मस्तिष्क इन्द्रियों की अपेक्षा महान है। शुद्ध बुद्धिमत्ता मस्तिष्क से महान है। आत्मा बुद्धि से महान है, और आत्मा से बढकर कुछ भी नहीं है।
Mind is greater than the senses. Pure intellect is greater than the mind. Soul is greater than the intellect. There is nothing greater than the soul.
(Swami Sivananda)
Shirdi Sai
Pages
Tuesday, August 31, 2010
Monday, August 30, 2010
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
एक बार तुम अनन्य भाव से उनके चरणों में समर्पण कर दोगे तो गुरु ही नहीं, अपितु ईशवर भी द्रवित हो जाएंगे I गुरु पूजा कि ऐसी महिमा है, जिसका अनुभव गुरु भक्तों को स्वयं करना चाहिए I
"The devotees of the Guru experience, on resorting to his feet with full faith, that not only Guru but Parabrahma is moved. Such is the marvel of Guru Puja! "
"The devotees of the Guru experience, on resorting to his feet with full faith, that not only Guru but Parabrahma is moved. Such is the marvel of Guru Puja! "
Sunday, August 29, 2010
संदेश
ईश्वर के प्रति समर्पण मनुष्य के सभी शत्रुओं – ईर्ष्या, द्वेष को निगल जाता है। एक बार ईश्वर के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हो जाइये, सभी दुर्गुण ईर्ष्या और क्रोध ईत्यादि पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं।
Devotion to God swallows up all the arch-enemies of man such as lust, passion and the rest. Once, the devotion to God is fully awakened, all evil passions like lust and anger are completely destroyed.
(Sri Ramakrisna)
Devotion to God swallows up all the arch-enemies of man such as lust, passion and the rest. Once, the devotion to God is fully awakened, all evil passions like lust and anger are completely destroyed.
(Sri Ramakrisna)
Saturday, August 28, 2010
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
जिनके दर्शन मात्र से नेत्र तर्प्त होते हों, जहा ज्ञान का अविरल प्रबाह होता हो, उनके चरणों मे मस्तक झुकाने से ह्रदय शान्त होता है I
"Whosoever one can feast one's eye on, on whose feet one can rest one's head, on whom one can meditate suitably, love develops there."
"Whosoever one can feast one's eye on, on whose feet one can rest one's head, on whom one can meditate suitably, love develops there."
Thursday, August 26, 2010
Wednesday, August 25, 2010
संदेश
जब तुम दूसरों के लिये जीना सीख्न लेते हो, वे तुम्हारे लिये जीएंगे। जब तुम केवल अपने लिये जीते हो,
कोई भी आपमें रुचि नही लेता है। तुम दूसरों को अपने अच्छे कार्यों द्वारा आकर्षित कर सकते हो।
कोई भी आपमें रुचि नही लेता है। तुम दूसरों को अपने अच्छे कार्यों द्वारा आकर्षित कर सकते हो।
Monday, August 23, 2010
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
यह हमारे गत जन्मो के शुभ कर्मो का ही फल है की हमे साईं महाराज के पावन चरणों की प्राप्ति हुई है I जन्म मरण के चक्कर में ठहराव आ गया है; और संसार का भय पूर्णत: नष्ट हो गया है I
"By my good deeds of many previous lives, I have enjoyed myself to the feet of Sai Maharaj. The cycle of birth and death has come to a stand still and the fear of Life has disappeared."
"By my good deeds of many previous lives, I have enjoyed myself to the feet of Sai Maharaj. The cycle of birth and death has come to a stand still and the fear of Life has disappeared."
Sunday, August 22, 2010
संदेश
ॐ साईं राम,
“देह मनुज सम त्याग के,रखते सूक्षम शरीर,
दूर करे साईं सदा,भक्तन की भव पीड़”
बाबा कृपा हम सब पर बनी रहे
“देह मनुज सम त्याग के,रखते सूक्षम शरीर,
दूर करे साईं सदा,भक्तन की भव पीड़”
बाबा कृपा हम सब पर बनी रहे
Saturday, August 21, 2010
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
उत्तम आध्यात्मिक अवस्था की प्राप्ति के लिए संतो की संगति पूर्ण शुद्धिकरण का एकमात्र साधन है I अगर तुम सच्चे ह्रदय से संतो की शरण मे जाकर समर्पण करोगे तो तुम्हे परम शांति की प्राप्ति हो जाएगी I
"To attain the highest state, the company of a Saint is purifying. If one surrender completely, our permanent peace is assured."
