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श्री गणेश जी की आरती
श्री लक्ष्मी जी की आरती
श्री हनुमान जी की आरती
साईं बाबा जी की आरतीयां
श्री रामायण जी की आरती
श्री खाटू श्याम जी की आरती
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श्री साईं बाबा जी की आरती
आरती श्री साईं गुरुवर की | परमानन्द सदा सुरवर की ||
जा की कृपा विपुल सुखकारी | दुःख, शोक, संकट, भयहारी ||
शिरडी में अवतार रचाया | चमत्कार से तत्व दिखाया ||
कितने भक्त चरण पर आये | वे सुख शान्ति चिरंतन पाये ||
भाव धरै जो मन में जैसा | पावत अनुभव वो ही वैसा ||
गुरु की उदी लगावे तन को | समाधान लाभत उस मन को ||
साईं नाम सदा जो गावे | सो फल जग में शाश्वत पावे ||
गुरुवासर करि पूजा - सेवा | उस पर कृपा करत गुरुदेवा ||
राम, कृष्ण, हनुमान रूप में | दे दर्शन, जानत जो मन में ||
विविध धर्म के सेवक आते | दर्शन कर इच्छित फल पाते ||
जै बोलो साईं बाबा की | जो बोलो अवधूत गुरु की ||
'साईंदास' आरती को गावे |
घर में बसि सुख, मंगल पावे ||
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श्री शनिदेवजी की आरती
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ॥
जय जय श्री शनिदेव…
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी ।
... नीलांबर धार नाथ गज की असवारी ॥
जय जय श्री शनिदेव…
किरीट मुकुट शीश सहज दिपत है लिलारी ।
मुक्तन की माल गले शोभित बलिहारी ॥
जय जय श्री शनिदेव…
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी ।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ॥
जय जय श्री शनिदेव…
देव दनुज ॠषि मुनि सुरत नर नारी ।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥
जय जय श्री शनिदेव…
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श्री रविदास जी की आरती
नामु तेरो आरती भजनु मुरारे |
हरि के नाम बिनु झूठे सगल पसारे || रहउ०
नाम तेरा आसानी नाम तेरा उरसा,
नाम तेरा केसरो ले छिटकारे |
नाम तेरा अंभुला नाम तेरा चंदनोघसि,
जपे नाम ले तुझहि कउ चारे |
नाम तेरा दीवा नाम तेरो बाती,
नाम तेरो तेल ले माहि पसारे |
नाम तेरे की जोति जलाई,
भइओ उजिआरो भवन समलारे |
नाम तेरो तागा नाम फूल माला,
भार अठारह सगल जुठारे |
तेरो किया तुझही किया अरपउ,
नामु तेरा तुही चंवर ढोलारे |
दस अठा अठसठे चार खाणी,
इहै वरतणि है संगल संसारे |
कहै रविदास नाम तेरो आरती,
सतिनाम है हरि भोग तुम्हारे |
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श्री गंगा जी की आरती
ॐ जय गंगे माता, श्री गंगे माता |
जो नर तुमको ध्यावता, मनवंछित फल पाता |
चन्द्र सी ज्योत तुम्हारी जल निर्मल आता |शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता |
पुत्र सगर के तारे सब जग को ज्ञाता |
कृपा दृष्टि तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता |
एक ही बार भी जो नर तेरी शरणगति आता |
यम की त्रास मिटा कर, परम गति पाता |
आरती मात तुम्हारी जो जन नित्य गाता |
दास वही जो सहज में मुक्ति को पाता |
ओउम जय गंगे माता |
