Wednesday, October 31, 2012

आज का विचार

आज का विचार -"गलती कोई भी मनुष्य कर सकता है परन्तु जो उसे दोहराता है वह परम मूर्ख है।"

shirdi sai baba teachings


Tuesday, October 30, 2012

श्री साईं वचन

श्री साईं वचन - "अपने कर्तव्य का निर्वाह इमानदारी से तथा अनासक्ति के साथ स्वयं को यह समझकर करो कि तुम करता नही वरन् उसके हाथों का एक हथियार मात्र हो"

आज का विचार

आज का विचार -"चिन्ता दो ही अवस्थाओं में मिट सकती है। या तो सब कुछ हो या फिर कुछ भी न हो।"

Saturday, October 27, 2012

SAMADHI DIWAS CELEBRATION 2012



BABA'S PAALKI IS READY FOR PAALKI YATRA AT 2300 US 1 NORTH, DOCK 2, SUITE#103, 2ND FLOOR, NORTH BRUNSWICK, NJ - 08902 
ON SAMADHI DIWAS CELEBRATION 2012

shirdi sai baba teachings श्री हरि



यद्यपि बाबा का स्वरुप अब देखने को नहीं मिल सकता है, फिर भी यदि हम शिरडी को जाये तो हमें वहाँ उनका जीवित-सदृश चित्र (द्घारकामाई) को शोभायमान करते हुए अब भी देखने में आयेगा । यह चित्र बाबा के एक प्रसिद्ध भक्त-कलाकार श्री. शामराव जयकर ने बनाया था । एक कल्पनाशील और भक्त दर्शक को यह चित्र अभी भी बाबा के दर्शन के समान ही सन्तोष और सुख पहुँचाता है । बाबा अब देह में स्थित नहीं है, परन्तु वे सर्वभूतों में व्याप्त है और भक्तों का कल्याण पूर्ववत् ही करते रहे है, करते रहेंगे, जैसा कि वे सदेह रहकर किया करते थे । बाबा अमर है, चाहे वे नरदेह धारण कर ले, जो कि एक आवरण मात्र है, परन्तु वे तो स्वयं भगवान श्री हरि है, जो समय-समय पर भूतल पर अवतीर्ण होते है ।
(श्री साई सच्चरित्र)

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Tuesday, October 23, 2012

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इष्ट श्रीराम
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एक समय एक मामलतदार अपने एक डॉक्टर मित्र के साथ शिरडी पधारे । डॉक्टर का कहना था कि मेरे इष्ट श्रीराम हैं । मैं किसी यवन को मस्तक न नमाऊँगा । अतः वे शिरडी जाने में असहमत थे । मामलतदार ने समझाया कि "तुम्हें नमन करने को कोई बाध्य न करेगा और न ही तुम्हें कोई ऐसा करने को कहेगा । अतः मेरे साथ चलो, आनन्द रहेगा।" वे शिरडी पहुँचे और बाबा के दर्शन को गये । परन्तु डॉक्टर को ही सबसे आगे जाते देख और बाबा की प्रथम चरण वन्दना करते देख सब को बढ़ा विस्
मय हुआ । लोगों ले डाँक्टर से अपना निश्चय बदलने और इस भाँति एक यवन को दंडवत् करने का कारण पूछा । डॉक्टर ने बतलाया कि बाबा के स्थान पर उन्हें अपने प्रिय इष्ट देव श्रीराम के दर्शन हुए और इसलिये उन्होंने नमस्कार किया । जब वे ऐसा कह ही रहे थे, तभी उन्हें साईबाबा का रुप पुनः दीखने लगा । वे आश्चर्यचकित होकर बोले – "क्या यह स्वप्न है? ये यवन कैसे हो सकते हैं ? अरे ! अरे ! यह तो पूर्ण योग-अवतार है ।" दूसरे दिन से उन्होंने उपवास करना प्रारम्भ कर दिया । उन्होंने प्रतिज्ञा की कि जब तक बाबा स्वयं बुलाकर आशीर्वाद नहीं देंगे, तब तक मस्जिद में कदापि न जाऊँगा । इस प्रकार तीन दिन व्यतीत हो गये । चौथे दिन उनका एक इष्ट मित्र खानदेश से शरडी आया । वे दोनों मस्जिद में बाबा के दर्शन करने गये । नमस्कार होने के बाद बाबा ने डाँक्टर से पूछा, "आपको बुलाने का कष्ट किसने किया ? आप यहाँ कैसे पधारे ?" यह प्रश्न सुनकर डाँक्टर द्रवित हो गये और उसी रात्रि को बाबा ने उनपर कृपा की । डाँक्टर को निद्रा में ही परमानन्द का अनुभव हुआ । वे अपने शहर लौट आये तो भी उन्हें 15 दिनों तक वैसा ही अनुभव होता रहा । इस प्रकार उनकी साईभक्ति कई गुना बढ़ गई ।
उपर्यु्क्त कथा की शिक्षा यही है कि हमें अपने गुरु में दृढ़ विश्वास होना चाहिये ।
(श्री साई सच्चरित्र)

