श्री विट्ठल पूजन में बाबा को कितनी रुचि थी, यह भगवंतराव क्षीरसागर की कथा से सपष्ट है । भगवंतराव के पिता विठोबा के परम भक्त थे, जो प्रतिवर्ष पंढरपुर को वारी लेकर जाते थे । उनके घर में विठोबा की एक मूर्ति थी, जिसकी वे नित्यप्रति पूजा करते थे । उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र भगवंतराव ने वारी, पूजन, श्राद्ध इत्यादि समस्त कर्म करना छोड़ दिया । जब भगवंतराव शिरडी आये तो बाबा उन्हें देखते ही कहने लगे कि, "इनके पिता मेरे परम मित्र थे । इसी कारण मैंने इन्हे
ं यहाँ बुलाया हैं । इन्होंने कभी नैवेद्य अर्पण नहीं किया तथा मुझे और विठोबा को भूखों मारा है । इसलिये मैंने इन्हें यहां आने को प्रेरित किया है । अब मैं इन्हें हठपूर्वक पूजा में लगा दूँगा ।"
(श्री साई सच्चरित्र)