"चाहे परम ज्ञान सपन्न क्यों न हो जाए, जब तक वह कर्मों के फल की इच्छा से विरिक्त नहीं होगा, तब तक आत्म-साक्षात्कार के लिए किए गये उसके के सभी प्रयतन व्यर्थ जाते है, वह आत्मज्ञान सम्पन्न नहीं हो पाता"
May be he has understood the nature of Brahman but if he is not detached from the fruits of his action, then his knowledge of the Brahman is futile and he is not self realised.
ॐ साईं राम
Shirdi Sai
Pages
Wednesday, August 31, 2011
ॐ साईं राम
Tuesday, August 30, 2011
ॐ साईं राम
"जो सदैव दुष्कर्मों में ही व्यस्त रहता है,जिन्हें अनुचित्त माना जाता है और इसलिये श्रुतियों ने भी उन्हें दण्डनीय ठहराया है, ऐसे व्यक्ति का चित्त अशान्त रहता है I
He who indulges in low, forbidden acts and stoop down to lowest behaviour, unacceptable to the shrutis and smritis, and who is permanently leading that kind of life can never have equanimity of mind.
ॐ साईं राम
Monday, August 29, 2011
Sunday, August 28, 2011
जीवन
"फूल कोई लम्बी उम्र नहीं जीता,छोटी सी उम्र लेकर आया कोई भी फूल जब मुस्कराहट ,प्रसन्नता,खुशबू,कोमलता और सोंदर्य लेकर खिलता है, तो वह जहाँ पर भी होता है,वहां पुरे वातावरण को महका देता है,सुंदर कर देता है, जीवन तो वह है, जो फुल की तरह खिले और पुरे वातावरण को सुगन्धित कर दे, ऐसा जीवन जीना चाहिए !
Saturday, August 27, 2011
Sai Sandesh
"जिसका मन पूर्ण रूप से संतान, पशुओं और धन उपाजर्न आदि में लगा हो, उसे ब्रह्म- ज्ञान कैसे मिल सकता है, जब तक द्रव्य- व्यवधान (धन की रुकावट) दूर नहीं होती"
He whose mind is attached to his family and possessions (sons, farm, animals etc.) how can he achieve Brahman till constant awareness of his wealth is not abandoned.
He whose mind is attached to his family and possessions (sons, farm, animals etc.) how can he achieve Brahman till constant awareness of his wealth is not abandoned.
ॐ साईं राम
ॐ साईं राम जी,
"काम क्रोध और लोभ ये,
तीनो पाप के मूल,
साईं नाम कुल्हाड़ी हाथ ले,
कर इनको निर्मूल"
ॐ साईं राम जी,
Friday, August 26, 2011
साईं संदेश
"लोभी (लालची) को न तो शांति है और न संतोष ही; और न ही वह द्रिड निशचयी होता है I एक बार चित्त में लोभ के बस जाने पर वह आध्यामिक उन्नति के सभी साधनों को बेकार कर देता है" I
"Where there is greed, there is no peace, no contentment, nor restfulness. All means (of achieving Brahman) turns to dust when avarice takes hold of the mind."
ॐ साईं राम
ॐ साईं राम
Wednesday, August 24, 2011
साईं वचन
"धन की तृष्णा से छुटकारा अति कठिन है,यह दू:खों और कष्टों के गहरे व अंधकारपूर्ण नदी के तल के समान है जो भंवर से परिपूर्ण है, जिसमे अहंकार और इर्ष्या रुपी मगरों का वास है, जिनसे युद्ध कर पाना बहुत कठिन है I जो निरिच्छ (इच्छारहित) होगा केवल वही यह भवसागर पार कर सकता है" I
The greed for money is very difficult. It is a deep whirlpool of pain, full of crocodiles in the form of conceit and jealousy. Only a desire less person can swim across these difficult waters.
Tuesday, August 23, 2011
साईं संदेश
"जो सदैव दुष्कर्मों को करने में व्यस्त रहता है,जिनको श्रुति और स्मृति ने करने के लिए मनाही की है और जिसे अच्छे और बुरे का ज्ञान नहीं है, वह अपना क्या हित कर सकता है, भले ही वह ज्ञानी क्यों न हो" ?
What is the use of such a person who is continuously wallowing in sin and in acts forbidden by the scriptures, even though he is a scholar, because he does not know what is right and what is wrong?
