ज्ञानियों के लिये !!
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श्री वेद व्यास भगवान की जय हो!!
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वेदांत-दर्शन के प्रणेता व्यास जी के मत में--- अन्त:करण की शुद्धि के साधक कर्म को ही " धर्म " कहते हैं! धर्मानुष्ठान से उच्छ्रंखाला कर्म पर नितंत्रण स्थापित होता है! वासनाएं मर्यादित होती हैं! वेद-वचन पर श्रद्धा होती है! कर्तव्याकर्ता की मीमासा से विवेक-शक्ति बढ़ती है! देहातिरिक्त आत्मा की ओर ध्यान जाता है! धर्म के द्वारा आराध्य दैवी शक्तियों का ज्ञान होता है! धर्म के न्यूनाधिक्य के अनुसार पितृलोक, देवलोक, ब्रह्मलोक आदि का विचार होता है! फलदाता ईश्वर है-- इसपर विश्वास होता है! धर्म का निष्काम अनुष्ठान करने पर निष्कामता की प्रतिष्ठा होती है! वस्तुत: अंत:करण का जागरूक रहकर निष्काम होना ही उसकी ' शुद्धि' है! शुद्धि से वैराग्य और जागरूकता से विवेक का उदय होता है!!