"To attain the highest state, the company of a Saint is purifying. If one surrender completely, our permanent peace is assured."
Friday, August 20, 2010
संदेश
जो खुशी और सुख दूसरों के दुख और अप्रसन्नता से जन्मते है, उनका अंत दुख और कष्ट मे होना अवश्यम्भावी है यह् खुशी और लाभ अस्थाई है। यह प्रकृति का अपरिवर्तनीय नियम है।
Any happiness or gain which is born of the unhappiness of another is bound to end in suffering and sorrow and is detrimental to the enjoyer of such temporary pleasure or gain. This is the immutable law of Providence.
Any happiness or gain which is born of the unhappiness of another is bound to end in suffering and sorrow and is detrimental to the enjoyer of such temporary pleasure or gain. This is the immutable law of Providence.
Thursday, August 19, 2010
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
पुर्व जन्मो में कठोर जप तप किये बिना संत दर्शन का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता I संत दर्शन से त्रिताप नष्ट हो जाते है I
Tuesday, August 17, 2010
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
सत्संग द्वारा देहिक बुध्दी, अहंकार और जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्ति हो जाती है I सत्संग तुरंत ही संसार के बन्धनो को काटकर ईशवर प्राप्ति मे सहायता करता है I
"Because of Satsang bodily attachment is destroyed. It is Satsang that break the cycle of birth and death. It is Satsang that gains the treasure of supreme energy and separates one from the worldly ties immediately."
"Because of Satsang bodily attachment is destroyed. It is Satsang that break the cycle of birth and death. It is Satsang that gains the treasure of supreme energy and separates one from the worldly ties immediately."
Monday, August 16, 2010
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
चाहे स्वीकार करे या अस्वीकार करें; जो होना है, सो तो होकर ही रहेगा I केवल संतो की शरण ही हमे सुखों और दुखों से परे ले जा सकती है I
"Whether you face happily or turn your back on your destiny, what will be, will be. But to liberate oneself from both kind of destined experiences, the company of the Saint is the only way."
"Whether you face happily or turn your back on your destiny, what will be, will be. But to liberate oneself from both kind of destined experiences, the company of the Saint is the only way."
Saturday, August 14, 2010
संदेश
यदि हमें कोई अधिकार प्राप्त है, तो उसका प्रयोग परहित में करना चाहिए,लोगों को सांसारिक तनाव से छुटकारा दिलाना चाहिए,हम दूसरों को दुःख और परेशानी क्यों दे? अपने मस्तिष्क को शुद्ध रखें,सभी लोगों के कल्याण में लगे रहें,हममें सेवा की भावना होनी चाहिए
Friday, August 13, 2010
Thursday, August 12, 2010
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"मंत्र, तीर्थ, ब्राह्मण, वेद, देव और गुरु में जैसा तुम्हारा विश्वास होगा,वैसे ही तुम्हे फल मिलेगा."
