Shirdi Sai
Pages
Saturday, December 31, 2011
Thursday, December 29, 2011
Wednesday, December 28, 2011
Monday, December 26, 2011
Sunday, December 25, 2011
Friday, December 23, 2011
Thursday, December 22, 2011
Wednesday, December 21, 2011
Tuesday, December 20, 2011
Saturday, December 17, 2011
Friday, December 16, 2011
Thursday, December 15, 2011
Wednesday, December 14, 2011
Tuesday, December 13, 2011
Sunday, December 11, 2011
Thursday, December 8, 2011
Tuesday, December 6, 2011
Sunday, December 4, 2011
साईंयां तू ही मेरा साथी
साईंयां तू ही मेरा साथी
ॐ साईं राम
मैनू तेरी लोड़ साईंयां,
दूजा न चाहिदा कोई |
मैनू तेरा दर चाहिदा,
दूजा दर न चाहिदा कोई |
मैं मंगदी तेरी सेवा बाबा,
होर न मैं कुछ मंगदी |
मैनू तेरा प्यार चाहिदा,
होर न चाहिदा कोई |
बिन मंगे तू सब दित्ता मालका,
मंगन दी लोड़ न कदे पई |
तू ते मेरा सब कुछ मालका,
होर किसे दी लोड़ न मेनू पई |
तेरे चरण स्वर्ग दे समान साईंयां,
इस तो वध्के न होर कोई |
रख लै मैनू चरणा दे कोल साईंयां,
स्वर्ग होर ना चाहिदा कोई |
एक फ़रियाद बाबा के नाम
Friday, December 2, 2011
Thursday, December 1, 2011
Tuesday, November 29, 2011
Sunday, November 27, 2011
Saturday, November 26, 2011
Friday, November 25, 2011
Thursday, November 24, 2011
Wednesday, November 23, 2011
ध्यान की गहराई
बात उस समय की है जब स्वामी विवेकानंद शिकागो के व्याख्यान के बाद अमेरिका में प्रसिद्ध हो चले थे। वहां वह घूम-घूमकर वेदांत दर्शन पर प्रवचन दिया करते थे। इस सिलसिले में उन्हें अमेरिका के उन अंदरूनी इलाकों में भी जाना होता था, जहां धर्मांध और संकीर्ण विचारधारा वाले लोग रहते थे। एक बार स्वामीजी को ऐसे ही एक कस्बे में व्याख्यान के लिए बुलाया गया था। एक खुले मैदान में लकड़ी के बक्सों को जमाकर मंच तैयार किया गया था।
स्वामीजी ने उस पर खड़े होकर वेदांत, योग और ध्यान पर व्याख्यान देना शुरू किया। बाहर से गुजरने वाले लोग भी उनकी बातें सुनने लगे जिनमें कुछ चरवाहे भी थे। थोड़ी देर में ही उनमें से कुछ ने बंदूकें निकालीं और स्वामीजी की ओर निशाना दागने लगे। कोई गोली उनके कान के पास से गुजरती तो कोई पांव के पास से। नीचे रखे कुछ बक्से तो छलनी हो गए थे। लेकिन इस सबके बावजूद स्वामीजी का व्याख्यान पहले की तरह धाराप्रवाह चलता रहा। न वह थमे न उनकी आवाज कांपी। अब चरवाहे भी वहां ठहर गए।
व्याख्यान के बाद वे स्वामीजी से बोले, 'आपके जैसा व्यक्ति हमने पहले नहीं देखा। हमारी गोलीबारी के बीच आपका भाषण ऐसे चलता रहा जैसे कुछ हुआ ही न हो। अगर हमारा निशाना चूकता तो आपकी जान आफत में पड़ सकती थी।' स्वामीजी ने उन्हें बताया कि जब वह व्याख्यान दे रहे थे, तब उन्हें बाहरी वातावरण का ज्ञान ही न था। उनका सारा चित्त वेदांत और ध्यान की उन गहराइयों में डूबा हुआ था। वे चरवाहे उनके प्रति नतमस्तक हो गए।
Tuesday, November 22, 2011
Sunday, November 20, 2011
संत की संगत
Saturday, November 19, 2011
आत्मा के गुण
Thursday, November 17, 2011
साईं वचन
Tuesday, November 15, 2011
Sunday, November 13, 2011
साईं नाम
Saturday, November 12, 2011
Friday, November 11, 2011
Thursday, November 10, 2011
Guru Nanak Dev Ji
Tuesday, November 8, 2011
श्री साईं बाबा की भक्ति
Monday, November 7, 2011
सदगुरु की शरण
ॐ साईं राम
"सबसे पहले व्यक्ति को सभी इच्छाओं से मुक्त होना चाहिए और फिर अनन्य भाव से सदगुरु की शरण में जाकर पूर्ण समर्पण करना चाहिए I जो ऐसी द्र्णश्रद्धा सपन्न है, केवल वही आत्मविज्ञानं को प्राप्त करने का पात्र है" I Initially one should be completely desireless. Then one should surrender totally to a Guru. In this way, he who develops firm and full faith deserves the knowledge of the Atman.
