Thursday, September 29, 2011

साईं वचन

ॐ शिरडी वासाय विधमहे सच्चिदानन्दाय धीमही तन्नो साईं प्रचोदयात ॥
साईं  वचन
 "जब तक तुम में 'तुम्हारा' और 'मेरा' का भाव रहेगा, तब तक वास्तव में तुम अपने हित के प्रति सचेत नहीं हो I उसे छोड़ दो, शारीर के प्रति मोह को दूर भगाकर, अपने वास्तविक स्वरूप की और मुड़ो"I         
As long as discrimination between You and me exist, it is not possible to preceive your own good. Give it up and then look at yourself by throwing away selfishness.
 
साईं नाम जो मन से ध्याता,
अंतर्मन उसका मिट जाता
पूरन होते है सब काम,
मिलकर बोलों
ॐ सांई राम ...
 
      

श्री साई सच्चरित्र



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