!! भुवनेश्वरी माता की जय हो !!
प्राणी माया की अधीनता में रहकर उसके आज्ञानुसार ही चेष्टा करता है! वह माया परम तत्त्व के रूपमें सदा सम्मिलित रहती है! उस परम तत्त्व की आज्ञा पाकर प्राणियों को प्रेरित करना इसका नित्य का कार्य है! उस माया को सहचरी रूप में स्वीकार करनेवाली भगवती परमेश्वरी सदा साथ लिये रहती है! इसीलिए सच्चिदानन्दमय-विग्रह धारण करनेवाली उन भगवती को " मायेश्वरी " कहा जाता है! उनके ध्यान, पूजन, नमस्कार और जपमें सदा तत्पर रहना चाहिये! इससे अपनी दयालुता के कारण वे प्राणी को माया रहित बना देती है! अपनी अनुभूति प्रदान करके वे माया को हर लेती हैं! अतएव इन भगवती परमेश्वरी को " भुवनेशी " कहा गया है!! मायिक गुणों से निवृत्त होने के लिये प्रसन्नतापूर्वक भगवती की उपासना करनी चाहिये!
जय माता की!!
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