Jai Mata Di


Sunday, October 21, 2012

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हमें सभी सन्तों के वचनों का उचित आदर करना चाहिये, परन्तु साथ ही साथ यह भी परम आवश्यक है कि हमें अपनी माँ अर्थात् गुरु पर पूर्ण विश्वास रख उनके आदेशों का अक्षरशः पालन करना चाहिये, क्योंकि अन्य लोगों की अपेक्षा हमारे कल्याण की उन्हें अधिक चिन्ता है ।
(श्री साई सच्चरित्र)

Jai Mata Di


Saturday, October 20, 2012

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सन्त स्वयं ही देह धारण करते है तथा कोई निश्चित ध्येय लेकर इस संसार में प्रगट होते है ओर जब ध्येय पूर्ण हो जाता है तो वे जिस सरलता और आकस्मिकता के साथ प्रगट होते है, उसी प्रकार लुप्त भी हो जाया करते है ।
(श्री साई सच्चरित्र)

Jai Mata Di


Jai Mata Di


Monday, October 15, 2012

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पूर्व तैयारी-समाधि मन्दिर

हिन्दुओं में यह प्रथा प्रचलित है कि जब किसी मनुष्य का अन्तकाल निकट आ जाता है तो उसे धार्मिक ग्रन्थ आदि पढ़कर सुनाये जाते है । इसका मुख्य कारण केवल यही है कि जिससे उसका मन सांसारिक झंझटों से मुक्त होकर आध्यात्मिक विषयों में लग जाय और वह प्राणी कर्मवश अगले जन्म में जिस योनि को धारण करे, उसमें उसे सदगति प्राप्त हो । सर्वसाधारण को यह विदित ही है कि जब राजा परीक्षित को एक ब्रहृर्षि पुत्र ने शाप दिया और एक सप्ताह के पश्चात् ही उनका अन्तकाल निकट आया तो महात्मा शुकदेव ने उन्हें उस सप्ताह में श्रीमदभागवत पुराण का पाठ सुनाया, जिससे उनको मोक्ष की प्राप्ति हुई । यह प्रथा अभी भी अपनाई जाती है । महानिर्वाण के समय गीता, भागवत और अन्य ग्रन्थों का पाठ किया जाता है । बाबा तो स्वयं अवतार थे, इसलिये उन्हें बाहृ साधनों की आवश्यकता नहीं थी, परन्तु केवल दूसरों के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करने के हेतु ही उन्होंने इस प्रथा की उपेक्षा नहीं की । जब उन्हें विदित हो गया कि मैं अब शीघ्र इस नश्वर देह को त्याग करुँगा, तब उन्होंने श्री. वझे को "रामविजय" प्
रकरण सुनाने की आज्ञा दी । श्री. वझे ने एक सप्ताह प्रतिदिन पाठ सुनाया । तत्पश्चात ही बाबा ने उन्हें आठों प्रहर पाठ करने की आज्ञा दी । श्री. वझे ने उस अध्याय की द्घितीय आवृति तीन दिन में पूर्ण कर दी और इस प्रकार 11 दिन बीत गये । फिर तीन दिन और उन्होंने पाठ किया । अब श्री. वझे बिल्कुल थक गये । इसलिये उन्हें विश्राम करने की आज्ञा हुई । बाबा अब बिलकुल शान्त बैठ गये और आत्मस्थित होकर वे अन्तिम श्रण की प्रतीक्षा करने लगे । दो-तीन दिन पूर्व ही प्रातःकाल से बाबा ने भिक्षाटन करना स्थगित कर दिया और वे मस्जिद में ही बैठे रहे । वे अपने अन्तिम क्षण के लिये पूर्ण सचेत थे, इसलिये वे अपने भक्तों को धैर्य तो बँधाते रहते, पर उन्होंने किसी से भी अपने महानिर्वाण का निश्चित समय प्रगट न किया । इन दिनों काकासाहेब दीक्षित और श्रीमान् बूटी बाबा के साथ मस्जिदद में नित्य ही भोज करते थे । महानिर्वाण के दिन (15 अक्टूबर को) आरती समाप्त होने के पश्चात् बाबा ने उन लोगों को भी अपने निवासस्थान पर ही भोजन करके लौटने को कहा । फिर भी लक्ष्मीबाई शिंदे, भागोजी शिंदे, बयाजी, लक्ष्मण बाला शिम्पी और नानासाहेब निमोणकर वहीं रह गये । शामा नीचे मस्जिद की सीढ़ियों पर बैठे थे । लक्ष्मीबाई शिन्दे को 9 रुपये देने के पश्चात् बाबा ने कहा कि "मुझे मस्जिद में अब अच्छा नहीं लगता है, इसलिये मुझे बूटी के पत्थर वाड़े में ले चलो, जहाँ मैं सुखपूर्वक रहूँगा ।" ये ही अन्तिम शब्द उनके श्रीमुख से निकले । इसी समय बाबा बयाजी के शरीर की ओर झुक गये और अन्तिम श्वास छोड़ दी । भागोजी ने देखा कि बाबा की श्वास रुक गई है, तब उन्होंने नानासाहेब निमोणकर को पुकार कर यह बात कही । नानासाहेब ने कुछ जल लाकर बाबा के श्रीमुख में डाला, जो बाहर लुढ़क आया । तभी उन्होंने जोर से आवाज लाई "अरे ! देवा !" तब बाबा ऐसे दिखाई पड़े, जैसे उन्होंने धीरे से नेत्र खोलकर धीमे स्वर में 'ओह' कहा हो । परन्तु अब स्पष्ट विदित हो गया कि उन्होंने सचमुच ही शरीर त्याग दिया है ।
(श्री साई सच्चरित्र)

