Wednesday, November 23, 2011

ध्यान की गहराई


बात उस समय की है जब स्वामी विवेकानंद शिकागो के व्याख्यान के बाद अमेरिका में प्रसिद्ध हो चले थे। वहां वह घूम-घूमकर वेदांत दर्शन पर प्रवचन दिया करते थे। इस सिलसिले में उन्हें अमेरिका के उन अंदरूनी इलाकों में भी जाना होता था, जहां धर्मांध और संकीर्ण विचारधारा वाले लोग रहते थे। एक बार स्वामीजी को ऐसे ही एक कस्बे में व्याख्यान के लिए बुलाया गया था। एक खुले मैदान में लकड़ी के बक्सों को जमाकर मंच तैयार किया गया था।

स्वामीजी ने उस पर खड़े होकर वेदांत, योग और ध्यान पर व्याख्यान देना शुरू किया। बाहर से गुजरने वाले लोग भी उनकी बातें सुनने लगे जिनमें कुछ चरवाहे भी थे। थोड़ी देर में ही उनमें से कुछ ने बंदूकें निकालीं और स्वामीजी की ओर निशाना दागने लगे। कोई गोली उनके कान के पास से गुजरती तो कोई पांव के पास से। नीचे रखे कुछ बक्से तो छलनी हो गए थे। लेकिन इस सबके बावजूद स्वामीजी का व्याख्यान पहले की तरह धाराप्रवाह चलता रहा। न वह थमे न उनकी आवाज कांपी। अब चरवाहे भी वहां ठहर गए।

व्याख्यान के बाद वे स्वामीजी से बोले, 'आपके जैसा व्यक्ति हमने पहले नहीं देखा। हमारी गोलीबारी के बीच आपका भाषण ऐसे चलता रहा जैसे कुछ हुआ ही न हो। अगर हमारा निशाना चूकता तो आपकी जान आफत में पड़ सकती थी।' स्वामीजी ने उन्हें बताया कि जब वह व्याख्यान दे रहे थे, तब उन्हें बाहरी वातावरण का ज्ञान ही न था। उनका सारा चित्त वेदांत और ध्यान की उन गहराइयों में डूबा हुआ था। वे चरवाहे उनके प्रति नतमस्तक हो गए।

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