ॐ साईं राम
Sunday, August 21, 2011
ॐ साईं राम
"जीव की अज्ञानव्रत्ति ही उसे संसार की ओर खींचती है I आत्मज्ञान की प्राप्ति के उपरांत संसार से निव्रत्ती (मुक्ति) हो जाती है - वह संसार में रहकर भी, उसमे नहीं रहता" I
The ignorance of the person is the cause of the very materialistic attitude. When there is the knowledge of the self in its true sense, it will lead to the state of detachment towards the material world on its own.
The ignorance of the person is the cause of the very materialistic attitude. When there is the knowledge of the self in its true sense, it will lead to the state of detachment towards the material world on its own.
ॐ साईं राम
Saturday, August 20, 2011
Friday, August 19, 2011
ॐ साईं राम
"यह अनमोल मानव शरीर (काया) का दुरूपयोग किया जा रहा है I धन के प्रति लोभ, दोपहर की छाया के समान शीघ्र लुप्त होने वाली है I ईशवर की धोखा देने वाली माया पर विजय प्राप्त कर पाना कठिन है I यह जान लो और संतो के चरणों में जाकर उनकी शरण लो" I
How the precious body is wasted! Wealth and pleasures are like the afternoon shadows, short lived. Understand that this a powerful illusion created by God and surrender at the feet of the Saints.
(Clause 40 Adhaya 17, Sai Sachitra Dr R,N,Kakriya)
ॐ साईं राम
Thursday, August 18, 2011
ॐ साईं राम
"जो कुछ में कह रहा हूँ, यदि तुम उसे एकाग्र सुनोगे तो तुम्हारी अध्यात्मिक उन्नति होगी I इस पवित्र मस्जिद में बैठकर में कभी असत्य भाषण नहीं करता" I
If you heed all that I have said, you will be benefitted. Sitting as I do in this holy Masjid, I never utter an untruth.
If you heed all that I have said, you will be benefitted. Sitting as I do in this holy Masjid, I never utter an untruth.
(Clause 79 Adhaya 17, Sai Sachitra Dr R,N,Kakriya)
ॐ साईं राम
Wednesday, August 17, 2011
Tuesday, August 16, 2011
Monday, August 15, 2011
Sunday, August 14, 2011
Saturday, August 13, 2011
ॐ साईं राम
"शास्त्रों द्वारा बताये योग्य कर्म किए बिना, चित्त शुद्धि नहीं होती, और यह जान लो कि अगर चित्त शुद्धि नहीं है तो ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती" I
Unless the duties as fixed by the Shastras are performed, the mind cannot be purified. Till the mind is not purified, know that true knowledge is not possible.
(Clause 44 Adhaya 17, Sai Sachitra Dr R,N,Kakriya)
ॐ साईं राम
Friday, August 12, 2011
Sai Teachings
"जो अपने कर्मो के फल की इच्छा को त्याग देता है और जो संकल्प त्याग देता है, जो गुरु के ध्यान में एकाग्र हो करके अनन्य भाव से समर्पण करता है, वह सदगुरु की पूर्ण सुरक्षा का सुख भोगता है" I
He who discards the fruits of action and expectations with the help of full concentration of mind and surrenders to a Guru wholeheartedly, then the Guru accept him.
He who discards the fruits of action and expectations with the help of full concentration of mind and surrenders to a Guru wholeheartedly, then the Guru accept him.
(Clause 47 Adhaya 17, Sai Sachitra Dr R,N,Kakriya)
ॐ साईं राम
Thursday, August 11, 2011
साईं वचन
"जो मुझ पर भरोसा रखता है, मैं उसको कभी भी नहीं त्यागता,
बस बदले मे श्रद्धा और सबुरी मांगता हूँ"
ॐ साईं राम
जब तक भक्त पूर्ण विनय संपन्न हो कर, भक्ति व श्रद्धा भाव से गुरु की शरण में पूर्ण समर्पण कर साष्टांग प्रणाम नहीं करता, तब तक गुरु उसे ज्ञान का भंडार नहीं देते I
With mind full of devotion and faith, a disciple should completely and humbly surrender. Till such time, the Guru will not give the treasure of knowledge to him.