Friday, November 4, 2011
ज्ञान से श्रेष्ट ध्यान
साईं वचन
Thursday, November 3, 2011
Wednesday, November 2, 2011
Tuesday, November 1, 2011
अनुशासन का पाठ
अगले दिन उन्होंने इसके लिए एक नोटिस जारी किया। फिर छात्रों को मौखिक आदेश भी दिया। कुछ दिन बाद अध्यापकों ने उनसे कहा, 'हम लोगों ने कई बार प्रयास किया, मगर छात्रों पर कोई असर नहीं पड़ा। इसके लिए कठोर कार्रवाई की जरूरत है।' जाकिर हुसैन ने कहा, 'नहीं, कठोर कार्रवाई का छात्रों पर गलत असर पड़ेगा।' मगर उन्होंने तय कर लिया कि वह अपना मकसद किसी भी कीमत पर हासिल करके रहेंगे। अगले दिन सुबह-सुबह छात्रों ने विश्वविद्यालय के गेट पर एक व्यक्ति को बैठे देखा, जो सबसे जूते पॉलिश कराने के लिए कह रहा था।
कुछ छात्रों ने उससे जूते पॉलिश कराए। उस शख्स ने पैसे नहीं लिए और कहा कि यह यूनिवर्सिटी की तरफ से कराया जा रहा है। इस पर कुछ और छात्र पॉलिश करवाने लगे। तभी एक विद्यार्थी ने पॉलिश करने वाले का चेहरा गौर से देखा तो उसके होश उड़ गए। वह तो जाकिर हुसैन थे। पूरे विश्वविद्यालय में हड़कंप मच गया। बाकी छात्र जहां थे वहीं रुक गए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब किया क्या जाए।
उसी समय कुछ वरिष्ठ छात्र, जो विश्वविद्यालय का माहौल खराब करने में सबसे आगे रहते थे, उनके पास आए और कहने लगे, 'हमसे बहुत बड़ी गलती हुई। आज से आप जैसा कहेंगे हम लोग वैसा ही करेंगे। हमें माफ कर दीजिए।' जाकिर हुसैन बोले, 'तुम लोग अभी से अनुशासन का मखौल उड़ाओगे तो आगे चल कर तुम्हें परेशानी होगी। हम चाहते हैं कि यहां के छात्रों से दूसरे लोग कुछ सीखें।' उसके बाद विश्वविद्यालय का माहौल पूरी तरह बदल गया।
Monday, October 31, 2011
Sunday, October 30, 2011
Sai Vachan:
Saturday, October 29, 2011
Thursday, October 27, 2011
गुरु
Tuesday, October 25, 2011
श्री साई सच्चरित्र
श्री साई सच्चरित्र
आओ मिलकर पढ़ें और साथ जुड़ें !
श्री साई सच्चरित्र अध्याय 1
आओ मिलकर पढ़ें और साथ जुड़ें !