भेष-भूषा अक्सर भ्रमित करने के लिए भी धारण कि जा सकती है दरअसल हमारे द्वारा ही ये व्यवस्था निर्धारित कि गई है कि किसका भेष कैसा हो
ये सारी व्यवस्थाये मात्र उपरी बदलाव को प्रदर्शित करती है वास्तव में भीतर के बदलाव का भेष-भूषा से कोई सम्बन्ध नहीं है क्रष्ण अटखेलियाँ करते, युद्ध करते हुए भी संत हो सकते हैं संत,,, साधू के लिबास में भी कंस हो सकते है कैसे निरख सकोगे भीतर के संत को,,,दोहा चोपाई तो कोई भी रट लेता है वास्तव में तो व्यक्तित्व किसी लिबास या भेष का मोहताज नहीं है भेष बदलकर व्यक्ति दूसरों को ही नहीं खुद को भी भ्रमित करता है दरअसल इस भ्रम में भी अस्थाई आनंद छुपा है कैसी अनोखी व्यवस्थाएं है संसार कि वास्तव में ये व्यवस्थाएं संसारी होने का परिचय मात्र है
((((( वास्तविकता इन सबसे परे है ))))) ----
Shirdi Sai
Pages
Wednesday, June 23, 2010
श्री साई सच्चरित्र
श्री साई सच्चरित्र
आओ मिलकर पढ़ें और साथ जुड़ें !
श्री साई सच्चरित्र अध्याय 1
आओ मिलकर पढ़ें और साथ जुड़ें !