"अपने दोष स्वीकार कर लेने का अर्थ है,सच्चाई के प्रति प्रेम"
Shirdi Sai
Pages
Monday, October 31, 2011
Sunday, October 30, 2011
Sai Vachan:
"Engage yourself in good thoughts & actions.Do your duties & surrender yourself heart & soul to me"
Saturday, October 29, 2011
Thursday, October 27, 2011
गुरु
"गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता है और यह सभी ज्ञानी व विद्वान जानते हैं I केवल गुरु के पास ही आत्मा और ब्रह्म में एकत्व का अनुभव करने कि शक्ति होती है" I
Knowledge is not possible to be obtained without a Guru. All the learned men are aware of this that the capable feet of the Guru can solve the mystery of the Brahman and the Atman
Tuesday, October 25, 2011
Friday, October 21, 2011
साईं संदेश
"एकान्त का जितना लाभ उठा सको उठाओ I पक्की तौर से जान लो कि यह संसार नि:सार और व्यर्थ है I निरंतर अध्ययन और आत्मचिंतन में व्यस्त रहो" I
Securing as much solitude as one can, and bearing in mind that the worldly existence is ephemeral,
One should always be engaged in studying and understanding the meaning of the Atman.
Thursday, October 20, 2011
साईं पूर्ण अंतर्ज्ञानी हैं
साईं पूर्ण अंतर्ज्ञानी हैं और वे सब पहले से ही जानते हैं I जैसे भी साधन भक्त के लिए उपयुक्त होता है, वे उसे वैसा ही नियम बताते हैं I
He was intuitive and at the outset itself he knew everybody in their entirely. He decided on the right means of teaching and the right kind of discipline in accordance with the capability.
Wednesday, October 19, 2011
भगवान और पुजारी
एक गांव मे एक मंदिर मे एक पुजारी था और बो बड़े नियम से भगवान की पूजा करता था और उसको या गांव वालो को कोई भी परेशानी होती थी तो बो कहता था धैर्य रखो भगवान सब ठीक कर देगा और सचमुच परेशानिया ठीक हो जाती थी .......एक बार गांव मे बहुत जोर की बाढ़ आ गयी और सब डूबने लगा तो लोग पुजारी के पास गए तो उसने कहा की धैर्य रखो सब ठीक हो जायेगा मैं भगवान की इतनी पूजा करता हूँ सब ठीक हो जायेगा ,लेकिन पानी बढ़ने लगा और गांव वाले भागने लगे और पुजारी से बोले की अब तो पानी मंदिर मे भी आने लगा हें आप भी निकल चलो यहाँ से लेकिन पुजारी ने फिर बही कहा की मैं इतनी पूजा करता हूँ तो मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा तुम लोग जाओ मैं नहीं जाऊँगा.....फिर कुछ दिनों मे पानी और बढ़ा और मंदिर मे घुस गया तो पुजारी मंदिर पर चढ गया ...फिर उधर से एक नाव आई और उसमे कुछ बुजुर्ग लोगो ने पुजारी से कहा की सब लोग भाग गए हें और यह आखिरी नाव हें आप भी आ जाओ इसमें क्योकि पानी और बढ़ेगा ऐसा सरकार का कहना हें नहीं तो आप डूब जाओगे तो पुजारी ने फिर कहा की मेरा कुछ नहीं होगा क्योकि मैने इतनी पूजा करी हें जिंदगी भर तो भगवान मेरी मदद करेगे और फिर बो नाव भी चली गयी ......कुछ दिनों मे और पानी और बढ़ा तो पुजारी मंदिर मे सबसे ऊपर लटक गया और पानी जब उसकी नाक तक आ गया तो बो त्रिशूल पर लटक गया और भगवान की प्रार्थना करने लगा की भगवान बचाओ मैने आपकी बहुत पूजा की हें तो कुछ देर मे एक सेना का हेलिकॉप्टर आ गया और उसमे से सैनिको ने लटक कर हाथ बढ़ाया और कहा की हाथ पकड़ लो किन्तु फिर बो पुजारी उनसे बोला की मैने जिंदगी भर भगवान की पूजा करी हें मेरा कुछ नहीं होगा और उसने किसी तरह हाथ नहीं पकड़ा और परेशान होकर सैनिक चले गए ...फिर थोड़ी देर मे पानी और बढ़ा और उसकी नाक मे घुस गया और पुजारी मर गया.......