Wednesday, August 11, 2010
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
अज्ञान मिट जाने पर ज्ञान प्रकट हो जाता है I जो क्षमाशील है (यानि जो सहज ही क्षमा कर दे ) वह ज्ञानी है, लेकिन जब तक देहभिमान नहीं छुटता, तब तक वह माया के अधीन रहता है I
संदेश
बहुत से लोग हमेशा अविश्व्स्त होते हैं। उनमें आत्म विश्वास नहीं होता। उनमें शक्ति, योग्यता और गुण होते हैं, लेकिन उन्हें अपनी योग्यता और गुणों मे और सफलता पाने में विश्वास नही होता। यह एक प्रकार की कमजोरी है जो सभी प्रयासो में असफलता लाती है। विश्वास एक प्रकार की शक्ति है। इससे इच्छा शक्ति विकसित होती है। विश्वास आधी सफलता है। तुमको अपनी शक्ति को पूरी तरह पहचानना चाहिये। वह व्यक्ति जिसमें विश्वास होता है, अपने सभी प्रयासो और कार्यों मे सदैव सफल होता है।
Tuesday, August 10, 2010
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
सुख के बाद दुःख आता है और कष्टों के बाद सुख की अनुभूति होती है लेकिन मनुष्य सदा सुखों का ही स्वागत करता है और कष्टों से दूर भागता हैं I
"Happiness is followed by unhappiness; and unhappiness follows happiness. One welcomes happiness, while one turns away from unhappiness."
"Happiness is followed by unhappiness; and unhappiness follows happiness. One welcomes happiness, while one turns away from unhappiness."
Saturday, August 7, 2010
संदेश
एक के बाद एक दुखों का मूल कारण तृष्णा ही है। इसलिए एक विचारवान व्यक्ति को सांसारिक तृष्णाओं के आकर्षण से एकदम दूर रहना चाहिए सच्चा धन केवल वही है जिससे प्रसन्नता मिलती है संतोष ही वह धन है उसे सच्चा सुख कैसे मिल सकता है जिसके मन में शान्ति नहीं है?
Thirst is the primary cause for bringing one misery after another. Therefore, a thoughtful man should at once turn away from the temptation of worldly thirst. True wealth is only that which brings one happiness. Contentment is that wealth. How can there be happiness for one lacking peace of mind?
Thirst is the primary cause for bringing one misery after another. Therefore, a thoughtful man should at once turn away from the temptation of worldly thirst. True wealth is only that which brings one happiness. Contentment is that wealth. How can there be happiness for one lacking peace of mind?
Friday, August 6, 2010
साईं भगवानुवाच
"यह मस्जिद माई किसी का ऋण नहीं रखती, जो इसकी गोद में बैठता है,यह माँ की तरह उसे दुलारती है,फिकर मत करना मै नहीं रहूँगा,मेरी द्वारका माई तुम्हारे समस्त इच्छाए पूरण करेगी,मेरी गोद मै बैठना है तो द्वारकामाई कीगोद मे बैठ,मेरे साथ रहना है तो मेरे भिक्षा पात्र (जो आज भी द्वारकामाई मे रखा है) से निवाला
उठा कर खा,मुझे साथ बैठाना है तो किसी गरीब को पास बैठा"
उठा कर खा,मुझे साथ बैठाना है तो किसी गरीब को पास बैठा"
संदेश
संसार की सभी वस्तुएं जिन्हें हम अपना कहते हैं वास्तव में भगवान की हैं मूर्खतावश व्यक्ति उन पर अपना अधिकार जताता है और दुखी तथा त्रस्त होता है
Everything in this world that we call our own really belongs to God. One foolishly arrogates their ownership to oneself and thereby feels unhappy or miserable.
Everything in this world that we call our own really belongs to God. One foolishly arrogates their ownership to oneself and thereby feels unhappy or miserable.
Thursday, August 5, 2010
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
अगर सौभाग्यवश तुम्हे सत्संग प्राप्त हो जाए तो बिना किसी परिश्रम के तुम्हें आध्यात्मिक निर्देश प्राप्त होने लगेंगे और बुरी संगति के प्रति आकर्षण स्वत: समाप्त हो जाएगा I फलत: मन पूर्णत: सत्संग में मग्न हो जाएगा I
"If one is fortunate having in Satsang, then one understands the preaching easily. At that very moment desire for bad company will melt away. The mind will be free to enjoy the Satsang."
संदेश
स्वयम को सही मानने का स्वभाव और सही ठहराना साथ- साथ चलते है। यह बहुत खतरनाक आदत है। जब तक मनुष्य का स्वयम को सही मानने और ठहराने का स्वभाव रहेगा, वह ध्यान और आध्यात्मिकता की ओर नही बढ सकता।
Self-justification goes hand-in-hand with self-assertive nature. This is a very dangerous habit. A man can never grow in meditation and spirituality so long as he has self-assertive nature with the habit of self-justification.