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Saturday, October 13, 2012

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ईंट का खण्डन

बाबा के निर्वाण के कुछ समय पूर्व एक अपशकुन हुआ, जो इस घटना की पूर्वसूचना-स्वरुप था । मस्जिद में एक पुरानी ईंट थी, जिस पर बाबा अपना हाथ टेककर रखते थे । रात्रि के समय बाबा उस पर सिर रखकर शयन करते थे । यह कार्यक्रम अनेक वर्षों तक चला । एक दिन बाबा की अनुपस्थिति में एक बालक ने मस्जिद में झाड़ू लगाते समय वह ईंट अपने हाथ में उठाई । दुर्भाग्यवश वह ईंट उसके हाथ से गिर पड़ी और उसके दो टुकड़े हो गये । जब बाबा को इस बात की सूचना मिली तो उन्हें उसका बड़ा दुःख हुआ और वे कहने लगे कि "यह ईंट नहीं फूटी है, मेरा भाग्य ही फूटकर छिन्न-भिन्न हो गया है । यह तो मेरी जीवनसंगिनी थी और इसको अपने पास रखकर मैं आत्म-चिंतन किया करता था । यह मुझे अपने प्राणों के समान प्रिय थी और उसने आज मेरा साथ छोड़ दिया है ।" कुछ लोग यहाँ शंका कर सकते है कि बाबा को ईंट जैसी एक तुच्छ वस्तु के लिये इतना शोक क्यों करना चाहिये? इसका उत्तर हेमाडपंत इस प्रकार देते है कि संत जगत के उद्घार तथा दीन और अनाश्रितों के कल्याणार्थ ही अवतीर्ण होते है । जब वे नरदेह धारण करते है और जनसम्पर्क में आते है तो वे इसी प्रकार आचरण किया करते है, अर्थात् बाहृ रुप से वे अन्य लोगों के समान ही हँसते, खेलते और रोते है, परन्तु आन्तरिक रुप से वे अपने अवतार-कार्य और उसके ध्येय के लिये सदैव सजग रहते है ।

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om sai ram


Thursday, October 11, 2012

Sai Aardas

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अपने साईं से एक अरदास
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हे साईं बाबा,
रहमते खुदाया
चरणों में वंदन कर लो कबूल,

संगी-साथी, अपने पराए,
कोई भी मेरे काम न आए
जो कुछ भी पाया,
तुमसे है पाया
भेंट हमारी कर लो कबूल ।

दर-दर भटके, आस के मारे
प्यासों को तुमने अमृत पिलाया,
शिर्डी को तुमने तीर्थ बनाया
श्रद्धा-सबुरी का मंत्र सिखाया,
भक्ति हमारी कर लो कबूल ।

ज्योति तुम्हारे नाम की बाबा,
घर-घर में अजियारा लाई
धूनी जलाकर रोग मिटाए,
पाप उस अग्नि में सबके जलाये
तन-मन की सेवा कर लो कबूल।

हे साईं बाबा,
रहमते खुदाया
चरणों में वंदन कर लो कबूल ॥

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_/|\_.......ॐ साईं राम.......*.......ॐ साईं राम......._/|\_
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Wednesday, October 10, 2012