(Clause 136 Adhaya 17, Sai Sachitra Dr R,N,Kakriya)
ॐ साईं राम
Wednesday, August 10, 2011
Tuesday, August 9, 2011
साईं संदेश
"जहाँ स्थूल शरीर के अहंकार की व्रत्ति नष्ट हो जाती है, वहां तत्काल ही निव्रत्ती निवास करने लगती है I निशिचत रूप से यह जान लो कि वह जीव की परमात्मा के साथ एक होने यानि परमात्म स्थिति होती है" I
In one, whose pride of material achievements disappear, detachment takes its place immediately - and that in itself is the ultimate state of being. Remember this perfectly well.
In one, whose pride of material achievements disappear, detachment takes its place immediately - and that in itself is the ultimate state of being. Remember this perfectly well.
(Clause 52 Adhaya 17, Sai Sachitra Dr R,N,Kakriya)
ॐ साईं राम
Monday, August 8, 2011
साईं मुख वचन
देखो लोग कितने स्वार्थी है |
स्वार्थ सिद्ध होता दिखने पर वे अपने संगी साथियो को छोड़ देते है |
इसलिये तुम अपने को क्यों न ऐसे व्यक्तिओ से जोड़ो जो तुम्हे कभी नहीं छोड़े |
सद्गुरु के सिवा ऐसा साथी कोई दूसरा नहीं |
See people are so selfish. The movement they see their target is going to be achieved they leave their friends. Therefore why don't you attach yourself with those people who will never leave you. Other than Sadguru their is no other friend like that.
प्रार्थना
प्रातः उठते ही बाबा का ध्यान कर दिन की शुभारम्भ करना चाहिए तथा सच्चे व् अच्छे कार्य हेतु प्रार्थना करनी चाहिए
Sunday, August 7, 2011
Sai Teachings
जिसका दिल पूर्णत: संतुष्ट है, जो वास्तव में आचारवान गुरुपुत्र है और जिसका आत्म-तल्लीनता अटूट है, केवल वही ज्ञान संपन्न है I
"He, who is contented, calm and constant in his search for his True Self, and above all, obedient to his Guru is full of wisdom."
(Clause 27 Adhaya 17, Sai Sachitra Dr R,N,Kakriya)
ॐ साईं राम
ॐ साईं राम
Saturday, August 6, 2011
साईं संदेश
"काम और क्रोध दोनों ही मन के रोग हैं, जो ज्ञान प्राप्त होने नहीं देते और श्रवण-मनन व समाधि तीनो को भंग करते हैं"I
Passion and anger, these are the two emotions, which comes in the way of true knowledge. They shatter the power of understanding, concentration and samadhi very skillfully.
(Clause 23 Adhaya 17 Sai Sachitra, Dr R N Kakria)
ॐ साईं राम
Friday, August 5, 2011
Sai Teachings
अपने शारीर को रथ मान लो और अपनी बुद्धि को सारथी मान लो और स्वयं स्वस्थचित्त स्वामी बनकर इस रथ में बैठ जाओ I In the Chariot of one's own body, make your intellect the charioteer and be the master yourself. Then you can sit at ease.
(Clause 30 Adhaya 17, Sai Sachitra Dr R,N,Kakriya)
ॐ साईं राम
Thursday, August 4, 2011
Sai Teachings
तर्कवाद, स्पष्टकरण, प्रवाद और संवाद सहायता नहीं करते I कठिनाई केवल ईश- कृपा से ही दूर होती हैं I वाद- विवाद आदि सभी व्यर्थ जाते हैं I
"logic, deductions, popular talk or discussions are of no avail. Only by God's grace you can attain it. All other sciences of learning are futile. "
(Clause 37 Adhaya 17, Sai Sachitra Dr R,N,Kakriya)
ॐ साईं राम
ॐ साईं राम जी
ॐ शिरडी वासाय विधमहे सच्चिदानन्दाय धीमही तन्नो साईं प्रचोदयात ॥
ॐ साईं राम जी सब पर अपनी कृपा रखना जी
Wednesday, August 3, 2011
Sai Teachings
अशुद्ध नकारात्मक भावनाएँ (जैसे क्रोध, रंज - आदि), विक्षेप (चित्त को इधर- उधर भटकना) और आवरण (सत्य को छिपाना) अंत:करण के तीन दोष हैं I निष्काम भावना से कर्म करने पर अशुद्ध व नकारात्मक भावनाओ को निर्मूलन होता है; उपासना और भक्ति से चित्त की भ्रमकारी भ्रांतियों का शुद्धिकरण होता है I
Impurity, confusion and concealment are the three inherent flaws of the human mind. By means of selfless service, impurity can be cleansed and confusion can be removed through worship.
