Shirdi Sai
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Tuesday, June 15, 2010
संदेश
जैसे सोना जब खान के अन्दर था तब भी सोना था, अब उसमें से आभूषण बने तो भी वह सोना ही है और जब आभूषण नष्ट हो जायेंगे तब भी वह सोना ही रहेगा, वैसे ही केवल आनंदस्वरूप परब्रह्म ही सत्य है।चाहे शरीर रहे अथवा न रहे, जगत रहे अथवा न रहे, परंतु आत्मतत्त्व तो सदा एक-का-एक, ज्यों का त्यों है।
श्री साई सच्चरित्र
श्री साई सच्चरित्र
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श्री साई सच्चरित्र अध्याय 1
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