Wednesday, April 11, 2012

कलयुग से वार्तालाप

कलयुग से वार्तालाप


गुरु जी मरदाने के साथ बैठकर शब्द कीर्तन कर रहे थे तो अचानक अँधेरी आनी शुरू हो गई, जिसका गुबार पुरे आकाश में फ़ैल गया|  इस भयानक अँधेरी में भयानक सूरत नजर आनी शुरू हो गई, जिसका सिर आकाश के साथ व पैर पाताल के साथ के साथ थे| मरदाना यह सब देखकर घबरा गया| तब गुरु जी मरदाने से कहने लगे, मरदाना तू वाहेगुरु का सिमरन कर, डर मत| यह बला तेरे नजदीक नहीं आएगी| उस भयानक सूरत ने कई भयानक रूप  धारण किए पर गुरु जी अडोल ही बैठे रहे| आप की अडोलता व निर्भयता को देखकर उसने मानव का रूप धारण करके गुरु जी को नमस्कार की और कहने लगा इस युग का मैं राजा हूँ| मेरा सेनापती झूठ और निंदा, चुगली व मर धाड़ है| जुआ शराब आदि खोटे करम मेरी फ़ौज है| आप मेरे युग के अवतार है, मैं आपको मोतियों से जड़े हुए सोने के मंदिर तैयार कर देता हूँ, आप इसमे निवास करना| ऐसे मंदिर चन्दन व कस्तूरी से लिपे होंगे, केसर का छिड़काव होगा| आप उसमे सुख लेना व आनंदित रहना|


तब गुरु जी ने इस शब्द का उच्चारण किया:


मोती त मंदर उसरहि रतनी त होए जड़ाऊ || 
कस्तू रि  कुंगू अगरि चंदनि लीपि आवै चाऊ || 
मतु देखि भूला विसरै तेरा चिति न आवै नाऊ ||   
धरती त हीरे लाल जड़ती पलघि लाल जड़ाऊ || 
मोहणी मुखि मणी सोहै करे रंगि  पसाऊ || 
मतु देखि भूला विसरै तेरा चिति न आवै नाऊ || 
हुकमु हासलु करी बैठा नानका सभ वाऊ || 
मतु देखि भूला विसरै तेरा चिति न आवै नाऊ ||
 

गुरु जी के ऐसे बचन सुनकर कलयुग ने कहा, महाराज! मुझे निरंकार की आज्ञा है की मैं सभ जीवो की बुधि उलट दू, जिसके कारण वह चोरी यारी झूठ निंदा व चुगली आदि खोटे कर्म करे, गुणवान का निरादर हो और मूर्खों को राजे के पास बिठाकर आदर करा ऊ| जत सत का नाम ना रहना दूँ, ऊँच व नीच को बराबर कर दूँ| पर आप मुझे जैसे हुक्म करेंगे में उसकी पलना करूँगा| गुरु जी ने कहा, जो हमारे प्रेमी श्रद्धावान व हरी कीर्तन, सत्संग इत्यादि में लिप्त हो उनपर यह सेना धावा ना बोले| फिर तेरा प्रभाव हमारे उन प्रेमियों पर भी ना पड़े जिन्हें हमारे बचनों पर भरोसा है| कलयुग ने तभी हाथ जोड़े  और कहा, महाराज! जो व्यक्ति निरंकार के सिमरण को अपने ह्रदय में बसाए रखेगा, उनपर हमारा प्रभाव कम पड़ेगा| ऐसा भरोसा देकर कलयुग अंतर्धयान हो गया|


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