज परब्रह्म श्री सचिदानंद समस्त सद्गुरु श्री साईं नाथ महाराज की जय !
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तिलक लगाने का मन्त्र
केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम । 
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ।।
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श्री साईं कृपा सदैव हम सब पर बनी रहे
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श्री साई सच्चरित्र



श्री साई सच्चरित्र

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श्री साई सच्चरित्र अध्याय 1

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 2


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Sai Aartian साईं आरतीयाँ