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बाघ की मुक्ति

बाबा के समाधिस्थ होने के सात दिन पूर्व शिरडी में एक विचित्र घटना घटी । मस्जिद के सामने एक बैलगाड़ी आकर रुकी, जिस पर एक बाघ जंजीरों से बँधा हुआ था । उसका भयानक मुख गाड़ी के पीछे की ओर था । वह किसी अज्ञात पीड़ा या दर्द से दुःखी था । उसके पालक तीन दरवेश थे, जो एक गाँव से दूसरे गाँव में जाकर उसके नित्य प्रदर्शन करते और इस प्रकार यथेष्ठ द्रव्य संचय करते थे और यही उनके जिविकोपार्जन का एक साधन था । उन्होंने उसकी चिकित्सा के सभी प्रयत्न किये, परन्तु सब कुछ व्यर्थ हुआ । कहीं से बाबा की कीर्ति उनके कानों में पड़ गई और वे बाघ को लेकर साई दरबार में आये । हाथों से जंजीरें पकड़कर उन्होंने बाघ को मस्जिद के दरवाजे पर खड़ा कर दिया । वह स्वभावतः ही भयानक था, पर रुग्ण होने के कारण वह बेचैन था । लोग भय और आश्चर्य के साथ उसकी ओर देखने लगे । दरवेश अन्दर आये और बाबा को सब हाल बताकर उनकी आज्ञा लेकर वे बाघ को उनके सामने लाये । जैसे ही वह सीढ़ियों के समीप पहुँचा, वैसे ही बाबा के तेजःपुंज स्वरुप का दर्शन कर एक बार पीछे हट गया और अपनी गर्दन नीचे झुका दी । जब द
ोनों की दृष्टि आपस में एक हुई तो बाघ सीढ़ी पर चढ़ गया और प्रेमपूर्ण दृष्टि से बाबा की ओर निहारने लगा । उसने अपनी पूँछ हिलाकर तीन बार जमीन पर पटकी और फिर तत्क्षण ही अपने प्राण त्याग दिये । उसे मृत देखकर दरवेशी बड़े निराश और दुःखी हुए । तत्पश्चात जब उन्हें बोध हुआ तो उन्होंने सोचा कि प्राणी रोगग्रस्त था ही और उसकी मृत्यु भी सन्निकट ही थी । चलो, उसके लिये अच्छा ही हुआ कि बाबा सरीखे महान् संत के चरणों में उसे सदगति प्राप्त हो गई । वह दरवेशियों का ऋणी था और जब वह ऋण चुक गया तो वह स्वतंत्र हो गया और जीवन के अन्त में उसे साई चरणों में सदगति प्राप्त हुई । जब कोई प्राणी संतों के चरणों पर अपना मस्तक रखकर प्राण त्याग दे तो उसकी मुक्ति हो जाती है । पूर्व जन्मों के शुभ संस्कारों के अभाव में ऐसा सुखद अंत प्राप्त होना कैसे संभव है ?
(श्री साई सच्चरित्र)

shirdi sai teachings श्री साईं-कथा

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श्री साईं-कथा आराधना (भाग - 20 )
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

बाबा ने कहा था जो मुझसे प्रेम है करता
वह सदा ही अपनी झोलियां है भरता
उसके लिए मेरे बिना ये संसार है सूना
वह सतत् मेरा ही ध्यान है करता
जो मुझे अर्पण किए बिना भोजन नहीं करता
वह सदा ही मेरा कृपा का पात्र है बनता
जो व्यक्ति दूसरों को पीड़ा देता है
वह उसे नहीं, मुझको भी दुःख देता है
भक्तों की भलाई हेतु साईं ने अवतार था लिया
देह को नश्वर मान उनको था मुक्त किया
जगतारण बन कर ही आए थे साईं
दुष्टजनों के संग भी उन्होंने प्रीति दिखाई

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

श्री साईं सारी सृष्टि के कण-कण में हैं बसे
हर प्राणी की हर सांस में भी हैं वो बसे
फूलों की खुशबू में भी साईं नाम है बस्ता
पक्षियों के मधुर गान में भी साईं नाम गूंजता
श्री राम साईं हैं और रहीम हैं साईं
गीता, बाइबिल और कुरान हैं साईं
मंदिर के घंटे की गूंज में हैं साईं
मस्ज़िद की हर अज़ान में भी हैं साईं
साईं बाबा आज भी भक्तों के हैं आश्रयदाता
वही सबके प्रभु हैं इस जग के विधाता
ऐसे सर्वेश्वर को सौ बार नमन है मेरा
दीनों के नाथ को प्रणाम है मेरा

श्री साईं गाथा सुनिए।
जय साईंनाथ कहिए॥

shirdi sai baba teachings श्री साईं-कथा

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श्री साईं-कथा आराधना (भाग - 19 )
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

श्री साईं की चावड़ी भी अद्भुत अति सुंदर
लगता है साईं विश्राम कर रहे हैं अब भी अंदर
गुरूवार के दिन यहां पे रंगोली है सजती
हरषाये मन से सबकी आँखे उसे तकती
स्वर्ग से भी सुन्दर दृश्य यहाँ पे सजता
साईं मानों हर रूप में सबके कष्ट हरता
ढोल-मंजीरे सब वाद्य भी बजते
और भक्त लोग झूम-झूम साईं आरती करते
बाबा की सारी लीलाएं तब सजीव हो जातीं
जब फूलों की बरखा यहां है होती
मस्जिद से चलकर जब आती है पालकी
शिव भोले की हो मानो विवाह की झांकी

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

साईं में शिव और शिव में हैं साईं
यही लीला साईंनाथ ने भी दिखाई
शिव-साईं की महिमा तो है बड़ी न्यारी
भोले में बसी साईं की छवि है प्यारी
मंदिर परिसर में भी साईं ने बनाया शिव मंदिर
साईं में शिव की झलक दिखाता यही मंदिर
शिव का जो भी भक्त यहां दर्शन करता
वो ॐ साईं, ॐ साईं, मुह से कहता
सब कर्मों की गति से वह तुरंत छूट जाता
जो शनि प्रतिमा के आगे दीपक जलाता
इस मंदिर के दर्शन जो एक बार कर गया
वो साईं-भक्त साईं का प्यार पा गया

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए........

shirdi sai baba teachings श्री साईं-कथा

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श्री साईं-कथा आराधना(भाग-18 )
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

शिर्डी में गुरुस्थान की महिमा है अपरंपार
जो भी लगाता चक्कर इसके ग्यारह ही बार
हर पीड़ा से भक्त वो मुक्ति पा जाता
जो बैठ यहाँ पे साईं नाम है गाता
साईं का नीम आज भी भक्तों को छाँव है देता
पत्तों के उससे हर कोई मिठास ही लेता
गुरुस्थान में बाबा के गुरु को शीश नवाकर
हर कोई उनसे भी है आशीष ही पाता
बाबा की चरण-पादुका पे फूल-हार चढ़ाकर
लोबान और अगरबत्ती यहाँ पे जलाकर
हर भक्त सुख-शांति सब प्यार है पाता
और साईं की दुआओं को संग अपने पाता

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

महिमा द्वारिकामाई की भी है अति न्यारी
भक्तों की मां जैसी यह सबकी दुलारी
जो भी इसकी गोद में एक बार बैठता
अपने सारे दुःख मां की झोली में डालता
रात-दिन यहां जलती धूनी माई
देख जिसको याद आ जाते हैं जय श्री साईं
धूनी की भस्म ऊदी को हर भक्त माथे पे लगाता
और साथ ले के उसको अपने घर भी आता
ऊदी में है आज भी वही संजीवनी शक्ति
साईं की दुआ से ये बढ़ाती साईं-भक्ति
जिसने भी यहां भूखों को भोजन करा दिया
वो साईं-भक्त साईं-कृपा को पल में ही पा गया

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए........

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Monday, October 8, 2012

shirdi sai teachings श्री साईं तत्त्व-रत्नावली




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श्री साईं तत्त्व-रत्नावली
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1. बाबा! जो अमृत वर्षा आप करते हैं, उसका अब तक हम केवल अनुमान ही लगा सकते थे। इसका वृतांत तो दास गणु महाराज ने अपनी पुस्तक "भक्त लीलामृत" में कलमबद्घ किया है परन्तु आप हमें यह बताने की कृपा करें कि हम इस पर नियमित रूप से ध्यान कैसे लगाये?

2. हे गुरुराया! हम तो सांसारिक जीव है और संसार की यात्रा दुष्टता से पूर्ण है। जीवन यापन के लिए स्त्रियों और पुरुषों को दिन रात मेहनत करनी पड़ती है।

3. गुरु महाराज ने करुणापूर्ण शब्दों में उत्तर द
िया: तुम चिंता क्यों करते हो? मेरे द्वारा उच्चारित अमृत वचनों के तत्त्व पर विचार करते रहने से ही तुम्हें सांसारिक बन्धनों से मुक्ति मिल जायेगी।

4. ऐसा कहते हुए गुरु बोलते गए और उन ज्ञानपूर्ण शब्दों को मैंने अपने अंतःकरण में उतार लिया और उन्हें मोतियों की माला में गूँथ लिया। हे भक्तगण इस माला को श्रद्धापूर्वक एवं प्रेमपूर्वक धारण करो।

5. इश्वर की सत्ता है और वो सब जगह व्याप्त है तुम इस सत्य में पूर्ण विश्वास रखो। इश्वर नहीं है इस विचार को नकार दो। और यह अवश्य ही जान लो कि इश्वर से बड़ा भी कोई नहीं है। (इश्वर है इस कथन को सत्य मानो और इश्वर नहीं है इस कथन को असत्य मानो। पूर्ण रूपेण विश्वास रखो कि इश्वर से बड़ा भी कोई नहीं है।)

6. इश्वर ही उत्पत्तिकर्ता है और वही संचालनकर्ता भी है। इश्वर ही उबारते (उठाते) है और इश्वर ही वह लोक ले जाते है जहाँ मृत्यु का वास है (मृत्युलोक में)।

7. इश्वर की इच्छा बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। सबूरी (धैर्य) रखो और इश्वर की इच्छा से संतोष रखो (संतोषपूर्वक उस स्थिति में रहो जिस में इश्वर की इच्छा हो)।

8. इश्वर की महिमा अपरम्पार है और तर्क का इसमें कोई स्थान नहीं है। इश्वर की अद्वितीय लीलाओं को केवल एक अनन्य भक्त ही समझता है।

9. केवल इश्वर से ही डरो और शुद्ध आचरण का पथ कभी मत छोड़ो। विवेक के द्वारा भलाई और बुराई के प्रति सदैव सजग रहो।

10. अपना कर्त्तव्य सदैव निभाओ और कर्तापन की भावना से उत्तपन हुए अभिमान को कभी मन में मत पनपने दो। सदैव विशवास रखो कि इश्वर ही कर्ता है और समस्त कार्यों का फल हमेशा इश्वर को अर्पण करो तब कर्मों के बंधन में नहीं बंधोगे और जन्म और मरण का भय नहीं सताएगा (जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाओगे)।