Self-justification goes hand-in-hand with self-assertive nature. This is a very dangerous habit. A man can never grow in meditation and spirituality so long as he has self-assertive nature with the habit of self-justification.
Wednesday, August 4, 2010
SHIRDI SAI
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"सत्संग तुम्हे शारीरिक लगाव से मुक्त कर देगा I उसकी शक्ति इतनी प्रभावशाली है की एक बार तुम स्वयं को पूर्ण लगन से उसमें समर्पित होकर तो देखो, तुम उसी क्षण सांसारिक बन्धनों से मुक्त हो जाओगे" I
"Satsang destroys the bodily attachments. Such is the power of its strength. Once these is firm faith in it, there is truly liberation from the mundane world."
"सत्संग तुम्हे शारीरिक लगाव से मुक्त कर देगा I उसकी शक्ति इतनी प्रभावशाली है की एक बार तुम स्वयं को पूर्ण लगन से उसमें समर्पित होकर तो देखो, तुम उसी क्षण सांसारिक बन्धनों से मुक्त हो जाओगे" I
"Satsang destroys the bodily attachments. Such is the power of its strength. Once these is firm faith in it, there is truly liberation from the mundane world."
संदेश
"वस्तुओं के उपयोग में उदार और परोपकारी बनो गरीब, बीमार और अभावग्रस्त लोगों की सेवा करो उनके ह्रदय में भगवान रहता है उनकी सेवा करके तुम ईश्वर की सेवा करोगे अत: उनके प्रति घ्रिना, दुर्भाव और ईर्ष्या की भावना मत रखो"
Be liberal and benevolent in the use of things. Serve the poor, the sick and the distressed who suffer from shortage. Their heart is the abode of God. By serving them you will serve God. Therefore do not have the feeling of hatred, malice and jealousy for them.
Be liberal and benevolent in the use of things. Serve the poor, the sick and the distressed who suffer from shortage. Their heart is the abode of God. By serving them you will serve God. Therefore do not have the feeling of hatred, malice and jealousy for them.
Tuesday, August 3, 2010
संदेश
अपने कष्ट के लिए दूसरों को जिम्मेवार ठहराना सबसे बड़ी भ्रान्ति है दूसरे के अवगुणों और अपने गुणों पर ध्यान मत दो जो अपने लिए कुछ नहीं चाहता, उस व्यक्ति को सब पसंद करते हैं
To regard another as the cause of one’s suffering is a delusion. Forget your virtues and other’s vices.One who desires nothing for himself is desired by all.
To regard another as the cause of one’s suffering is a delusion. Forget your virtues and other’s vices.One who desires nothing for himself is desired by all.
Monday, August 2, 2010
Shri Krishna Bhagavad Gita
You have the power to act only--
you do not have the power to influence the result--
...therefore you must act without the anticipation of the result--
without succumbing to inaction.
you do not have the power to influence the result--
...therefore you must act without the anticipation of the result--
without succumbing to inaction.
संदेश
गलत कार्य का परित्याग सही कार्य की शुरुआत है
बुराई से अच्छाई की ओर प्रस्थान बुराई का नाश है
बुरे कार्य को न दुहराना ही सबसे बड़ी अच्छाई है
Renunciation of wrong action spontaneously leads to right action. Returning good for evil destroys the evil. Not to repeat a bad deed is the best atonement.
बुराई से अच्छाई की ओर प्रस्थान बुराई का नाश है
बुरे कार्य को न दुहराना ही सबसे बड़ी अच्छाई है
Renunciation of wrong action spontaneously leads to right action. Returning good for evil destroys the evil. Not to repeat a bad deed is the best atonement.
Sunday, August 1, 2010
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
धन्य धन्य है संतो की संगति I उनकी महिमा का वर्णन कौन कर सकता है I सदभक्तो को इससे विवेक और परम शांति की प्राप्ति होती है I
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श्री साई सच्चरित्र अध्याय 1
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