Saturday, October 30, 2010

SANDESH

हमेशा अपने चेहरे पर मुसकराहट बनाये रखे भले ही हमें ऐसा प्रयत्न पूर्वक् करना पडे़। हम इसे कैसे भी शुरु करें।आप उस गुण को अपने अन्दर मान ले जो आप में नही है।यदि कोई अच्छी आदत है जिसे आप विकसित करना चाहते हैं,ऐसी क्रिया कीजिये जैसे वह गुण आपके अन्दर है। धीरे-धीरे यह वास्तविकता हो जायेगी ।यहां तक कि यदि आपको मुसकराना पसन्द नही है फिर भी किसी तरह से मुसकरायें और आप स्वत: ही आनन्दित महसूस करेंगे।

Friday, October 29, 2010

sandesh

"बाबा जी आशीष दें और मुझे समझाए,
चिंता त्यागो तुम सभी,वे कल्याण कराएं"

Thursday, October 28, 2010

Swami Sivananda

यदि तुम सोचते हो कि तुम दूसरों से श्रेष्ठ हो, तुम उनके साथ घृणात्मक व्यवहार करना शुरु कर दोगे। श्रेष्ठता और हीनता अज्ञान की उपज है। समान दृष्टि विकसित करो। जब आप एक को ही सब जगह देखते हो तब श्रेष्टता और हीनता कहां है? अपने दृष्टिकोण को और मानसिक अभिवृत्ति को बदलो और शांति पूर्वक रहो।

Wednesday, October 27, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

संतो का नित्य व्यवहार इस प्रकार होता है - वे पहले विचार करते हैं और फिर उच्चारण करते हैं I संतो के उच्चारण को आदर सहित आचार मे लाया जाता है I 

Tuesday, October 26, 2010

Swami Sivananda

असावधानी और विस्मरण् ये दो ऐसे बुरे गुण हैं जो मनुष्य की सफलता के रास्ते मे खड़े रहते हैं। एक लापरवाह व्यक्ति किसी भी कार्य को साफ और सही तरीके से नहीं कर सकता। असावधान व्यक्ति लगकर किसी कार्य को करने का ज्ञान नही रखता।उसमें ध्यान की एकाग्रता नही होती। तुम्हें इन बुराईयों को दूर करने के लिये एक दृढ इच्छा शक्ति को विकसित करना होगा।इन बुराईयों के विपरीत गुणों को विकसित करना होगा।

Friday, October 22, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

संतो के शब्द कभी भी अर्थहीन नहीं होते I वे तो सदेव महत्वपूर्ण ही होते है I उनका सही मोल कौन जाँच सकता हैं 

Thursday, October 21, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

संत तो अपनी निर्गुण निराकार स्थिति को त्याग कर केवल भक्तो के उपकार के लिए, उन्हें जन्म मरण के चक्र से मुक्ति दिलाने के लिए ही अवतार लेते हैं I

Wednesday, October 20, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

उन्हें भूत, भविष्य और वर्तमान का स्पष्ट ज्ञान होता है, मानो वह उनके हाथ के तेल में रखे कमल के समान हो I जब भक्त उनकी आज्ञा का पालन करते हैं तो उन्हें सुख और शांति कि प्राप्ति होती है I  

Tuesday, October 19, 2010

Sri Paramahansa Yogananda

समृद्धि के नियम को मनुष्य द्वारा स्वयं अपने लाभ के लिए ही तोड़ा मरोड़ा नहीं जा सकता जब तक दूसरों के सुख को अपनी समृद्धि में समाहित नहीं कर लेते तुम आदर्श रूप में कभी समृद्ध नहीं हो पाओगे अपने आप को इस बात की लिए प्रेरित करो कि आपके कार्यऔर योजनाओं से दूसरों को लाभ कैसे मिल सकता है

Thursday, October 14, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

संक्षेप मे हम योजनाएँ बनाते हैं ; लेकिन हम यदि अंत के विषय मे कुछ नहीं जानते ; यानि पहले क्या हुआ था और बाद में क्या होने वाला है I लेकिन केवल संत ही जानते है, कि हमारे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है ; क्योकि ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे वे नहीं जानते हों I

Monday, October 11, 2010

Sri Paramahansa Yogananda

प्रत्येक गलत कार्य व्यक्ति के स्वयं के विरोध में जाता है इससे शान्ति और खुशी नहीं मिलती कभी-कभी अच्छा बनना कठिन लगता है जबकि बुरा बनना बहुत आसान; और बुरी आदतों को छोड़कर ऐसा लगता है कि हमसे कुछ छूट गया है ऐसी बातों से बचो यह निश्चित रूप से आपके लिए हानिकारक है उन कार्यों को चुनो जिससे आपको खुशी और स्वतंत्रता मिले सदव्यवहार और सदाचार को विकसित करो जो तुम्हें स्वतंत्रता की ओर ले जाता है

Sunday, October 10, 2010

Swami Sivananda

भटके हुए लोगों के लिए दीपक बनो,बीमारऔर रोगियों के लिए डाक्टर और नर्स बनो,जो निर्भयता और अमरत्व के दूसरे छोर परजाने के इच्छुक हैं
उनके लिए नाव और पुल बनो |

Saturday, October 9, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

संतो मे विशवास करने से अज्ञानियों कि अज्ञानता का अंत होगा और जो ज्ञानी अपने ज्ञान पर गर्व करते है, उनकी शंकाए और अटकले भी दूर हो जाएँगी फलत: उनके ह्रदय मे भी उत्तम विचार और भावनाएँ जाग्रत होगी I

Friday, October 8, 2010

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

संत तो करुणा के कारण द्रवित होकर अज्ञानियों को भी अपनी शरण मे लेते हैं: ताकि उस क्षण उनमे विशवास जाग्रत हो जाए I लेकिन अभिमानी और घमंडी बनकर ज्ञान प्राप्त करना निष्फल होता है I 

Sunday, October 3, 2010

Shri Krishna Bhagavad Gita

The mind acts like an enemy for those who do not control it.

Saturday, October 2, 2010

Shirdi ke श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"ईशवर ऐसे अज्ञानी, निष्कपटी प्राणियों पर भी अपनी करुणा, दया और कृपा करते हैं,लेकिन जो ईशवर से विमुख होकर उनसे दूर भागते हैं, वे अपने ही अहंकार मे भस्म हो जाते हैं" I

श्री साई सच्चरित्र



श्री साई सच्चरित्र

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श्री साई सच्चरित्र अध्याय 1

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 2


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