गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान |
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान ||
कबीर वाणी
गुरु के समान कोई दाता नहीं, और शिष्य के सदृश याचक नहीं | त्रिलोक की सम्पत्ति से भी बढकर ज्ञान - दान गुरु ने दे दिया |
ॐ साईं श्री साईं ॐ श्री साईं
ॐ शिरडी वासाय विधमहे सच्चिदानन्दाय धीमही तन्नो साईं प्रचोदयात ॥
साईं वचन - हमको किसी भी व्यक्ति की सुंदरता अथवा कुरूपता से परेशान नहीं होना चाहिए, बल्कि उसके रूप में निहित ईश्वर पर ही मुख्य रूप से अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए|