श्री साईं बाबा अष्टोत्तारशत - नामावली
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श्री राम चालीसा
दोहा
गणपति चरण सरोज गहि । चरणोदक धरि भाल ।।
लिखौं विमल रामावली । सुमिरि अंजनीलाल ।।
... राम चरित वर्णन करौं । रामहिं हृदय मनाई ।।
मदन कदन रत राखि सिर । मन कहँ ताप मिटाई ।।
चौपाई
राम रमापति रघुपति जै जै । महा लोकपति जगपति जै जै ।।
राजित जनक दुलारी जै जै । महिनन्दिनी प्रभु प्यारी जै जै ।।
रातिहुं दिवस राम धुन जाहीं । मगन रहत मन तन दुख नाहीं ।।
राम सनेह जासु उर होई । महा भाग्यशाली नर सोई ।।
राक्षस दल संहारी जै जै । महा पतित तनु तारी जै जै ।।
राम नाम जो निशदिन गावत । मन वांछित फल निश्चय पावत ।।
रामयुधसर जेहिं कर साजत । मन मनोज लखि कोटिहुं लाजत ।।
राखहु लाज हमारी जै जै । महिमा अगम तुम्हारी जै जै ।।
राजीव नयन मुनिन मन मोहै । मुकुट मनोहर सिर पर सोहै ।।
राजित मृदुल गात शुचि आनन । मकराकृत कुण्डल दुहुँ कानन ।।
रामचन्द्र सर्वोत्तम जै जै । मर्यादा पुरुषोत्तम जै जै ।।
राम नाम गुण अगन अनन्ता । मनन करत शारद श्रुति सन्ता ।।
राति दिवस ध्यावहु मन रामा । मन रंजन भंजन भव दामा ।।
राज भवन संग में नहीं जैहें । मन के ही मन में रहि जैहें ।।
रामहिं नाम अन्त सुख दैहें । मन गढ़न्त गप काम न ऐहें ।।
राम कहानी रामहिं सुनिहें । महिमा राम तबै मन गुनिहें ।।
रामहि महँ जो नित चित राखिहें । मधुकर सरिस मधुर रस चाखिहें ।।
राग रंग कहुँ कीर्तन ठानिहें । मम्ता त्यागि एक रस जानिहें ।। .
राम कृपा तिन्हीं पर होईहें । मन वांछित फल अभिमत पैहें ।।
राक्षस दमन कियो जो क्षण में । महा बह्नि बनि विचर्यो वन में ।।
रावणादि हति गति दै दिन्हों । महिरावणहिं सियहित वध कीन्हों ।।
राम बाण सुत सुरसरिधारा । महापातकिहुँ गति दै डारा ।।
राम रमित जग अमित अनन्ता । महिमा कहि न सकहिं श्रुति सन्ता ।।
राम नाम जोई देत भुलाई । महा निशा सोइ लेत बुलाई ।।
राम बिना उर होत अंधेरा । मन सोही दुख सहत घनेरा ।।
रामहि आदि अनादि कहावत । महाव्रती शंकर गुण गावत ।।
राम नाम लोहि ब्रह्म अपारा । महिकर भार शेष सिर धारा ।।
राखि राम हिय शम्भु सुजाना । महा घोर विष किन्ह्यो पाना ।।
रामहि महि लखि लेख महेशु । महा पूज्य करि दियो गणेशु ।।
राम रमित रस घटित भक्त्ति घट । मन के भजतहिं खुलत प्रेम पट ।।
राजित राम जिनहिं उर अन्तर । महावीर सम भक्त्त निरन्तर ।।
रामहि लेवत एक सहारा । महासिन्धु कपि कीन्हेसि पारा ।।
राम नाम रसना रस शोभा । मर्दन काम क्रोध मद लोभा ।।
राम चरित भजि भयो सुज्ञाता । महादेव मुक्त्ति के दाता ।।
रामहि जपत मिटत भव शूला । राममंत्र यह मंगलमूला ।।
राम नाम जपि जो न सुधारा । मन पिशाच सो निपट गंवारा ।।
राम की महिमा कहँ लग गाऊँ । मति मलिन मन पार न पाऊँ ।।
रामावली उस लिखि चालीसा । मति अनुसार ध्यान गौरीसा ।।
रामहि सुन्दर रचि रस पागा । मठ दुर्वासा निकट प्रयागा ।।
रामभक्त्त यहि जो नित ध्यावहिं । मनवांछित फल निश्चय पावहिं ।।
दोहा
राम नाम नित भजहु मन । रातिहुँ दिन चित लाई ।।
मम्ता मत्सर मलिनता । मनस्ताप मिटि जाई ।।
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श्री हनुमान चालीसा
दोहा
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि I
बरनऊ रघुबर विमल जसु, जो दायक फल चारि II
बुद्धिहीन तनु जानिके , सुमरो पवन -कुमार I
बल बुद्धि विद्या देहु मोहे , हरहु कलेश विकार II
... चोपाई
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर I जय कपीस तिहुँ लोक उजागर II
राम दूत अतुलित बल धामा I अंजनी पुत्र पवन सूत नामा II
महाबीर बिक्रम बजरंगी I कुमति निवार सुमति के संगी II
कंचन बरन बिराज सुबेषा I कानन कुंडल कुंचित केशा II
हाथ वज्र औ ध्वजा बिराजे I कांधे मूँज जनेऊ साजे II
शंकर सुवन केसरीनंदन I तेज प्रताप महा जग बंधन II
विद्यावान गुणी अति चातुर I राम काज करिवे को आतुर II
प्रभु चरित सुनिवे को रसिया I राम लखन सीता मन बसिया II
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा I विकत रूप धरि लंक जरावा II
भीम रूप धरि असुर संहारे I रामचंद्र के काज संवारे II
लाये संजीवन लखन जियाये I श्रीरघुवीर हरिष उर लाये II
रघुपतिi किन्ही बहुत बड़ाई I तुम मम प्रिय भरत सम भाई II
सहस बदन तुम्हारो जस गावें I आस कहीं श्रीपति कंठ लगावें II
सनकादिक ब्रह्मादी मुनीशा I नारद शरद सहित अहिशा II
जम कुबेर दिगपाल जहाँते Iकवि कोविद कहिं सकें कहाँतें II
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा I राम मिलाये राज पद दीन्हा II
तुम्हरो मंत्र विभीषण मन I लंकेश्वर भये सब जग जाना II
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु I लील्यो ताहि मधुर फल जानू II
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि I जलधि लांघी गए अचरज नाहिं II
दुर्गम काज जगत के जेते I सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते II
राम दुआरे तुम रखवारे I होत न आज्ञा बिनु पैसारे II
सब सुख लहैं तुम्हरी शरना I तुम रक्षक काहू को डरना II
आपन तेज सम्हारो आपै I तीनो लोक हाकते कापें II
भूत पिशाच निकट नहीं आवै I महावीर जब नाम सुनावै II
नाशै रोग हरे सब पीरा I जपत निरंतर हनुमत वीरा II
संकट ते हनुमान छुड़ावै I मन क्रम बचन ध्यान जो लावै II
सब पर राम तपस्वी रजा I तिन के काज सकल तुम सजा II
और मनोरथ जो कोई लावै I सौई अमित जीवन फल पावै II
चारो जुग प्रताप तुम्हारा I है प्रसिद्द जगत उजियारा II
साधू संत के तुम रखवारे I असुर निकन्दन राम दुलारे II
अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता I अस बार दीन जानकी माता II
राम रसायन तुम्हारे पासा I सदा रहो रघुपति के दासा II
तुम्हरे भजन राम को पावै I जनम जनम के दुःख बिसरावे II
अंत काल रघुबर पुर जाई I जहाँ जनम हरी भक्त कहाई II
और देवता चित्त न धरई I हनुमत सोयी सर्व सुख करई II
संकट कटे मिटे सब पीरा I जो सुमरे हनुमत बलवीरा II
जै जै जै हनुमान गोंसाई I कृपा करहू गुरु देव की नाईं II
जो सत बार पाठ करे कोई I छूटे बन्दी महा सुख होई II
जो यह पड़े हनुमान चालीसा I होय सिद्धि साखी गोरिसा II
तुलसीदास सदा हरि चेरा I कीजे नाथ ह्रदय मैं डेरा II
दोहा
पवन तनय संकट हरण , मंगल मूर्ति रूप I
राम लखन सीता सहीत , ह्रदय बसहु सुर भूप II
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श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि I
बरनऊ रघुबर विमल जसु, जो दायक फल चारि II
बुद्धिहीन तनु जानिके , सुमरो पवन -कुमार I
बल बुद्धि विद्या देहु मोहे , हरहु कलेश विकार II
... चोपाई
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर I जय कपीस तिहुँ लोक उजागर II
राम दूत अतुलित बल धामा I अंजनी पुत्र पवन सूत नामा II
महाबीर बिक्रम बजरंगी I कुमति निवार सुमति के संगी II
कंचन बरन बिराज सुबेषा I कानन कुंडल कुंचित केशा II
हाथ वज्र औ ध्वजा बिराजे I कांधे मूँज जनेऊ साजे II
शंकर सुवन केसरीनंदन I तेज प्रताप महा जग बंधन II
विद्यावान गुणी अति चातुर I राम काज करिवे को आतुर II
प्रभु चरित सुनिवे को रसिया I राम लखन सीता मन बसिया II
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा I विकत रूप धरि लंक जरावा II
भीम रूप धरि असुर संहारे I रामचंद्र के काज संवारे II
लाये संजीवन लखन जियाये I श्रीरघुवीर हरिष उर लाये II
रघुपतिi किन्ही बहुत बड़ाई I तुम मम प्रिय भरत सम भाई II
सहस बदन तुम्हारो जस गावें I आस कहीं श्रीपति कंठ लगावें II
सनकादिक ब्रह्मादी मुनीशा I नारद शरद सहित अहिशा II
जम कुबेर दिगपाल जहाँते Iकवि कोविद कहिं सकें कहाँतें II
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा I राम मिलाये राज पद दीन्हा II
तुम्हरो मंत्र विभीषण मन I लंकेश्वर भये सब जग जाना II
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु I लील्यो ताहि मधुर फल जानू II
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि I जलधि लांघी गए अचरज नाहिं II
दुर्गम काज जगत के जेते I सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते II
राम दुआरे तुम रखवारे I होत न आज्ञा बिनु पैसारे II
सब सुख लहैं तुम्हरी शरना I तुम रक्षक काहू को डरना II
आपन तेज सम्हारो आपै I तीनो लोक हाकते कापें II
भूत पिशाच निकट नहीं आवै I महावीर जब नाम सुनावै II
नाशै रोग हरे सब पीरा I जपत निरंतर हनुमत वीरा II
संकट ते हनुमान छुड़ावै I मन क्रम बचन ध्यान जो लावै II
सब पर राम तपस्वी रजा I तिन के काज सकल तुम सजा II
और मनोरथ जो कोई लावै I सौई अमित जीवन फल पावै II
चारो जुग प्रताप तुम्हारा I है प्रसिद्द जगत उजियारा II
साधू संत के तुम रखवारे I असुर निकन्दन राम दुलारे II
अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता I अस बार दीन जानकी माता II
राम रसायन तुम्हारे पासा I सदा रहो रघुपति के दासा II
तुम्हरे भजन राम को पावै I जनम जनम के दुःख बिसरावे II
अंत काल रघुबर पुर जाई I जहाँ जनम हरी भक्त कहाई II
और देवता चित्त न धरई I हनुमत सोयी सर्व सुख करई II
संकट कटे मिटे सब पीरा I जो सुमरे हनुमत बलवीरा II
जै जै जै हनुमान गोंसाई I कृपा करहू गुरु देव की नाईं II
जो सत बार पाठ करे कोई I छूटे बन्दी महा सुख होई II
जो यह पड़े हनुमान चालीसा I होय सिद्धि साखी गोरिसा II
तुलसीदास सदा हरि चेरा I कीजे नाथ ह्रदय मैं डेरा II
दोहा
पवन तनय संकट हरण , मंगल मूर्ति रूप I
राम लखन सीता सहीत , ह्रदय बसहु सुर भूप II
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श्री हनुमान स्तुति
मंगलमूरति मारुतनंदन
।। राम श्रीराम श्रीराम श्रीराम ।।
.. मंगलमूरति मारुतनंदन अगमँहु सुगम बनाई ।
मुनि मन रंजन जन दुःख भंजन केहि बिधि करौं बड़ाई ।।
असहाय सहायक तुम सब लायक गुनगन यश जग छाई ।
अतिबड़भागी तुम अनुरागी रामचरन सुख दाई ।।
जनहित आगर विद्यासागर रामकृपा अधिकाई ।
बालि त्रास त्रसित सुग्रीव को राम से दिहेउ मिलाई ।।
भक्त विभीषन धीरज दीन्हेउ राम कृपा समुझाई ।
सिया सुख दीन्हेउ आशिष लीन्हेउ प्रभु सन्देश सुनाई ।।
बल बुधि धाम सिया सुधि लायउ रावन लंक जराई ।
वैद्य सुषेन सदन संग लायउ मूरि कहेउ जनु आई ।।
कालनेमि बधि लाइ सजीवन लक्षिमन प्रान बचाई ।
पैठि पताल अहिरावन मारेउ लायउ प्रभु दो भाई ।।
विजय संदेश सिया को दीन्हेउ सुनि अति मन हर्षाईं ।
बूड़त भरत विरह जल राखेउ आवत प्रभु बतलाई ।।
हाँक सुनत सब खल दल काँपैं छीजैं सुनि प्रभुताई ।
