अञ्जनी पुत्र हनुमान की जय हो!!
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स्वर्न -सैल-संकास कोटि- रबि -तरुण-तेज-धन!
उर बिलास, भुजदंड चंड नख बज्र बज्रतन!!
पिंग नयन, भृकुटि कराल रसना दसनानन !
कपीस केस, कराकस लंगूर, खेल-दल-बल-भानन!!
कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट!
संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नाहिं आवत निकट!!
अर्थात---
वे स्वर्ण पर्वत [ सुमेरु ] के समान शरीरवाले, करोड़ों मध्याह्न के सूर्य के सदृश अनन्त तेजोराशि, विषयक हृदय, अत्यंत बलवान भुजाओं वाले तथा बज्र के तुल्य नख और शरीर वाले हैं! उनके नेत्र पीले हैं, भौहें, जीभ, दन्त और मुख बिकराल है, बाल भूरे रंग के तथा पूँछ कठोर और दुष्टों के दलके बल को नाश कयनेवाली है! तुलसीदासजी कहते हैं--- श्रीपवनकुमार के समीप दुःख और पाप स्वप्न में भी नाहीं आते!
[ जय सिया राम]