11. तब ऋणानुबंध (पूर्व जन्मों के कर्मों का बंधन जिनके कारण वर्तमान जन्म में सुख और दुःख की अनुभूति होती है) का पतन हो जायेगा और तुम सदा के लिए मुक्त हो जाओगे।

12. सब जगह इश्वर का ही वास है और सब में (ह्रदय) इश्वर ही व्याप्त (छिपे) है। अक्षरशः (अवश्य में) इश्वर ही सब जीव-जंतुओं में समाये हुए हैं इसलिए उनके प्रति अपने ह्रदय में करुणा रखो।

13. प्रत्येक के साथ सद्भावपूर्ण (मैत्रीपूर्ण) व्यवहार रखो और वाद-विवाद में मत पड़ो (वाद-विवाद से सदा दूर रहो)। ना तो किसी की बुराई करो और ना ही किसी से (एक दूसरे से) मुकाबला ही करो।

14. सदैव सबकी बात शांति और ध्यानपूर्वक सुनो। कभी भी उन बातों से मत घबराओ क्योंकि उनके शब्द कभी भी तुम्हारे शरीर को भेद नहीं सकते।

15. अपना कर्त्तव्य ध्यानपूर्वक निभाओ और दूसरे क्या करते हैं उस पर ध्यान मत दो। दूसरों के विषय में सोच विचार कर हम अपनी रातों की नींद क्यों खराब करें?

16. जो जैसा बोता है अवश्य ही वह वैसा ही फल पाता है इसलिए क्यों कोई चिंता करे (महसूस करे)? कर्त्तव्य के क्षेत्र में शरीर विघटित हो जाता है इसलिए खाली बैठकर (और ऐश्वर्य में) समय बर्बाद मत करो।

17. हर समय इश्वर के नाम का स्मरण करते रहो और पवित्र ग्रंथों का पठन पाठन (अध्ययन) सदा करते रहो। सुस्वादु भोजन और यात्राओं से दूर रहो और अपना ध्यान सदैव इश्वर पर केन्द्रित करो।

18. जो भक्त इसका नित्य प्रति पाठ करेगा और इसे अपने आचरण में लाएगा अवश्य ही इश्वर की उस पर अपार कृपा रहेगी और इश्वर उसकी सदैव रक्षा करेंगे। गुरु को प्रणाम।

Sunday, October 7, 2012

श्री साईं-कथा



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श्री साईं-कथा आराधना(भाग-17 )
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

कहने को तो साईं का साकार रूप लुप्त हो गया
बाबा का हाथ भक्तों के सिर पे से उठ गया
पर आज भी शिर्डी में बाबा विराजमान हैं
समाधी में जैसे श्री साईं के बसे प्राण हैं
साईं ने ग्यारह वचनों में वरदान जो दिए
वो सब के सब आज भी पूरे हैं किए
साईं बाबा आज भी कष्टों को हैं हरते
अन्न-धन देकर सबकी झोलियाँ हैं भरते
शिर्डी में साईं की धूनी आज भी है जलती
भक्तों में सारी आशाएं पूरी है करती
हर वीरवार बाबा का दरबार यहां सजता
पालकी के संग-संग मेला-सा जुड़ता

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

शिर्डी में आज भी दुनिया भर से लोग हैं आते
मुंहमांगी मुरादें यहां से पल में पा जाते
जब भोर के समय होती है काकड़ आरती
कहते हैं उस समय देवता भी शिर्डी में हैं आते
धरती से ले के आकाश तक साईं नाम गूंजता,
छोटा-बड़ा हर प्राणी साईं-भक्ति में झूमता
फिर मंगल-स्नान साईं का जब है होता
हर भक्त उसमें अपना सहयोग है देता,
कोई फूल-हार, कोई चादर है लाता
अपने-अपने ढंग से हर कोई साईं को रिझाता,
समाधी पे तब साईं की, सब सिर को झुकाते
अपने-अपने दिल का हाल अपने साईं को सुनाते

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए.......