मरने के बाद पुजारी स्वर्ग मे गया और जैसे ही उसे भगवान जी दिखे तो बो चिल्लाने लगा की जिंदगी भर मैने इतनी इमानदारी से आप लोगो की पूजा करी फिर भी आप लोगो ने मेरी मदद नहीं की ...तो भगवान जी बोले कि अरे पुजारी जी जब पहली बार जो लोग आप से चलने को कह रहे थे तो बो कौन था अरे बो मैं ही तो था ...फिर नाव मे जो बुजुर्ग आप से चलने को कह रहे थे बो कौन था बो मैं ही तो था और फिर बाद मे हेलिकॉप्टर मे जो सैनिक आप को हाथ दे कर कह रहा था बो कौन था बो मैं ही तो था किन्तु आप मुंझे उस रूप मे पहचान ही नहीं पाए तो मैं क्या करू ..... अरे मैं जब किसी मनुष्य की मदद करूँगा तो मनुष्य के रूप मे ही तो करूँगा चाहे बो रूप डॉक्टर का हो या गुरु का हो या किसी अच्छे इंसान का या माँ,बाप भाई या बहन का या दोस्त का लेकिन उस रूप मे आप लोग मुंझे पहचान ही नहीं पाते हो तो मैं क्या करू ..... मेरी बाणी को पहचानने के लिए ध्यान बहुत जरूरी हें और योग भी तभी इंसान मेरी बाणी को इंसान मे भी पहचान जायेगा क्योकि सच्चे आदमियो मे मेरी ही बाणी होती हें|
Monday, October 17, 2011
ॐ साईं राम जी,
"साईं जी करू सेवा तुम्हारी,
सिर्फ यही है चाहिए,
या चरण धूलि आपकी मिले,
या दम तुम्हारे दर पर टूट जाये"
साईं तू ही कृपा निधान है |
सिर्फ यही है चाहिए,
या चरण धूलि आपकी मिले,
या दम तुम्हारे दर पर टूट जाये"
साईं तू ही कृपा निधान है |
Saturday, October 15, 2011
साईं वचन
"नित्य पवित्र शास्त्रों का श्रवण करो,
सदगुरु के वचनों का विशवास के साथ पालन करो और सदैव सर्वोच्च उदेश्य की प्राप्ति के लिए सावधान रहो" I
Regularly listen to the best of the scriptures.
Regularly listen to the best of the scriptures.
Follow the advice of the Guru with faith.
Be always alert and lead a regulated life.
बाबा.......मेरे सांई....
तुम ही तुम हो...मेरे सांई....
तुम ही तुम हो...मेरे सांई....
मेरे सांई....बस तुम ही तुम...
मेरी सुबह भी तुम...मेरे सांई....
मेरे सांई....मेरी शाम भी तुम...
जहां देखूं बस तुम ही तुम मेरे सांई....,
मेरे सांई....सूरज में...
जहां देखूं बस तुम ही तुम मेरे सांई....,
मेरे सांई....सूरज में...
मेरे सांई....आकाश में...
मेरे सांई....चाँद में...
मेरे सांई....तारों में...
मेरे सांई....मेरी नज़र जहां तक
बस मेरे सांई....तुम ही तुम...
मेरे सांई....मेरा प्यार,
मेरे सांई....मेरा प्यार,
मेरे सांई....मेरी मुस्कराहट,
मेरे सांई....मेरी उम्मीद,
मेरे सांई....मेरी आरज़ू,
मेरे सांई....मेरे सपने,
मेरे सांई....मेरी रोशनी ...मेरे सांई....मेरी हंसी भी तुमसे,
मेरे सांई....मेरी खुशी भी तुम से,
मेरे सांई....मेरे सुख भी तुम,
मेरे सांई....मेरे सुख भी तुम,
मेरे सांई....मेरे दुख में भी तुम,
बस तुम ही तुम.....मेरे सांई....
Friday, October 14, 2011
Thursday, October 13, 2011
साईं वचन
"किसी को दुःख देना नरक के समान है, यह भगवान का नियम है, जिस इन्द्रि से मनुष्य पाप करता है, उस इन्द्रि को भगवान सज़ा देते है"
साईं वचन
"दुसरो की कामना को भला कौन सही मायनो मे पूरा कर सकता है ? तुम जितना जयादा देते हो कामना उतनी ही ज्यादा बढती जाती है ! सिर्फ भगवान, मालिक, गुरु ही वह दे सकता हैं जो कभी ख़तम न हो"
Tuesday, October 11, 2011
साईं जी से प्रार्थना
ॐ श्री साईं नाथाय: नमः