Impurity, confusion and concealment are the three inherent flaws of the human mind. By means of selfless service, impurity can be cleansed and confusion can be removed through worship.
(Clause 167 Adhaya 16 Sai Sachitra, Dr R N Kakria)
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ॐ साईं राम
Tuesday, August 2, 2011
सुख-शांति
राजा आदर्श सेन के राज्य में प्रजा बहुत खुशहाल और संतुष्ट थी। वहां कभी किसी तरह का तनाव नहीं होता था। यह बात पड़ोसी राज्य के राजा कुशल सेन तक भी पहुंची। उसके यहां आए-दिन झगड़े होते रहते थे और प्रजा बहुत दु:खी थी। राजा कुशल सेन अपने पड़ोसी राज्य की सुख-शांति व खुशहाली का राज जानने के लिए आदर्श सेन के पास पहुंचा और बोला, 'मेरे यहां हर ओर दु:ख-दर्द व बीमारी फैली है। पूरे राज्य में त्राहि-त्राहि मची हुई है। कृपया मुझे भी अपने राज्य की सुख-शांति का राज बताएं।' कुशल सेन की बात सुनकर राजा आदर्श सेन मुस्कुरा कर बोला, 'मेरे राज्य में सुख-शांति मेरे चार मित्रों के कारण आई है।' इससे कुशल सेन की उत्सुकता बढ़ गई।
उसने कहा, 'कौन हैं वे आपके मित्र? क्या वे मेरी मदद नहीं कर सकते?' आदर्श सेन ने कहा, 'जरूर कर सकते हैं। सुनिए मेरा पहला मित्र है सत्य। वह कभी मुझे असत्य नहीं बोलने देता। मेरा दूसरा मित्र प्रेम है, वह मुझे सबसे प्रेम करने की शिक्षा देता है और कभी भी घृणा करने का अवसर नहीं देता। मेरा तीसरा मित्र न्याय है। वह मुझे कभी भी अन्याय नहीं करने देता और हर वक्त मेरे आंख-कान खुले रखता है ताकि मैं राज्य में होने वाली घटनाओं पर निरंतर अपनी दृष्टि बनाए रखूं। और मेरा चौथा मित्र त्याग है। त्याग की भावना ही मुझे स्वार्थ व ईर्ष्या से बचाती है। ये चारों मिलकर मेरा साथ देते हैं और मेरे राज्य की रक्षा करते हैं।' कुशल सेन को आदर्श सेन की सफलता का रहस्य समझ में आ गया।
उसने कहा, 'कौन हैं वे आपके मित्र? क्या वे मेरी मदद नहीं कर सकते?' आदर्श सेन ने कहा, 'जरूर कर सकते हैं। सुनिए मेरा पहला मित्र है सत्य। वह कभी मुझे असत्य नहीं बोलने देता। मेरा दूसरा मित्र प्रेम है, वह मुझे सबसे प्रेम करने की शिक्षा देता है और कभी भी घृणा करने का अवसर नहीं देता। मेरा तीसरा मित्र न्याय है। वह मुझे कभी भी अन्याय नहीं करने देता और हर वक्त मेरे आंख-कान खुले रखता है ताकि मैं राज्य में होने वाली घटनाओं पर निरंतर अपनी दृष्टि बनाए रखूं। और मेरा चौथा मित्र त्याग है। त्याग की भावना ही मुझे स्वार्थ व ईर्ष्या से बचाती है। ये चारों मिलकर मेरा साथ देते हैं और मेरे राज्य की रक्षा करते हैं।' कुशल सेन को आदर्श सेन की सफलता का रहस्य समझ में आ गया।
Monday, August 1, 2011
Sai Teachings
काम और क्रोध दोनों ही मन के रोग हैं, जो ज्ञान प्राप्त होने नहीं देते और श्रवण-मनन व समाधि तीनों को भंग करते हैं I
"Passion and anger, these are the two emotions, which comes in the way of true knowledge. They shatter the power of understanding, concentration and samadhi very skillfully."
(Clause 23 Adhaya 17, Sai Sachitra Dr R,N,Kakriya)
ॐ साईं राम
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श्री साई सच्चरित्र अध्याय 1
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