दिन-दिन दूनो देखि दारिदु,
दुकालु, दुखु, दुरितु,
दुराजू सुख-सकृत सकोच!
मागें पैनत पावत पचारि पातकी प्रचंड,
कालकी करालता, भले को हॉट पोच है!!
आपनें तौ एकु अब्लंबू अंब डिंभ ज्यों,
समर्थ सीतानाथ सब संकट बिमोच है!
तुलसी की साहसी सराहिए कृपाल राम!
नामकें भरोसें परिणाम को निसोच है!!८१!!
दिनों दिन दरिद्रता, दुःख, पाप और कुराज्य को दूना होता देख कर सुख और सुकृत संकुचित हो रहे हैं! समय ऐसा भयंकर आ गया है कि बड़े २ डांटडपट कर माँगने से अपना दांव पा लेते हैं और भले आदमी का बुरा हो जाता है! जैसे बालक को एक मात्र मांका ही सहारा होता है वैसे ही अपने तो एक मात्र सहारा सर्वसंकटों से छुडाने वाले और समर्थ श्री सीतानाथ ही हैं! हे कृपालु राम जी ! तुलसी के साहस सराहना कीजिये कि वह [आपके] नाम के भरोसे परिणाम की ओर से निश्चिन्त हो गया है!
Pawan Talhan