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श्री खाटू श्याम जी की आरती
ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे |
खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे || ॐ
रतन जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुरे |
तन केसरिया बागो, कुण्डल श्रवण पड़े || ॐ
गल पुष्पों की माला, सिर पार मुकुट धरे |
खेवत धूप अग्नि पर दीपक ज्योति जले || ॐ
मोदक खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे |
सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे || ॐ
झांझ कटोरा और घडियावल, शंख मृदंग घुरे |
भक्त आरती गावे, जय - जयकार करे || ॐ
जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे |
सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम - श्याम उचरे || ॐ
श्री श्याम बिहारी जी की आरती, जो कोई नर गावे |
कहत भक्त - जन, मनवांछित फल पावे || ॐ
जय श्री श्याम हरे, बाबा जी श्री श्याम हरे |
निज भक्तों के तुमने, पूरण काज करे || ॐ
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शिवजी की आरती
शीश गंग अर्द्धागड़ पार्वती,सदा विराजत कैलाशी |
नंदी भृंगी नृत्य करत हैं,धरत ध्यान सुर सुख रासी ||
शीतल मंद सुगंध पवन बहे,वहाँ बैठे है शिव अविनासी |
करत गान गंधर्व सप्त स्वर,राग रागिनी सब गासी ||
यक्षरक्ष भैरव जहं डोलत,बोलत है बनके वासी |
कोयल शब्द सुनावत सुन्दर,भंवर करत हैं गुंजासी ||
कल्पद्रुम अरु पारिजात,तरु लाग रहे हैं लक्षासी |
कामधेनु कोटिक जहं डोलत,करत फिरत है भिक्षासी ||
सूर्य कांत समपर्वत शोभित,चंद्रकांत अवनी वासी |
छहों ऋतू नित फलत रहत हैं,पुष्प चढ़त हैं वर्षासी ||
देव मुनिजन की भीड़ पड़त है,निगम रहत जो नित गासी |
ब्रह्मा विष्णु जाको ध्यान धरत हैं,कछु शिव हमको फरमासी ||
ऋद्धि-सिद्धि के दाता शंकर,सदा अनंदित सुखरासी |
जिनको सुमरिन सेवा करते,टूट जाय यम की फांसी ||
त्रिशूलधर को ध्यान निरन्तर,मन लगाय कर जो गासी |
दूर करे विपता शिव तन की,जन्म-जन्म शिवपत पासी ||
कैलाशी काशी के वासी,अविनासी मेरी सुध लीज्यो |
सेवक जान सदा चरनन को,आपन जान दरश दीज्यो ||
तुम तो प्रभुजी सदा सयाने,अवगुण मेरो सब ढकियो |
सब अपराध क्षमाकर शंकर,किंकर की विनती सुनियो ||
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श्री पार्वती जी की आरती
जय पार्वती माता जय पार्वती माता |
ब्रह्मा सनातन देवी शुभफल की दाता |
अरिकुलापदम बिनासनी जय सेवक्त्राता,
जगजीवन जगदंबा हरिहर गुणगाता |
सिंह को बाहन साजे कुण्डल हैं साथा,
देबबंधु जस गावत नृत्य करा ताथा |
सतयुगरूपशील अतिसुन्दर नामसतीकहलाता,
हेमाचल घर जन्मी सखियन संग राता |
शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमाचल स्थाता,
सहस्त्र भुजा धरिके चक्र लियो हाथा |
सृष्टिरूप तुही है जननी शिव संगरंग राता |
नन्दी भृंगी बीन लही है हाथन मद माता |
देवन अरज करत तब चित को लाता,
गावन दे दे ताली मन में रंगराता |
श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता |
सदा सुखी नित रहता सुख सम्पति पाता |
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कबीर जी की आरती