मैं मूढ़ मलीन कहँउ किम तव गुन शारद कहे न सिराई ।।
दीनदयाल भयउ तुलसी को तुमही नाथ सहाई ।
मम चित करउ कहँउ कर जोरे छमि अवगुन कुटिलाई ।।
स्वामिन स्वामि सिया रघुनाथ तव आरतपाल पितु-माई ।
रीति सदा जेहिं दीन को आदर कीरति जगत सुहाई ।।
दीनसहायक प्रिय रघुनायक मम हित बात चलाई ।
करुनासागर जन हित आगर अब न रखो बिसराई ।।
अघ अवगुन नहि देखि विरद निज करउ कृपा रघुराई ।
साधनहीन नहीं हित स्वामी भ्रमत है अकुलाई ।।
दीनबन्धु दीन संतोष की और विलम्ब किये न भलाई ।
असरन सरन एक गति तुमही राखो बाँह उठाई ।।
_/\_ मारुति नंदन नमो नमः _/\_ कष्ट भंजन नमो नमः _/\_
_/\_ असुर निकंदन नमो नमः _/\_ श्रीरामदूतम नमो नमः _/\
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संकटमोचन हनुमानाष्टक
बाल समय रवि भक्षी लियो तब तीनहुं लोक भयो अँधियारो I
ताहि सो त्रास भयो जग को यह संकट काहू सो जात न टारो II
देवन आनि करी बिनती तब छाड़ दियो रवि कष्ट निवारो I
... को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
बालि की त्रास कपीस बसे गिरि जात महा प्रभु पंथ निहारो I
चौंकि महा मुनि श्राप दियो तब चाहिये कौन बिचार बिचारो II
कै द्विज रूप लिवाय महा प्रभु सो तुम दास के शोक निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
अंगद के संग लेन गये सिया खोज कपीस यह बैन उचारो I
जीवत ना बचिहौ हम सो जो बिना सुधि लाये यहाँ पगु धारौ II
हेरि थके तट सिन्धु सबै तब लाये सिया सुधि प्राण उबारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
रावण त्रास दई सिया को सब राक्षसि सों कहि शोक निवारो I
ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाय महा रजनी चर मारो II
चाहत सिया अशोक सों आगिसु दें प्रभु मुद्रिका शोक निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
बाण लाग्यो उर लक्ष्मण के तब प्राण तज्यो सुत रावण मारो I
ले गृह वैद्य सुषेन समेत तवै गिरि द्रोण सो वीर उपारो II
आनि सजीवन हाथ दई तब लक्ष्मण के तुम प्राण उबारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
रावण युद्ध अजान कियो तब नाग कि फाँस सबै सिर दारो I
श्री रघुनाथ समेत सबै दल मोह भयो यह संकट भारो II
आनि खगेस तबै हनुमान जु बंधन काटि सुत्रास निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
बंधु समेत जबै अहि रावण लै रघुनाथ पातळ सिधारो I
देविहिं पूजि भलि विधि सो बलि देउ सबै मिलि मंत्र विचारो II
जाय सहाय भयो तब ही अहि रावण सैन्य समेत संघारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
काज किये बड़ देवन के तुम वीर महा प्रभु देखि बिचारो I
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुम सों नहिं जात है टारो II
बेगि हरो हनुमान महा प्रभु जो कछु संकट होय हमारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
लाल देह लाली लसे ,अरु धरि लाल लंगूर I
बज्र देह दानव दलन,जय जय जय कपि सूर II
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।। राम श्रीराम श्रीराम श्रीराम ।।
.. मंगलमूरति मारुतनंदन अगमँहु सुगम बनाई ।
मुनि मन रंजन जन दुःख भंजन केहि बिधि करौं बड़ाई ।।
असहाय सहायक तुम सब लायक गुनगन यश जग छाई ।
अतिबड़भागी तुम अनुरागी रामचरन सुख दाई ।।
जनहित आगर विद्यासागर रामकृपा अधिकाई ।
बालि त्रास त्रसित सुग्रीव को राम से दिहेउ मिलाई ।।
भक्त विभीषन धीरज दीन्हेउ राम कृपा समुझाई ।
