धर्म ये नहीं के तुम हिन्दू हो, मुस्लिम हो, सिख हो या ईसाई हो..धर्म परमात्मा ने बनाया है एक, जिससे सब अपने-अपने सदभाव से चलते है सूरज, चाँद, सितारों का भी धर्म है, जो उनका सदभाव बना दिया गया है उसके हिसाब से चलते है अपने सदभाव के अनुरूप ही वो व्यावहार करते है और वो ही धर्म है, तो जब हम अपने अज्ञान को स्वीकारने को तैयार हो जाते है तो हममे धार्मिक होने के लक्ष्ण पैदा हो जाते है और धार्मिक आदमी की ये बहोत बड़ी खासियत है की वो मुह बंद रखता है, वो तर्क-वितर्क नहीं देता फिर, वो तो कहता है अच्छा जी नमस्कार तुम बड़े और मै छोटा ठीक है, फिर झगडा होता नहीं है क्युकी ज्ञानी जिसको की अपने अज्ञान का पता चल गया वो तर्क देता ही नहीं है, एक तर्क तुम दो एक मै दू बात बढती चली जायेंगी इसलिए धार्मिक व्यक्ति को कभी हरा ही नहीं सकते क्युकी वो झगड़ने का मौका ही नहीं देता ये बहोत अच्छी बात है उसकी तो संत बता रहे है की जब भी ध्यान देना अपने अज्ञान पे ध्यान देना की क्या मालूम नहीं है,जब पता चल जायेगा की जो ज्ञान है वो छोटा सा है और अज्ञान बहोत बड़ा है, तो वो हमारे
धार्मिक होने की पहली निशानी है
Shirdi Sai
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Saturday, May 1, 2010
श्री साई सच्चरित्र
श्री साई सच्चरित्र
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श्री साई सच्चरित्र अध्याय 1
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