shirdi sai baba teachings शामा

शामा की मान्यता
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जब काका जी शिरडी यात्रा करने का विचार कर रहे थे, उसी समय उनके यहाँ एक अतिथि आया (जो शामा के अतिरिक्त और कोई न था) । शामा बाबा के अंतरंग भक्तों में से एक थे । वे ठीक इसी समय वणी में क्यों और कैसे आ पहुँचे, अब हम इस पर दृष्टि डालें । बाल्यावस्था में वे एक बार बहुत बीमार पड़ गये थे । उनकी माता ने अपनी कुलदेवी सप्तशृंगी से प्रार्थना की कि यदि मेरा पुत्र नीरोग हो जाये तो मैं उसे तुम्हारे चरणों पर लाकर डालूँगी । कुछ वर्षों के पश्चात् ही उनकी माता के स्तन में दाद हो गई । तब उन्होंने पुनः देवी से प्रार्थना की कि यदि मैं रोगमुक्त हो जाऊँ तो मैं तुम्हें चाँदी के दो स्तन चाढाऊँगी । पर ये दोनों वचन अधूरे ही रहे । परन्तु जब वे मृत्युशैया पर पड़ी ती तो उन्होंने अपने पुत्र शामा को समीप बुलाकर उन दोनों वचनों की स्मृति दिलाई तथा उन्हें पूर्ण करने का आश्वासन पाकर प्राण त्याग दिये । कुछ दिनों के पश्चात् वे अपनी यह प्रतिज्ञा भूल गये और इसे भूले पूरे तीस साल व्यतीत हो गये । तभी एक प्रसिदृ ज्योतिषी शिरडी आये और वहाँ लगभग एक मास ठहरे । श्री मान् बूटीसाहेब और अन्य लोगों को बतलाये उनके सभी भविष्य प्रायः सही निकले, जिनसे सब को पूर्ण सन्तोष था । शामा के लघुभ्राता बापाजी ने भी उनसे कुछ प्रश्न पूछे । तब ज्योतिषी ने उन्हें बताया कि तुम्हारे ज्येष्ठ भ्राता ने अपनी माता को मृत्युशैया पर जो वचन दिये थे, उनके अब तक पूर्ण न किये जाने के कारण देवी असन्तुष्ट होकर उन्हें कष्ट पहुँचा रही है । ज्योतिषी की बात सुनकर शामा को उन अपूर्ण वचनों की स्मृति हो आई । अब और विलम्ब करना खतरनाक समझकर उन्होंने सुनार को बुलाकर चाँदी के दो स्तन शीघ्र तैयार कराये और उन्हें मसजिद मं ले जाकर बाबा के समक्ष रख दिया तथा प्रणाम कर उन्हें स्वीकार कर वचनमुक्त करने की प्रार्थना की । शामा ने कहा कि मेरे लिये तो सप्तशृंगी देवी आप ही है, परन्तु बाबा ने साग्रह कहा कि तुम इन्हें स्वयं ले जाकर देवी के चरणों में अर्पित करो । बाबा की आज्ञा व उदी लेकर उन्होंने वणी को प्रस्थान कर दिया । पुजारी का घर पूछते-पूछते वे काका जी के पास जा पहुँचे । काका जी इस समय बाबा के दर्शनों को बड़े उत्सुक थे और ठीक ऐसे ही मौके पर शामा भी वहाँ पहुँच गये । वह संयोग भी कैसा विचित्र था । काका जी ने आगन्तुक से उनका परिचय प्राप्त कर पूछा कि आप कहाँ से पधार रहे है । जब उन्होंने सुना कि वे शिरडी से आ रहे तो वे एकदम प्रेमोन्मत हो शामा से लिपट गये और फिर दोनों का श्री साई लीलाओं पर वार्तालाप आरम्भ हो गया । अपने वचन संबंधी कृत्यों को पूर्ण कर वे काकाजी के साथ शिरडी लौट आये । काकाजी मसजिद पहुँच कर बाबा के श्रीचरणों से जा लिपटे । उनके नेत्रों से प्रेमाश्रुओं की धारा बहने लगी और उनका चित्त स्थिर हो गया । देवी के दृष्टांतानुसार जैसे ही उन्होंनें बाबा के दर्शन किये, उनके मन की अशांति तुरन्त नष्ट तहो गई और वे परम शीतलता का अनुभव करने लगे । वे विचार करने लगे कि कैसी अदभुत शक्ति है कि बिना कोई सम्भाषण या प्रश्नोत्तर किये अथवा आशीष पाये, दर्शन मात्र से ही अपार प्रसन्नता हो रही है । सचमुच में दर्शन का महत्व तो इसे ही कहते है । उनके तृषित नेत्र श्री साई-चरणों पर अटक गये और वे अपनी जिहा से एक शब्द भी न बोल सके । बाबा की अन्य लीलाएँ सुनकर उन्हें अपार आनन्द हुआ और वे पूर्णतः बाबा के शरणागत हो गये । सब चिन्ताओं और कष्टों को भूलकर वे परम आनन्दित हुए । उन्होंने वहाँ सुखपूर्वक बारह दिन व्यतीत किये और फिर बाबा की आज्ञा, आशीर्वाद तथा उदी प्राप्त कर अपने घर लौट गये । 

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।
श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 30

श्री साईं-कथा

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श्री साईं-कथा आराधना (भाग-16)
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

साईं तो हैं इस पूरे ब्रह्मांड के नायक
दुःख हरते सब तरह से बनते सहायक
मां बायजा का ऋण साईं ने ऐसे चुकाया
तांत्या का जीवन मौत के हाथों बचाया
तांत्या बच गया और साईं चले गए
देखते ही देखते समाधिस्थ हो गए
जिसने भी सुना वो स्तब्ध रह गया
एक पल में शिर्डी मे मातम ठहर गया
देह छोड़ने से पहले बाबा ने लक्ष्मी से था कहा
तेरी भक्ति को याद रखेगा ये सारा जहां
बाबा ने उसे भक्ति के नौ रूप थे दिए
नौ सिक्कों के रूप में भक्ति के नए अर्थ दे दिए