सिया सुख दीन्हेउ आशिष लीन्हेउ प्रभु सन्देश सुनाई ।।
बल बुधि धाम सिया सुधि लायउ रावन लंक जराई ।
वैद्य सुषेन सदन संग लायउ मूरि कहेउ जनु आई ।।
कालनेमि बधि लाइ सजीवन लक्षिमन प्रान बचाई ।
पैठि पताल अहिरावन मारेउ लायउ प्रभु दो भाई ।।
विजय संदेश सिया को दीन्हेउ सुनि अति मन हर्षाईं ।
बूड़त भरत विरह जल राखेउ आवत प्रभु बतलाई ।।
हाँक सुनत सब खल दल काँपैं छीजैं सुनि प्रभुताई ।
मैं मूढ़ मलीन कहँउ किम तव गुन शारद कहे न सिराई ।।
दीनदयाल भयउ तुलसी को तुमही नाथ सहाई ।
मम चित करउ कहँउ कर जोरे छमि अवगुन कुटिलाई ।।
स्वामिन स्वामि सिया रघुनाथ तव आरतपाल पितु-माई ।
रीति सदा जेहिं दीन को आदर कीरति जगत सुहाई ।।
दीनसहायक प्रिय रघुनायक मम हित बात चलाई ।
करुनासागर जन हित आगर अब न रखो बिसराई ।।
अघ अवगुन नहि देखि विरद निज करउ कृपा रघुराई ।
साधनहीन नहीं हित स्वामी भ्रमत है अकुलाई ।।
दीनबन्धु दीन संतोष की और विलम्ब किये न भलाई ।
असरन सरन एक गति तुमही राखो बाँह उठाई ।।
_/\_ मारुति नंदन नमो नमः _/\_ कष्ट भंजन नमो नमः _/\_
_/\_ असुर निकंदन नमो नमः _/\_ श्रीरामदूतम नमो नमः _/\
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संकटमोचन हनुमानाष्टक
बाल समय रवि भक्षी लियो तब तीनहुं लोक भयो अँधियारो I
ताहि सो त्रास भयो जग को यह संकट काहू सो जात न टारो II
देवन आनि करी बिनती तब छाड़ दियो रवि कष्ट निवारो I
... को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
बालि की त्रास कपीस बसे गिरि जात महा प्रभु पंथ निहारो I
चौंकि महा मुनि श्राप दियो तब चाहिये कौन बिचार बिचारो II
कै द्विज रूप लिवाय महा प्रभु सो तुम दास के शोक निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
अंगद के संग लेन गये सिया खोज कपीस यह बैन उचारो I
जीवत ना बचिहौ हम सो जो बिना सुधि लाये यहाँ पगु धारौ II
हेरि थके तट सिन्धु सबै तब लाये सिया सुधि प्राण उबारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
रावण त्रास दई सिया को सब राक्षसि सों कहि शोक निवारो I
ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाय महा रजनी चर मारो II
चाहत सिया अशोक सों आगिसु दें प्रभु मुद्रिका शोक निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
बाण लाग्यो उर लक्ष्मण के तब प्राण तज्यो सुत रावण मारो I
ले गृह वैद्य सुषेन समेत तवै गिरि द्रोण सो वीर उपारो II
आनि सजीवन हाथ दई तब लक्ष्मण के तुम प्राण उबारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
रावण युद्ध अजान कियो तब नाग कि फाँस सबै सिर दारो I
श्री रघुनाथ समेत सबै दल मोह भयो यह संकट भारो II
आनि खगेस तबै हनुमान जु बंधन काटि सुत्रास निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
बंधु समेत जबै अहि रावण लै रघुनाथ पातळ सिधारो I
देविहिं पूजि भलि विधि सो बलि देउ सबै मिलि मंत्र विचारो II
जाय सहाय भयो तब ही अहि रावण सैन्य समेत संघारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
काज किये बड़ देवन के तुम वीर महा प्रभु देखि बिचारो I
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुम सों नहिं जात है टारो II
बेगि हरो हनुमान महा प्रभु जो कछु संकट होय हमारो I
को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो II
लाल देह लाली लसे ,अरु धरि लाल लंगूर I
बज्र देह दानव दलन,जय जय जय कपि सूर II
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