सुन संधिया तेरी देव देवाकर,अधिपति अनादि समाई |
सिंध समाधि अंतु नहीं पाय,लागि रहै सरनई ||
लेहु आरती हो पुरख निरंजनु,सतगुरु पूजहु भाई |
ठाढ़ा ब्रह्म निगम बीचारै,अलख न लिखआ जाई ||
ततुतेल नामकीआ बाती,दीपक देह उज्यारा |
जोति लाइ जगदीश जगाया,बुझे बुझन हारा |
पंचे सबत अनाहद बाजे,संगे सारिंग पानी |
कबीरदास तेरी आरती कीनी,निरंकार निरबानी ||
याते प्रसन्न भय हैं महामुनि,देवन के जप में सुख पावै |
यज्ञ करै इक वेद रहै भवताप हरै,मिल ध्यान लगावै ||
झालर ताल मृदंग उपंग रबा,बलीए सुरसाज मिलावै |
कित्रर गंधर्व गान करै सुर सुन्दर,पेख पुरन्दर के बली जावै |
दानति दच्छन दै कै प्रदच्छन,भाल में कुंकुम अच्छत लावै ||
होत कुलाहल देव पुरी मिल,देवन के कुल मंगल गावैँ |
हे रवि हे ससि हे करुणानिधि,मेरी अबै बिनती सुन लीजै ||
और न मांगतहूँ तुमसे कछु चाहत,हौं चित में सोई कीजे |
शस्त्रनसों अति ही रण भीतर,जूझ मरौंतउ साँचपतीजे ||
सन्त सहाई सदा जग माइ,कृपाकर स्याम इहि है बरदीजे |
पांइ गहे जबते तुमरे तबते कोउ,आंख तरे नही आन्यो ||
राम रहीम पुरान कुरान अनेक,कहै मत एक न मान्यो ||
सिमरत साससत्रबेदस बैबहु भेद,कहै सब तोहि बखान्या |
श्री असिपान कृपा तुमरी करि,
मैं न कह्यो हम एक न जान्यो कह्यो||
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श्री प्रेतराज सरकार जी की आरती
जय प्रेतराज कृपालु मेरी,अरज अब सुन लीजिये |
मैं शरण तुम्हारी आ गया हूँ,नाथ दर्शन दीजिये |
मैं करूं विनती आपसे अब,तुम दयामय चित धरो |
चरणों का ले लिया आसरा,प्रभु वेग से मेरा दुःख हरो |
सिर पर मोरमुकुट करमें धनुष,गलबीच मोतियन माल है |
जो करे दर्शन प्रेम से सब,कटत तन के जाल है |
जब पहन बख्तर ले खड़ग,बांई बगल में ढाल है |
ऐसा भयंकर रूप जिनका,देख डरपत काल है |
अति प्रबल सेना विकट योद्धा,संग में विकराल है |
तब भूत प्रेत पिशाच बांधे,कैद करते हाल है |
तब रूप धरते वीर का,करते तैयारी चलन की |
संग में लड़ाके ज्वान जिनकी,थाह नहीं है बलन की |
तुम सब तरह समर्थ हो,प्रभुसकल सुख के धाम हो |
दुष्टों के मारनहार हो,भक्तों के पूरण काम हो |
मैं हूँ मती का मन्द मेरी,बुद्धि को निर्मल करो |
अज्ञान का अंधेर उर में,ज्ञान का दीपक धरो |
सब मनोरथ सिद्ध करते,जो कोई सेवा करे |
तन्दुल बूरा घृत मेवा,भेंट ले आगे धरे |
सुयश सुन कर आपका,दुखिया तो आये दूर के |
सब स्त्री अरु पुरुष आकर,पड़े हैं चरण हजूर के |
लीला है अदभुत आपकी,महिमा तो अपरंपार है |
मैं ध्यान जिस दम धरत हूँ,रच देना मंगलाचार है |
सेवक गणेशपुरी महन्त जी,की लाज तुम्हारे हाथ है |
करना खता सब माफ़,उनकी देना हरदम साथ है |
दरबार में आओ अभी,सरकार में हाजिर खड़ा |
इन्साफ मेरा अब करो,चरणों में आकर गिर पड़ा |
अर्जी बमूजिब दे चुका,अब गौर इस पर कीजिये |
तत्काल इस पर हुक्म लिख दो,फैसला कर दीजिये |
महाराज की यह स्तुति,कोई नेम से गाया करे |
सब सिद्ध कारज होय उनके,रोग पीड़ा सब टरे |
"सुखराम" सेवक आपका,उसको नहीं बिसराइये |
जै जै मनाऊं आपकी,
बेड़े को पार लगाइये |
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