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

बाबा के देह त्यागने की जब खबर फैल गई
शिर्डी में चारों ओर से भीड़ जमा हो गई
शिर्डी के नर-नारी मस्ज़िद की ओर दौड़ पड़े
कुछ रोने लगे और कुछ बेसुध होकर गिर पड़े
अब बाबा की अंतिम क्रिया की बहस चल पड़ी
साईं हिंदू थे या मुसलमान, चर्चा ये चल पड़ी
कुछ यवन बाबा को दफनाने को कहने लगे
कुछ बाबा को बूटीवाडे़ में रखने की फरियाद करने लगे
आखिर में सबने बूटीवाडे़ में रखने का फैंसला किया
इसके लिए उसका बीच का भाग खोदा गया
बाबा बूटीवाडे़ को सार्थक कर गए
मुरलीधर की जगह साईं खुद मुरलीधर ही बन गए

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए......

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7th Oct. Baba's sayings --. When the Lord is pleased with anybody, He gives him viveka and vairagya and takes him safe beyond the ocean of mundane existence.

Saturday, October 6, 2012

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काका जी वैघ
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नासिक जिले के वणी ग्राम में काका जी वैघ नाम के एक व्यक्ति रहते थे । वे श्रीसप्तशृंगी देवी के मुख्य पुजारी थे । एक बार वे विपत्तियों में कुछ इस प्रकार ग्रसित हुए कि उनके चित्त की शांति भंग हो गई और वे बिलकुल निराश हो उठे । एक दिन अति व्यथित होकर देवी के मंदिर में जाकर अन्तःकरण से वे प्रार्थना करने लगे कि हे देवि । हे दयामयी । मुझे कष्टों से शीघ्र मुक्त करो । उनकी प्रार्थना से देवी प्रसन्न हो गई और उसी रात्रि को उन्हें स्वप्न में बोली कि तू बाबा के पास जा, वहाँ तेरा मन शांत  और स्थिर हो जायेगा । बाबा का परिचय जानने को काका जी बड़े उत्सुक थे, परन्तु देवी से प्रश्न करने के पूर्व ही उनकी निद्रा भंग हो रगई । वे विचारने लगे कि ऐसे ये कौन से बाबा है, जिनकी ओर देवी ने मुझे संकेत किया है । कुछ देर विचार करने के पश्चात् वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि सम्भव है कि वे त्र्यंबकेश्वर बाबा (शिव) ही हों । इसलिये वे पवित्र तीर्थ त्र्यंबक (नासिक) को गये और वहाँ रहकर दस दिन व्यतीत कियये । वे प्रातःकाल उठकर स्नानादि से निवृत्त हो, रुद्र मंत्र का जप कर, साथ ही साथ अभिषेक व अन्य धार्मिक कृत्य भी करने लगे । परन्तु उनका मन पूर्ववत् ही अशान्त बना रहा । तब फिर अपने घर लौटकर वे अति करुण स्वर में देवी की स्तुति करने लगे । उसी रात्रि में देवी ने पुनः स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि तू व्यर्थ ही त्र्यम्बकेश्वर क्यो गया । बाबा से तो मेरा अभिप्राय था शिरडी के श्री साई समर्थ से । अब काका जी के समक्ष मुख्य प्रश्न यह उपस्थित हो गया कि वे कैसे और कब शिरडी जाकर बाबा के श्री दर्शन का लाभ उठाये । यथार्थ में यदि कोई व्यक्ति, किसी सन्त के दर्शने को आतुर हो तो केवल सन्त ही नही, भगवान् भी उसकी इच्छा पूर्ण कर देते है । वस्तुतः यिद पूछा जाय तो सन्त और अनन्त एक ही है और उनमें कोई भिन्नता नही । यदि कोई कहे कि मैं स्वतः ही अमुक सन्त के दर्शन को जाऊँगा तो इसे निरे दम्भ के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है । सन्त की इचत्छा के विरुदृ उनके समीप कौन जाकर द्रर्शन ले सकता है । उनकी सत्त के बिना वृक्ष का एक पत्ता भी नहीं हिल सकता । जितनी तीव्र उत्कंठा संत दर्शन की होती, तदनुसार ही उसकी भक्ति और विश्वास में वृद्घि होती जायेगी और उतनी ही शीघ्रता से उनकी मनोकामना भी सफलतापूर्वक पूर्ण  होगी । जो निमंत्रण देता है, वह आदर आतिथ्य का प्रबन्ध भी करता है । काका जी के सम्बन्ध में सचमुच यही हुआ ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।
श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 30

shirdi sai baba teachings


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6th Oct. Baba's sayings --. Worship Me always, who is seated in your heart, as well as in the hearts of all beings.

Friday, October 5, 2012

श्री साई सच्चरित्र



श्री साई सच्चरित्र

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श्री साई सच्चरित्र अध्याय 1

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 2


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Sai Aartian साईं आरतीयाँ