हे साई सदगुरु । भक्तों के कल्पतरु । हमारी आपसे प्रार्थना है कि आपके अभय चरणों की हमें कभी विस्मृति न हो । आपके श्री चरण कभी भी हमारी दृष्टि से ओझल न हों । हम इस जन्म-मृत्यु के चक्र से संसार में अधिक दुखी है । अब दयाकर इस चक्र से हमारा शीघ्र उद्घार कर दो । ...हमारी इन्द्रियाँ, जो विषय-पदार्थों की ओर आकर्षित हो रही है, उनकी बाहृ प्रवृत्ति से रक्षा कर, उन्हें अंतर्मुखी बना कर हमें आत्म-दर्शन के योग्य बना दो । जब तक हमारी इन्द्रयों की बहिमुर्खी प्रवृत्ति और चंचल मन पर अंकुश नहीं है, तब तक आत्मसाक्षात्कार की हमें कोई आशा नहीं है । हमारे पुत्र और मित्र, कोई भी अन्त में हमारे काम न आयेंगे । हे साई । हमारे तो एकमात्र तुम्हीं हो, जो हमें मोक्ष और आनन्द प्रदान करोगे । हे प्रभु । हमारी तर्कवितर्क तथा अन्य कुप्रवृत्तियों को नष्ट कर दो । हमारी जिहृ सदैव तुम्हारे नामस्मरण का स्वाद लेती रहे । हे साई । हमारे अच्छे बुरे सब प्रकार के विचारों को नष्ट कर दो । प्रभु । कुछ ऐसा कर दो कि जिससे हमें अपने शरीर और गृह में आसक्ति न रहे । हमारा अहंकार सर्वथा निर्मूल हो जाय और हमें एकमात्र तुम्हारे ही नाम की स्मृति बनी रहे तथा शेष सबका विस्मरण हो जाय । हमारे मन की अशान्ति को दूर कर, उसे स्थिर और शान्त करो । हे साई । यदि तुम हमारे हाथ अपने हाथ में ले लोगे तो अज्ञानरुपी रात्रि का आवरण शीघ्र दूर हो जायेगा और हम तुम्हारे ज्ञान-प्रकाश में सुखपूर्वक विचरण करने लगेंगे । यह जो तुम्हारा लीलामृत पान करने का सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ तथा जिसने हमें अखण्ड निद्रा से जागृत कर दिया है, यह तुम्हारी ही कृपा और हमारे गत जन्मों के शुभ कर्मों का ही फल है |
हे साई सदगुरु । भक्तों के कल्पतरु । हमारी आपसे प्रार्थना है कि आपके अभय चरणों की हमें कभी विस्मृति न हो । आपके श्री चरण कभी भी हमारी दृष्टि से ओझल न हों । हम इस जन्म-मृत्यु के चक्र से संसार में अधिक दुखी है । अब दयाकर इस चक्र से हमारा शीघ्र उद्घार कर दो । ...हमारी इन्द्रियाँ, जो विषय-पदार्थों की ओर आकर्षित हो रही है, उनकी बाहृ प्रवृत्ति से रक्षा कर, उन्हें अंतर्मुखी बना कर हमें आत्म-दर्शन के योग्य बना दो । जब तक हमारी इन्द्रयों की बहिमुर्खी प्रवृत्ति और चंचल मन पर अंकुश नहीं है, तब तक आत्मसाक्षात्कार की हमें कोई आशा नहीं है । हमारे पुत्र और मित्र, कोई भी अन्त में हमारे काम न आयेंगे । हे साई । हमारे तो एकमात्र तुम्हीं हो, जो हमें मोक्ष और आनन्द प्रदान करोगे । हे प्रभु । हमारी तर्कवितर्क तथा अन्य कुप्रवृत्तियों को नष्ट कर दो । हमारी जिहृ सदैव तुम्हारे नामस्मरण का स्वाद लेती रहे । हे साई । हमारे अच्छे बुरे सब प्रकार के विचारों को नष्ट कर दो । प्रभु । कुछ ऐसा कर दो कि जिससे हमें अपने शरीर और गृह में आसक्ति न रहे । हमारा अहंकार सर्वथा निर्मूल हो जाय और हमें एकमात्र तुम्हारे ही नाम की स्मृति बनी रहे तथा शेष सबका विस्मरण हो जाय । हमारे मन की अशान्ति को दूर कर, उसे स्थिर और शान्त करो । हे साई । यदि तुम हमारे हाथ अपने हाथ में ले लोगे तो अज्ञानरुपी रात्रि का आवरण शीघ्र दूर हो जायेगा और हम तुम्हारे ज्ञान-प्रकाश में सुखपूर्वक विचरण करने लगेंगे । यह जो तुम्हारा लीलामृत पान करने का सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ तथा जिसने हमें अखण्ड निद्रा से जागृत कर दिया है, यह तुम्हारी ही कृपा और हमारे गत जन्मों के शुभ कर्मों का ही फल है |
Monday, October 10, 2011
साईं वचन
"मरने के बाद धन नही,धर्म साथ जाता है, अतः धन से धर्म बड़ा है, धर्म के अनुकूल धन का उपार्जन करो"
Sunday, October 9, 2011
ॐ साईं राम,
ॐ साईं राम,
"मुक्ति बंधन का संकेत करती है I केवल जहाँ बंधन होगा, वहीँ मुक्ति होगी I दोनों अवस्थाओं से दूर रहकर अपने शुद्ध असलियत (आत्मा) में ही निवास करो" I
Where there is liberty there is bondage and bondage is accompanied by liberty. Ignoring both these conditions, you should live in the purest spirit within you.
साईं जी की कृपा हम सब पर बनी रहे |
Thursday, October 6, 2011
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श्री साई सच्चरित्र अध्याय 1
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